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नालंदा : जिले में है एक ऐसा गांव जहां हिन्दू देते हैं मस्जिद में अज़ान

नालंदा यूं ही विश्वगुरु नहीं बना, बल्कि यहां की मिट्टी की सोंधी महक व लोगों की खासियत कुछ ऐसी है जिसे भुलाया नहीं जा सकता. जिले के बेन प्रखंड के माड़ी गांव के लोग गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल पेश कर रहे हैं. यहां एक भी घर मुस्लिम का नहीं है. लेकिन, हर दिन पांचों वक्त की अज़ान होती है.

बता दें कि हिन्दू भाइयों को अज़ान देनी नहीं आती, तो वे लोग पेन ड्राइव की मदद लेते हैं. मस्जिद की रंगाई-पुताई का मामला हो या फिर तामीर का, पूरे गांव के लोग सहयोग करते हैं. मस्जिद की सफाई का जिम्मा गौतम महतो, अजय पासवान, बखोरी जमादार व अन्य के जिम्मे है. ग्रामीणों की मस्जिद से गहरी आस्था जुड़ी हुई है. किसी घर में शादी-विवाह हो या किसी प्रकार की खुशी का मौका, सबसे पहले मस्जिद के ही दर्शन करते हैं. मान्यता है कि ऐसा न करने वालों पर आफत आती है. सदियों से चली आ रही इस परंपरा का लोग बखूबी निर्वाह कर रहे हैं. मस्जिद के बाहर एक मजार भी है. इसपर भी लोग चादरपोशी करते हैं.

बताया जाता है कि गांव में पहले अक्सर आगलगी की घटना और बाढ़ आ जाया करता था. करीब 5 से 6 सौ साल पहले हजरत इस्माइल गांव आये थे. उनके आने के बाद गांव में कभी तबाही नहीं आई. उनके गांव में आने से अगलगी की घटना खत्म हो गयी. उनका निधन हो गया. इसके बाद ग्रामीणों ने मस्जिद के पास ही उन्हें दफना दिया. 1942 के साम्प्रदायिक दंगा के बाद सभी मुस्लिम परिवार गांव छोड़ पलायन कर गए, तब से हिंदु भाइयों द्वारा हीं इसका देखभाल किया जा रहा है. बिहारशरीफ के खालिद आलम भुट्टो ने बताया कि उस मस्जिद की तामीर (मरम्मत) उनके नाना बदरे आलम ने करीब 200 वर्ष पहले करायी थी. जब नालंदा यूनिवर्सिटी थी तो वहां मंडी लगती थी. इसलिए गांव का नाम मंडी था, उसके बाद माड़ी हो गया. (प्रणय राज की रिपोर्ट).

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