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कहानी : नई दुनिया का नक्शा

आसमान पर काले बादल छाए थे. हल्की हल्की फुहार पड़ रही थी. तरन्नुम अपने कमरे में बैठी बारिश के रुकने का इंतजार कर रही थी. वह रह-रहकर खिड़की की तरफ जाती और मायूस होकर बैठ जाती. आज उसने सिराज से सिनेमा जाने का वादा किया था. इसलिए बेचैनी से बारिश रुकने की राह देख रही थी. शाम के 7:00 बज गए बारिश में और भी तेजी आ गई, मजबूर होकर उसने सिनेमा जाने का इरादा छोड़ दिया. फिर गुस्से में रात को खाना भी नहीं खाया.

दूसरे दिन जब वह कालेज गई तो सिराज ने मुंह बनाकर कहा “वाह तुमने तो खूब वादा पूरा किया, मेरे 100 रुपये भी बर्बाद हो गए. ऐसा मालूम होता है कि तुम्हें मुझसे प्यार नहीं. सिर्फ मेरा दिल रखने के लिए प्यार की बातें करती हो.” “मुझे गलत ना समझो सिराज, मैं तुम्हें दिल से चाहती हूं और तुम्हारे लिए घर मां-बाप सबको छोड़ सकती हूं. लेकिन तुम्हें नहीं छोड़ सकती. तुम मेरी जिंदगी हो अगर यकीन ना हो तो आजमा कर देख लो.” “वक्त आने पर आजमा लूंगा,” सिराज ने कहा. फिर दोनों कालेज से निकलकर एक रेस्टोरेंट में चले गए. वहां दोनों ने नाश्ता किया. फिर सिनेमा देखने चल पड़े. सिनेमा खत्म होने के बाद तरन्नुम घर लौटी तो उस वक्त रात के 10:00 बज रहे थे. वह चुपके से अपने कमरे में चली गई, फिर खाना खाकर सो गई. दूसरे दिन सुबह जब वह उठी तो नौकरानी ने बताया कि उसके वालिद ने बुलाया है. हाथ मुंह धो कर वह अपने वालिद के कमरे की तरफ चली गई.

गनी साहब गुस्से में टहल रहे थे उनकी आंखों से शोले निकल रहे थे. तुम रात 10:00 बजे तक कल कहां थी? गनी साहब ने गुस्से से तरन्नुम को देखते हुए पूछा. “जी… जी… जरा सिनेमा चली गई थी.” तरन्नुम ने डरते डरते जवाब दिया. “मेरे मना करने के बाद भी तुम सिराज से मिलती हो. मैंने कई बार मना किया फिर भी तुम बाज नहीं आती हो?” “आखिर सिराज में कौन सी बुराई है. वह अच्छे खानदान का है बहुत नेक है. आज तक मैंने उसकी कोई शिकायत नहीं सुनी.” ‘खामोश रहो, गनी साहब ने बिगड़ कर आगे कहा “मैंने ऐसे नेक बहुत देखे हैं” “लेकिन…” तरन्नुम ने जवान खोला ही था कि गनी साहब फिर बोल पड़े “मैं उसकी तारीफ सुनना नहीं चाहता, बस इतना सुन लो कि अब उससे हरगिज दोबारा ना मिलना. अगर, तुमने उससे मिलना जुलना बंद नहीं किया तो इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए सदा के लिए बंद हो जाएंगे. मैंने साजिद हुसैन साहब के लड़के से तुम्हारा रिश्ता तय कर दिया है. अगर, वहां तक किसी ने यह बात पहुंचा दी तो क्या होगा?” यह सुनकर तरन्नुम के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई. उसके सामने साजिद हुसैन के जाहिल और आवारा लड़के मुमताज का पूरा किरदार उभर आया. वह कांप गई उसने कहा “क्या आपने मुझे इसीलिए पढ़ाया है कि मैं एक जाहिल और आवारा के दामन से अपना आंचल बांध जिंदगी भर रोती हूं.” “यह सच है कि मुमताज पढ़ा लिखा नहीं है” तरन्नुम के वालिद कहने लगे, “लेकिन वह आवारा नहीं है, वैसे बुराइयां किसमें नहीं होती हैं, मैं तो कहता हूं मुमताज सिराज से कहीं ज्यादा शरीफ है. नई तहजीब, अंग्रेजी तालीम और कालेज की आजाद फिजा ने तुमसे सोचने समझने की शक्ति छीन ली है, तुम्हें अच्छे बुरे की पहचान ही नहीं रही. तालीम हासिल करने का यह मतलब नहीं कि तुम पीतल को सोना और सोना को पीतल समझने लगो… आजकल की लड़कियां कालेज की झूठी चमक-दमक पर जाती है और फिर धोखा खाकर जिंदगी भर अफसोस करती हैं. उस वक्त उन्हें अपने किए पर बहुत अफसोस होता है. मैं तुम्हारा बाप हूं मैंने जो कुछ कहा है, तुम्हारे भले के लिए ही कहा है. मैं कभी यह नहीं चाहूंगा कि तुम खुश न रहो.”

तरन्नुम चुपके से अपने वालिद के कमरे से बाहर निकल आयी. फिर अपने कमरे में जाकर सारा दिन बिस्तर पर पड़ी रही. गुस्से में उसने ना खाना खाया और ना कालेज गई. मां ने लाख समझाया, लेकिन उसने खाना नहीं खाया. “बेटी तरन्नुम तू लाख पढ़ी लिखी है, फिर भी तू अभी बच्ची है. तेरे वालिद बूढ़े हैं, उन्होंने दुनिया देखी है. उन्होंने जो कुछ कहा तुम्हारी भलाई के लिए कहा.” “मैं अपना भला-बुरा खुद समझती हूं,” तरन्नुम ने कहा “मैं भी बीए में पढ़ती हूं… मैं भी अच्छे बुरे की पहचान रखती हूं. अब्बा जान मुझे सुखी देखना नही चाहते हैं.” “ऐसी बात नहीं है बेटी. पढ़ लेने से बच्चे बूढों जैसे समझदार नहीं हो जाते, तुम में समझदारी नहीं… तुमने नई रोशनी की आबोहवा में तालीम हासिल की है. तुम सिर्फ बाहरी चमक-दमक पर जाती हो, तुम में गहराई तक पहुंचने की समझ नहीं है. अगर तुमने अपने वालिद का कहना ठुकरा दिया तो जिंदगी भर ठोकर खाते रहोगी.” कह कर तरन्नुम की मां चली गई.

दूसरे दिन तरन्नुम कॉलेज गई. लेकिन क्लास में सिराज नजर नहीं आया. सिराज को ना देख कर उसके दिल में तरह तरह के ख्याल पैदा होने लगे. मगर दूसरी घंटी में सिराज आ गया. उसे देखकर तरन्नुम में जान आ गई. फिर क्लास खत्म होने के बाद दोनों एक रेस्टोरेंट में चले गए. “सिराज, आज वालिद ने मना किया है कि मैं तुमसे ना मिलू, क्योंकि वह मेरी शादी दूसरी जगह करना चाहते हैं… औरत जिंदगी में सिर्फ एक बार प्यार करती है और मैं भी तुम्हें अपना पति मान चुकी हूं… चलो आज ही हम दोनों सिविल मैरिज कर लेते हैं. मैं तुम्हारे लिए सब कुछ ठुकरा दूंगी.” “यह सब ठीक है तरन्नुम. लेकिन यहां शादी करना मुनासिब नहीं होगा. क्योंकि तुम्हारे वालिद इस शादी के खिलाफ हैं. मैने भी घर खत लिखा था. मेरे वालिद भी घर से निकालने की धमकी दे चुके हैं. इसलिए अच्छा होगा कि इस शहर को छोड़कर मुंबई चले और वहीं अपनी नई दुनिया बसाएं.” “मैं तैयार हूं,” तरन्नुम ने कहा “अच्छा यह बताओ कि चलना कब है?” “मैं सोच रहा हूं कि कल रात की गाड़ी से चलना अच्छा रहेगा. कल रात तुम 2:00 बजे स्टेशन पहुंच जाना. मैं बाहर ही तुम्हारा इंतजार करूंगा.

सिराज से प्रोग्राम तय कर तरन्नुम घर आकर सबकी नजरें बचाकर सफर का सामान इकट्ठा करने लगी. सारे कपड़े और एक अटैची में बंद कर लिए. दूसरे दिन रात के 1:00 बजे वह् चुपके से मां के कमरे में गई. फिर धीरे से ट्रंक खोल 25,000 रुपये निकाले और मां के सिरहाने एक खत रखकर चुपके से निकल गई. स्टेशन के बाहर सिराज उसकी राह देख रहा था. सिराज ने टिकट भी ले रखे थे. दोनों गाड़ी में जाकर बैठ गए. गाड़ी तेजी से आगे बढ़ती जा रही थी. साथ-साथ तरन्नुम के दिल में तरह-तरह के खयालात पैदा होने लगे. वह अपनी नई दुनिया का नक्शा बनाने लगी.

जब सुबह हुई तो शोर मच गया. तरन्नुम की मां खत ले जाकर उसके वालिद को दिया. उनकी आंखों में शोले थे. वह खत पढ़ने लगे. “जनाब अब्बा जान, आदाब. आप मुझे पढ़ा लिखाकर एक जाहिल के दामन से बांध देना चाहते थे. मैं अपनी जिंदगी को तबाह नहीं करना चाहती थी. इसलिए यहां से दूर बहुत दूर जा रही हूं, अपनी नई दुनिया का नक्शा लेकर. मेरी वजह से आपको तकलीफ तो जरूर होगी, लेकिन उम्मीद है कि आप अपनी बेटी को माफ कर देंगे. आपकी मजबूर बेटी तरन्नुम.” “तरन्नुम की मां,” तरन्नुम के वालिद ने गम भरी आवाज में कहा “तरन्नुम ने अपने बूढ़े बाप की इज्जत मिट्टी में मिला दी. लेकिन वह जिस रोशनी के पीछे भाग रही है, वह रोशनी नहीं अंधेरा है. भयानक अंधेरा. एक दिन तरन्नुम उसी अंधेरे में घुट-घुट कर मरेगी. सिराज उसे ठुकरा देगा.”

इसी तरह 4 महीने गुजर गए. मोहल्ले में चारों तरफ तरन्नुम के चर्चे अब तक हो रहे थे. मोहल्ले वाले गनी साहब को देखकर हंसते तो शर्म से उनका सिर झुक जाता. इसी गम में उनकी सेहत गिरने लगी. डॉक्टरों ने सलाह दी कि वह फिक्र करना छोड़े, लेकिन यह उनके बस की बात ना थी. तरन्नुम ने जो दाग उनको लगाया था, वह जिंदगी भर छूटने वाला नहीं था. उनकी हालत दिन-ब-दिन खराब होती गई.

एक दिन वह बाहर बैठे थे. तभी पोस्टमैन ने एक लिफाफा उन्हें पकड़ाया. उसे खोलकर पढ़ने लगे. “जनाब अब्बा जान, आदाब. ठोकर खाकर अब मेरी आंखे खुल गई. आपने जो कुछ कहा था, वह बिल्कुल सच निकला. मैंने जिसे सोना समझा वह पीतल निकला. मैं अच्छे और बुरे की पहचान ना कर सकी. आप ने सच ही कहा था कि नई तहजीब की नई रोशनी खतरनाक अंधेरा है, जिसमें तुम गलत रास्ते पर चल पड़ी हो. आखिर वही हुआ सिराज ने मुझे धोखा दिया. चली थी अपनी नई दुनिया का नक्शा बनाने… अब मैं कहीं की न रही. आपको भी मुंह दिखाने के काबिल नही रही… इस शहर में हर तरफ रोशनी जगमग आ रही है. लेकिन मुझे ऐसा मालूम हो रहा है कि हर तरफ खतरनाक अंधेरा है, जिसमें कोई रास्ता नजर नहीं आता, कहां जाऊं, क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता. आप की दुखियारी बेटी, तरन्नुम.”

खत पढ़कर तरन्नुम के वालिद के दिल को गहरी चोट लगी. बीमारी ने पहले ही कमजोर बना दिया था. अतः वे इस सदमे को सह न सके. एक हल्की सी आह उनके मुंह से निकली और वे सदा सदा के लिए चुप हो गए… उनका घर उनकी बेटी की नई दुनिया के नक्शे की नई रोशनी के अंधेरे में डूब गया था. (डॉ मो शगीर आलम).

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