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बेगूसराय : नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहा शहीद लेफ्टिनेंट ऋषि कुमार का परिवार, नहीं मिल रही सरकार से कोई मदद

बगुसराय में सरकार न्याय के साथ विकास के जितने दावे कर ले, लेकिन धरातल पर ठीक इसके उलट है. सरकार के समावेशी न्याय के दावे की पोल सेना के एक शहीद अधिकारी के परिवार ने खोल दिया है. मामला बेगूसराय के शहीद लेफ्टिनेंट ऋषि कुमार के परिजनों से जुड़ा हुआ है.

बता दें कि 30 अक्टूबर 2021 की शाम जम्मू-कश्मीर के नौसेरा सेक्टर में भारत-पाकिस्तान सीमा पर गश्त करते हुए आतंकी हमले में देश के दो लाल शहीद हो गए थे. एक थे बिहार के बेगूसराय निवासी लेफ्टिनेंट ऋषि कुमार और दूसरे थे पंजाब के भटिंडा निवासी मनजीत सिंह उर्फ साबी. दोनों की एक साथ मौत हुई, एक साथ पार्थिव शरीर घर आया, नेताओं ने संवेदना व्यक्त की. पंजाब सरकार ने अपने सिपाही को सम्मान देते हुए ना केवल 50 लाख अनुग्रह राशि और एक परिजन को नौकरी दिया. लेकिन बिहार में उसका उल्टा हुआ. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उस शहादत की कीमत लगाई मात्र 11 लाख. एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री द्वारा पार्थिव शरीर पर श्रद्धांजलि देना तो दूर की बात, शहीद ऋषि के परिवार को सात महीना बीत जाने के बावजूद मात्र 11 लाख का चेक मिला है.

एक मात्र छोटी बहन को नौकरी के लिए शहीद के पिता दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं. घर में टंगा राष्ट्रपति द्वारा ऋषि को मिला प्रशस्ति पत्र, पार्थिव शरीर पर समर्पित किया तिरंगा तथा ऋषि के चित्र को देखकर मां सविता देवी अपने एकलौते लाल को याद कर सुबह से रात नहीं, सुबह से सुबह तक रोती रहती है. ऋषि के शहीद होने के बाद दो बार बेगूसराय आने के बाबजूद ना तो बिहार के मुख्यमंत्री ने शहीद के परिवार से मिलना मुनासिब समझा और ना ही पटना जाने पर परिजनों की मुलाकात मुख्यमंत्री से हो पाती है. विधानसभा अध्यक्ष द्वारा दिया गया आश्वासन फेल हो चुका है, विधानसभा अध्यक्ष और स्थानीय विधायक मिलना नहीं चाहते हैं. मिलने की बात तो दूर कोई भी नेता शहीद ऋषि के परिजनों से बात करना नहीं चाहते हैं. शहादत के बाद नेताओं ने बड़े-बड़े दावे और वादे किए थे, लेकिन सब दावा और वादा फेल हो चुका है. शहादत के बाद जब पार्थिव शरीर बेगूसराय आया तो उस समय अधिकारियों और नेताओं ने बड़े-बड़े वादे किए, लेकिन सरकारी उपेक्षा और उच्च स्तर पर प्रशासनिक कुव्यवस्था के कारण हालत यह हो गया है कि जून में शहीद के परिजन सड़क पर धरना देने को मजबूर हो जाएंगे.

शहीद ऋषि के पिता राजीव रंजन एवं मां सविता देवी ने बताया कि नेता सिर्फ भाषण देते हैं, कोई नेता अपने बेटे को मां भारती की रक्षा करने के लिए सीमा नहीं भेजता है. हमने ना सिर्फ इकलौते लाल को मां भारती के रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी, बल्कि मेरी बड़ी पुत्री और दामाद भी सेना में हैं. हमें यह भी नहीं पता था कि देश के लिए शहादत देने वाले के परिवार के साथ सरकार ऐसा सौतेला व्यवहार करती है. परिजनों का आरोप है कि बिहार सरकार के सबसे बड़े अधिकारी के टेबुल पर यह फाइल दबा दिया गया है. शहीद के परिजनों का कहना है कि सबके सभी दावे और वादे पूरी तरह से फेल हो गए हैं. शहीद के माता-पिता ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शहादत का सम्मान करते हैं, लेकिन बिहार में शहादत की काफी अपेक्षा हो रही है. शहीद की मां से मिलने आए तक कोई नहीं आया. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इंजीनियरिंग किए हैं, लेकिन हमने अपने बच्चे को इंजीनियरिंग कराने के बाद देश सेवा में भेजा, इसके बावजूद न्याय और अधिकार के लिए भटकना पड़ रहा है. कहा गया था कि पथ का नामकरण ऋषि के नाम पर होगा, लेकिन पथ का नाम तो दूर बजरंग चौक पर बोर्ड भी रात के अंधेरे में लगाया गया. हमारे बच्चे राष्ट्र की रक्षा करते हैं, लेकिन मुसीबत आने पर सब सिर्फ दिखावटी आंसू बहाते हैं. कोई सांसद-विधायक देखना और मिलना तो दूर फोन पर भी बात करना पसंद नहीं करता है. मुख्यमंत्री से मिलने पटना गए तो वहां से भी लौटा दिया गया. सांसद, विधायक, मंत्री किसी का भी आश्वासन काम नहीं आ रहा है तो अब घर में तिल-तिल कर मरने से अच्छा है सड़क पर बैठकर जान दे देना. परिजनों का कहना है कि इकलौता बेटा चला गया, उसकी शहादत के साथ मजाक हो ही रहा है तो ऐसी जिंदगी जीने से क्या फायदा. (पिंकल कुमार की रिपोर्ट).

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