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चाईबासा : कोल्हान के भू-संपदा और अपनी संप्रभुता की रक्षा करते हुए शहादत देने वाले 50 वीर शहीदों को पुष्प अर्पित कर दी गई श्रद्धांजलि

चाईबासा || 25 मार्च को गैर राजनीतिक सामाजिक संगठन झारखंड पुनरूत्थान अभियान की ओर से कोल्हान के भू-संपदा और अपनी संप्रभुता की रक्षा करते हुए शहादत देने वाले 50 वीर शहीदों को पुष्प अर्पित कर श्रृद्धांजलि दी गई.

कोल्हान के वीर शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद पूर्व राज्यसभा सांसद दुर्गा प्रसाद जामुदा ने कहा कि अग्रेजों ने बंगाल पर आधिपत्य करने के क्रम में जब कोल्हान की धरती पर आए थे, तो अंग्रेजों ने कोल्हान की विशेष मानकी मुंडा स्वशासन प्रथा को देखकर मानकी मुंडा को रिझाने की कोशिश किया था और अंग्रेजों ने दोपाई गांव में कुछ मुंडाओं को अंग वस्त्र देकर उनके नियंत्रण को स्वीकार करने का पहल और प्रयास किया. लेकिन, गुंटिया, नरसांडा गांव और गुमड़ा पीढ़ के ग्रामीणों ने जब चारों ओर से पुलिस लाइन स्थित कैंप कार्यालय का पारंपरिक हथियार के साथ घेराव किया तो अंग्रेज अधिकारी राफसेज गबड़ा गए और कोल्हान के हो विद्रोहियों पर गोली चलाने का आदेश दिया था और अंग्रेजी सेना ने विरोध करने वाले हो विद्रोहियों पर गोली चला दिया. जिसके कारण शहीद पार्क चाईबासा के उसी स्थल पर 50 हो विद्रोही ने शहादत दिया था. पूर्व सांसद चित्रसेन सिंकु ने कहा कोल्हान के सामाजिक संगठन के नेतृत्वकारी हो या राजनीतिक दल के नेतृत्वकारी सबों को शहीद पार्क चाईबासा में वीर हो शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए आना चाहिए, ताकि कोल्हान के भू संपदा और संप्रभुता की रक्षा करते हुए शहादत देने वाले शहीदों की सम्मान वैसे ही हो सके,जैसे खरसावां के शहीदों को सम्मान दिया जाता है.

झारखंड पुनरूत्थान अभियान के मुख्य संयोजक सन्नी सिंकु ने कहा हम कोल्हान के हो उप जाति आदिवासियों को अपने गौरवपूर्ण इतिहास के बारे में जानना चाहिए. जब सबसे पहले अंग्रेज 1820 में कोल्हान के धरती पर पहला कदम रखा तो कोल्हान के हो लोगों ने अंग्रेजों का विरोध किया, क्योंकि कोल्हान के हो लोगों ने कोल्हान के भू संपदा पर अंग्रेजों के आने के पचास साल पहले से अपना संप्रभुता स्थापित कर चुका था. अंग्रेजों के पहले अफगान,मराठा और मुगल भी आए, लेकिन कोल्हान को अपने अधीन नहीं कर सका. यही कारण है कोल्हान के हो विद्रोह की विलग एतिहासिक महत्व है. जब अंग्रेज 1820 ईस्वी में कोल्हान पर पहला कदम रखा, तब से निरंतर अंग्रेजों का विरोध हो विद्रोहियों ने जारी रखते हुए 1837 तक विद्रोह करते रहे. जिस विद्रोह के कड़ी के रूप में पोटो हो को देखा जा सकता है. जिन महान हो विद्रोही को अंग्रेजों ने कोल्हान में ही विशेष कोर्ट का आयोजन कर 1 जनवरी 1838 को जगन्नाथपुर में बरगद के पेड़ पर ग्रामीणों के सामने फांसी पर लटकाया गया था. इसीलिए अंग्रेजों ने कोल्हान के हो लोगों की वीरता को देखकर शेर के गुफा में रहने वाले निवासी के रूप में उल्लेख किया. अंग्रेजों ने उसके बाद ही कोल्हान को अपने नियंत्रण में रख सका. लेकिन, कालांतर में देश की स्वतंत्रता आंदोलन में भी कोल्हान के हो लोग कभी पीछे नहीं रहे. जिसमें रसिका मानकी, सुखलाल गांधी , सूरदान सहित सैकड़ों हो लोगों का नाम इतिहास के पृष्ट में दर्ज है. कोल्हान के हो विद्रोहियों की वीरता को देखकर ही साउथ वेस्ट फ्रंटियर एजेंसी के इंचार्ज थॉमस विलकिंसन ने कोल्हान पर अपना प्राधिकारी स्थापित करने के लिए मानकी मुंडा को सीएनटी एक्ट 1908 के रिकॉर्ड ऑफ राइट के सेक्शन 132 के तहत विलकिंसन रूल्स या विनियम बनाकर दिया, जो अब तक प्रचलित और जीवंत है. इसीलिए आज के युवा पीढ़ी को यह भी जानना आवश्यक है कि अंग्रेजों ने देश आजाद होने के दस वर्ष पूर्व यानी 6 अक्टूबर 1937 को शहीद पार्क चाईबासा का उदघाटन किया था और शहीद पार्क चाईबासा का उदघाटन तत्कालीन बिहार उड़ीसा के राज्यपाल सर मॉरिस गार्नियर हैलेट ने किया था. हमने झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जी को मांग पत्र लिखकर शहीद पार्क चाईबासा में शहादत देने वाले वीर शहीद हो विद्रोहियों के याद म्यूजियम बनाने की मांग की थी. साथ ही प्रतिवर्ष 25 मार्च को खरसावां शहीद दिवस के भांति सरकारी कार्यक्रम आयोजित करने की मांग की थी.

शहीद पार्क चाईबासा में वीर शहीद हो विद्रोहियों को श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों मे अमृत मांझी, इंदुशेकर तिवारी, कोलंबस हसदा, महेंद्र जामुदा, शीतल पुरती, रियांस सामड,विकास केराई, विनीत लगूरी, विश्वनाथ बोबोंगा, बसंत तांती,बालकृष्ण डोराईबुरू, अरिल सिंकु, जगदीश चंद्र बिरूआ, मनीष सिंकु, असीम जूरिया सिंकु, अवीन पाचाय सिंकु, छोटू और अन्य उपस्थित थे. (संतोष वर्मा की रिपोर्ट).

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