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सितारा देवी जी से मैं मिली नही पर फिर भी…

सितारा देवी भारत की प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना थीं. जब वे मात्र 16 वर्ष की थीं, तब उनके नृत्य को देखकर रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उन्हें ‘नृत्य सम्राज्ञी’ कहकर सम्बोधित किया था. उन्होने भारत तथा विश्व के विभिन्न भागों में नृत्य का प्रदर्शन किया. बचपन में मुंह टेढ़ा होने के कारण भयभीत मां-बाप ने उन्हें एक दाई को सौंप दिया जिसने आठ साल की उम्र तक उसका पालन-पोषण किया. इसके बाद ही सितारा देवी अपने मां बाप को देख पाईं. उस समय की परम्परा के अनुसार सितारा देवी का विवाह आठ वर्ष की उम्र में हो गया. उनके ससुराल वाले चाहते थे कि वह घरबार संभालें लेकिन वह स्कूल में पढना चाहती थीं. स्कूल जाने के लिए जिद पकड लेने पर उनका विवाह टूट गया और उन्हें कामछगढ हाई स्कूल में दाखिल कराया गया.

8 नवम्बर कथक क्वीन सीतारा देवीजी का आज जन्मदिन है. वो नटेश्वर की पुजारीन थी जिसने जीवन के 60 साल अपने नृत्य को समर्पित किये. तीनों बहनों – अलकनंदा, तारा और सितारा ने नृत्य सीखा था. पं. सुखदेव महाराजजी खुद कला के पुजारी थे. नृत्यकला के साथ वह गायन से भी जुड़े थे. सिताराजी ने अपने पिता से नृत्यशिक्षा ली. साथ ही पं.शंभू महाराज और पं.अच्छन महाराजजी से भी नृत्य की शिक्षा प्राप्त की. बनारस से उन्हें मुंबई आना पड़ा. मुंबई में सितारा जी का पहला सार्वजनिक कार्यक्रम, दस-ग्यारह साल की आयु में मशहूर जहांगीर हॉल में हुआ और उसके बाद यह सिलसिला चलता ही रहा.

धनलक्ष्मी से सितारा….  सितारा से सितारादेवी… और फिर कथकक्वीन सितारा बन गयी.
कथकक्वीन सितारादेवी को नृत्य में योगदान के लिए सन 1959 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1975 में पद्मश्री  और 1994 में कालिदास पुरस्कार से सम्मानित किया गया. अपने नृत्य प्रदर्शनों से उन्होंने देश-विदेशों के दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया. सिताराजी कत्थक के साथ भरतनाट्यम तथा कई भारतीय नृत्यशैलियों और लोकनृत्यों में पारंगत थी.
सितारा जी के कथक में बनारख और लखनऊ घराने के तत्वों का संमिश्रण दिखाई देता है. ये वो ज़माना था जब पूरी-पूरी रात कथक की महफ़िल जमी रहती थी. अपनी 95 की उम्र तक यह कलाकार अपनी कला से मुक्त नहीं हो पाई. 26 नवम्बर 2014 को देश की मशहूर नृत्यांगना सितारादेवीजीं का जसलोक अस्पताल में निधन हो गया. और कला जगत का एक अनमोल सितारा टूट गया लेकिन समाज में कला की रोशनी फैलाकर गया.

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