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नालंदा : भारत का एक अनोखा मंदिर जहां प्रसाद में चढ़ाया जाता है लंगोट, बाबा के दरबार में आषाढ़ गुरु पूर्णिमा को लगेगा भक्तों का रेला

नालंदा में बिहारशरीफ के बाबा मणिराम अखाड़ा मंदिर शायद भारत का एकलौता ऐसा मंदिर है, जहां मनोकामना पूरी होने पर लंगोट चढ़ाया जाता है. हर साल यहां पर आषाढ़ पूर्णिमा से सात दिवसीय मेला लगता है, जहां बिहार ही नहीं बल्कि कई राज्यों से लाखों श्रद्धालु बाबा की समाधि पर लंगोट चढ़ाने पहुंचेंगे.

चली आ रही परंपरा के अनुसार पुलिस और प्रशासन के अधिकारी सबसे पहले बाबा की समाधि पर लंगोट चढ़ाएंगे. इसी के साथ मेले की शुरुआत होगी. रामनवमीं में हुए हिंसक झड़प के कारण इसबार शहर में गाजे-बाजे के साथ लंगोट जुलूस नहीं निकलेगा.

बाबा मणिराम अखाड़ा न्यास समिति के पुजारी विश्वनाथ मिश्रा ने बताया कि बाबा मणिराम का यहां आगमन 1238 ई में हुआ था. वे अयोध्या से चलकर यहां आएं थे। बाबा ने शहर के दक्षिणी छोर पर पंचाने नदी के पिस्ता घाट को अपना पूजा स्थल बनाया था. वर्तमान में यही स्थल ‘अखाड़ा पर’ के नाम से प्रसिद्ध है. ज्ञान की प्राप्ति और क्षेत्र की शांति के लिए बाबा घनघोर जंगल में रहकर मां भगवती की पूजा-अर्चना करने लगे. लोगों को कुश्ती भी सिखाते थे. उत्पाद निरीक्षक कपिलदेव प्रसाद के प्रयास से 6 जुलाई 1952 में बाबा के समाधि स्थल पर लंगोट मेले की शुरुआत हुई थी. इसके पहले रामनवमी के मौके पर श्रद्धालु बाबा की समाधि पर पूजा-अर्चना करने आते थे. तब से हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन से सात दिवसीय मेला यहां लगता है.

कहा जाता है कि कपिलदेव बाबू को पांच पुत्रियां थी. बाबा की कृपा से उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी. बाबा की कृपा इतनी कि उनके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता. सच्चे मन से मांगी गयी मुराद जरूर पूरी होत है. बाबा मणिराम और मखदूम में थी खूब दोस्ती बाबा मणिराम और महान सूफी संत मखदूम साहब में काफी गहरी दोस्ती थी. ये भी कहा जाता है कि एक बार वे दीवार पर बैठकर दातुन कर रहे थे, तो मखदुम साहब ने मिलने की इच्छा जाहिर की तो उन्होनें दीवार को ही चलने का आदेश दिया तो दीवार ही चलने लगी थी. दोनों संतो की दोस्ती और गंगा जमुनी तहजीब की लोग आज भी मिसाल देते हैं. (प्रणय राज की रिपोर्ट).

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