Abhi Bharat

पढ़िए : बदहाली के दौर से गुजर रहा है देश का सबसे बड़ा कुष्ठ आश्रम

अभिषेक श्रीवास्तव / निलेश कुमार

कभी घर और परिवार से तिरस्कृत कुष्ठ रोगियों को पनाह देने के लिए देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद के नाम से स्थापित सीवान का प्रसिद्ध राजेन्द्र कुष्ठ सेवाश्रम आज राजनीतिक उपेक्षा का शिकार होकर खुद पंगु बन गया है. करीब डेढ़ दशक पहले सरकार द्वारा कुष्ठ रोग को साधारण बीमारी की श्रेणी में लाने के बाद यह आश्रम बंद पड़ा है. आश्रम को मेडिकल कॉलेज में तब्दील किये जाने की खातिर आश्रम का ट्रस्ट राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक गुहार लगा चूका है लेकिन इस दिशा में अब तक कोई पहल या कार्रवाई नहीं हुयी है.

सीवान जिले के मैरवा प्रखंड के दोन-दरौली रोड स्थित करीब 40 एकड़ की भूमि पर फैला राजेन्द्र कुष्ठ सेवाश्रम जो कि अपने समय का देश का सबसे बड़ा कुष्ट रोगियो के इलाज करने वाला अस्पताल माना जाता था आज खुद के इलाज की आस में है. सन 1953 में महान समाज सेवी परमहंस बाबा राघव दास व उनके सहयोगी बाबा जगदीश दिन जी के द्वारा कुष्ट रोगियो के कल्याणार्थ इसकी स्थापना की गयी थी. जिसके प्रथम भवन का शिलान्यास देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के कर कमलो द्वारा हुआ था. वहीं इसके संरक्षक लोक नायक जयप्रकाश नारायण, डॉ अनुग्रह नारायण सिंह जैसे महापुरुष हुआ करते थे.

अपने स्वर्णिम काल में इस अस्पताल में 200 मरीजो के लिए न सिर्फ बेड की व्यवस्था थी बल्कि उनके इलाक के साथ साथ रहने व खाने-पीने का भी इन्तेजाम था. यहाँ पर्याप्त डॉक्टर व पारामेडिकल कर्मियो की संख्या हुआ करती थी वहीं समुचित दवा की भी व्यवस्था थी. अपनी इस खासियत के कारण यह आश्रम पुरे देश के साथ विदेशों में भी प्रसिद्ध रहा. इस आश्रम के तहत सीवान, छपरा और गोपालगंज जिले में कुल आठ कुष्ठ नियंत्रण इकाईयां कार्य करती थी.

आश्रम की सुविधा और कार्य के कारण उस समय एक भयानक और महामारी माने जाने वाले कुष्ठ रोग से ग्रसित रोगियों के लिए यह एक वरदान के समान था. तत्कालीन समय में यहां दो हजार से ज्यादा कुष्ठ रोगी स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे.

कुष्ठ रोगियों के इलाज के साथ साथ यहाँ स्वरोजगार परक विभिन्न ट्रेड में प्रशिक्षण की भी व्यवस्था थी. जिसके तहत सिलाई, कटाई, वस्त्र बुनाई व पत्ता द्वारा कप प्लेट बनाने आदि का प्रशिक्षण दिया जाता था. इसके विकास में डॉक्टर जाकिर हुसैन, बिनोबा भावे, हरिनाथ मिश्र, बिहार विधान सभा अध्यक्ष अरुणा पाठक, विनोद नन्द झा, भुतपूर्व मुख्य्मंत्री बिहार सरकार सरदार बलवंत सिंह, श्रीमती तारकेश्वरी सिन्हा, उप वित्त मंत्री भारत सरकार और यहां की ग्रामीण जनता जिन्होंने अपनी भूमि दान स्वरूप आश्रम को दिया था, की अहम भूमिका रही है.

सन 2003 में केंद्र सरकार द्वारा कुष्ठ रोग को लाइलाज बीमारी के बजाये साधारण बिमारी की श्रेणी में रखे जाने के बाद इस आश्रम को बंद कर सभी चिकित्सीय व्यवस्था पर रोक लगा दी गयी और आश्रम बंद हो गया. आश्रम बंद किये जाने के बाद आश्रम के तत्कालीन सचिव विद्याभूषण तिवारी  इसको मेडिकल कॉलेज में परिणत कराने की मांग राज्य सरकार से लेकर केंद्र सरकार तक कर चुके हैं. वहीं कई जनप्रतिनिधियों ने भी उनकी इस मनाग की अनुशंसा की है. जिसके बाद से सन 2012 में प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा स्वास्थ्य मंत्रालय को इस सम्बन्ध में जाँच कर रिपोर्ट देने को कहा गया. लेकिन, 2014 में केंद्र में नयी सरकार आ गयी और उसके बाद सभी आदेश और जांच रिपोर्ट फाईलों में ही सिमट कर रह गयी.

नतीजतन, यह कुष्ठ आश्रम अब एक वीरान जंगल और हवेलियों का खंडहर के रूप में रह कर अतीत को संजोये रखने का प्रयास मात्र कर रहा है. फिलहाल, यहाँ वीरान पड़े अस्पताल और जर्जर भवन में भूले-भटके, इक्के-दुक्के रोगी कभी कभार नजर आ जाते हैं. अस्पताल के प्रवेश द्वार पर जंगल और मक्के की फसल उग आई है. अस्पताल के अंदर गन्दगी का ढेर और टूटे जंग खा चुके बेड पड़े हैं.

एक मरीज जो गोपालगंज जिले के है यहाँ पिछले 10 वर्षो से रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि यहाँ न दवा की व्यवस्था है न डॉक्टर की.  हम दो-तीन लोग हैं जो भीख मांग कर और आश्रम के खली पड़े जमीन पर फसल ऊगा कर गुजर करते हैं. मैरवा अस्पताल जाने पर कभी-कभार दवा मिल जाया करती है.

अब प्रशिक्षण भवन में भी जंगल उग आये हैं. उसके भवन भी जर्जर हो चुके हैं. मशीन के नाम पर कुछ जंग खाये लोहे हीं दीखते हैं. यहाँ जो भी आता है सिर्फ आश्वासन ही दे जाता है अभी तक किसी ने सार्थक प्रयास नही किया. इसके वर्तमान सचिव सह संरक्षक विद्याभूषण तिवारी जी कभी-कभी आ जाते हैं.

पांच वर्ष पूर्व लॉस एंजिल्स के यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथ कैलिफोर्निया की भारतीय मूल की चिकित्सक डॉ शोभा सहाय ने कुष्ठ आश्रम का दौरा किया था और यहाँ मेडिकल कॉलेज के लिए अपने यूनिवर्सिटी से सहायता दिया जाने की बात कही थी. लेकिन वह भी ढाक के तीन पात ही साबित हुयी.

बहरहाल, वर्त्तमान जदयू विधायक रमेश सिंह कुशवाहा के गृह पंचायत में आश्रम के आने और उनके सत्ता पक्ष का विधायक होने से स्थानीय लोगों में आश्रम का उद्धार होने की एक आस जगी है. देखने वाली बात होगी कि विधायक लोगों की आस पर खरा उतरते हैं या नहीं.

You might also like

Comments are closed.