परिवार में बूढ़ों की देखभाल
श्वेता
उपनिषद में कहा गया है, सौ साल तक जीना व काम करना चाहते हैं, इससे बड़ी मुक्ति कोई नहीं हो सकती है। ज़ाहिर है इसमें अच्छा स्वास्थ्य, लंबी उम्र और सामाजिक रूप से उपयोगी ज़िंदगी शामिल है। यह फलसफा काफी सकारात्मक है। इससे हमें यह बढ़ावा मिलता है कि हम बुढ़ापे को जीवन के स्वाभाविक हिस्से के रूप में देखें न कि एक बीमारी या समस्या के रूप में। आधुनिक चिकित्सा से उम्र बढ़ गई है और बुढ़ापे का स्वास्थ्य भी बेहतर हो गया है। जीवन और दुनिया के प्रति सही रुख, सही ढंग से अपनी देखभाल से सौ साल तक सार्थक ज़िंदगी जी पाना असंभव नहीं रह गया है।परिवार में बूढ़ों की देखभाल कैसी होती है यह कुछ आर्थिक स्थिति और संस्कारों से तय होता है। मॉं बाप, दादा दादी, नाना नानी, और बच्चों के बीच के आपसी संबंध भी यह तय करते हैं कि परिवार में बूढ़ों की स्थिति कैसी होगी। बूढ़ों की देखभाल का अर्थ है उनकी शारीरिक और भावनात्मक ज़रूरतें पूरी करना।
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