आरक्षण पर एक युवा नेता के विचार : जातिगत के बजाए आर्थिक स्थिति पर मिले आरक्षण का लाभ
अभिषेक श्रीवास्तव
जिस वक्त हम गुलाम थे, हमारे पूर्वजों ने अपनी जान देकर देश को आजाद कराया। उनका सपना था कि हमारे देश के सभी वर्गों के लोग आर्थिक , सामाजिक ,नैतिक, धार्मिक और शैक्षणिक रूप से समान हो और समाज के मुख्यधारा से जुड़कर देश के विकास में अपना योगदान दें. परंतु आजादी के बाद देश की हालात किसी से छिपी नहीं है. आज समाज को तोड़ मरोड़ कर अपनी राजनीतिक रोटी सेकने वाले लोगों ने जाति, धर्म और संप्रदाय की राजनीति कर देश को कई वर्षों पीछे धकेल दिया है. ये कहना है सीवान जिला जदयू के के पूर्व प्रवक्ता व युवा नेता निकेश चन्द्र तिवारी का.
निकेश का मानना है कि देश को पीछे होने में कई कारण हैं. उसी में से एक कारण आरक्षण भी है. संविधान निर्माताओं ने आरक्षण का प्रावधान इसलिए किया कि उस वर्ग के पिछड़े लोग आरक्षण का लाभ उठा कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ें. परंतु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो सका. आज आरक्षण का लाभ वही लोग उठा रहे हैं जो उस वर्ग में हर तरह से संपन्न है. निश्चित तौर पर उस वर्ग के संपन्न लोग अपने ही वर्ग के लाचार और गरीब भाइयों का हकमारी कर रहे हैं. इसलिए गरीबी और गरीबों का आकलन होना चाहिए. इसका एक लेवल होना चाहिए और आरक्षण में यह प्रावधान होना चाहिए कि उस लेवल तक के लोगों को ही आरक्षण का लाभ मिल सकेगा। इसलिए मेरे समझ से निश्चित तौर पर आरक्षण पर समीक्षा होना चाहिए.
निकेश कहते हैं ऐसा नहीं है कि मैं आरक्षण का विरोधी हूं. मैं भी आरक्षण का समर्थन करता हूं. परंतु जातिगत रूप से दी जाने वाली आरक्षण का मैं विरोध करता हूं. हर जाति और धर्म में गरीब लोग हैं. उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए. आरक्षण जातिगत आधार पर ना होकर आर्थिक आधार पर होना चाहिए. यह आरक्षण समाजवाद में रोड़ा बन के रह गया है. इसके बदौलत वही लोग बढ़ रहे हैं जो पहले से ही बढ़े हैं. यह आरक्षण भगवान शंकर और माता पार्वती के उस कहानी के तरह बन गया है, जिसमें माता पार्वती ने उजड़े हुए हुए कुवें को ही उजाड़ कर अपना चूल्हा बनाया था. उन्होंने कहा कि जिस उद्देश्य से आरक्षण की व्यवस्था लागू की गई थी, सही मायने में उस उद्देश्य को पूरा करना है तो जाति भूलकर आर्थिक दृष्टिकोण से पिछड़े हुए प्रत्येक जाति के लोगों को आरक्षण दिया जाए. तब ही सही मायने में वे लोग समाज की मुख्यधारा से जुड़ पाएंगे.
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