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रिश्तों से बड़ी होती उम्मीदें…. कहाँ तक सही

स्वेता

https://abhibharat.com//wp-content/uploads/2017/10/relationship.jpgअपने रिश्तेदारों और परिजनों में किसी को भी बुरे व्यक्ति के रूप में देखना बहुत आसान है। ‘मेरे पिता पियक्कड़ हैं’, ‘मेरे पति गुस्सैल हैं’, ‘मेरा बेटा धोखेबाज है’, ‘मेरी सास बड़ी कडियल है’ ऐसा कहने वाले कई लोग मिलेंगे। अपने दिल से महसूस कर बताइए, क्या आप दिन के चौबीसों घंटे नेक और ईमानदार रहते हैं? आपकी खुशी किसी एक चीज में है, उनकी खुशी किसी और चीज में, बस। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि वे गैरजिम्मेदारी बरतें। लेकिन उनकी आदतों और चाल-चलन को देखकर उस आधार पर ही उनके साथ रिश्ता मान्य होगा, आपका यह विचार ठीक नहीं है, मैं यही कहना चाहता हूं। फायदा होने पर ही किसी को स्वीकार करना, नहीं तो उसका तिरस्कार करना परिवार का लक्षण नहीं है। वह तो व्यापार है, लेन-देन का व्यापार। परिवार का मतलब क्या है? बस थोड़े से लोगों को अपनों के रूप में स्वीकार करना ही सच्चे मायने में परिवार है। फायदा होने पर ही किसी को स्वीकार करना, नहीं तो उसका तिरस्कार करना परिवार का लक्षण नहीं है। वह तो व्यापार है, लेन-देन का व्यापार। उनकी सफलता-असफलता का ख्याल किए बिना, वे स्वस्थ हैं या बीमार इस तरह के विचारों पर गए बिना, खुद को उनके साथ जोड़े रखना ही परिवार के सही मायने हैं। आपके परिवार का कोई सदस्य यदि गलत राह पर चल रहा हो, तो उसे बचाना आपकी जिम्मेदारी बनती है।
उम्मीदों के अनुसार न होने पर कमियाँ दिखती हैं हमें
जो लोग हमारी उम्मीदों के अनुसार नहीं होते, वे हमें बेवकूफ दिखाई देते हैं। आप इस बात को मत भूलिए कि इसी कारण से आपको भी बेवकूफ के रूप में देखने वाले सौ लोग होंगे। आप शहर में पले बढ़े हैं। फर्राटे से अंग्रेजी बोलते हैं। कंप्यूटर जैसी कुछ मशीनों को चलाने की कला सीख गए हैं। लेकिन इन सब चीजों के बूते पर क्या अपने को बड़ा बुद्धिमान मानते हैं? अगर आपको लगता है आपके माँ पिता या वो रिश्तेदार जो पढ़े लिखे नही है उनकी तरह क्या आप गाय के थनों से उनकी तरह दूध दुह सकते हैं? पांव पर चोट खाए बिना हल को कम-से-कम एक फुट तक चलाना आता है? अगर आपसे यह सब नहीं हो सकता तो क्या आपके ऊपर मूर्ख का ठप्पा लगा दें? आपने ज्यादा से ज्यादा खेती के बारे में किताबों में पढ़ा होगा। उन्होंने उसे खेत में पढ़ा है। उनका ही तो अनुभव सीधा है, गहरा है। अपनी बनिस्बत अपने बेटे को बेहतर स्थिति में लाना है – इस विचार के साथ आपको शहर की शिक्षा और सुविधाएं मुहैया कराने वाले वे लोग अक्लमंद हैं या आप? यदि आप वास्तव में चाहते हैं कि इसके बदले में उन लोगों को अच्छी हालत में ले आना है तो उन्हें बेवकूफों की तरह न देखकर उनके प्रति स्नेह दिखाते हुए जो आप जानते हैं उसे उनके साथ बांट लीजिए। आप एक माहौल में रहते हैं, वे लोग दूसरे माहौल में बस। इसमें बुद्धिमानी की बात कुछ भी नहीं है। मूर्खता की बात भी नहीं है। आपके मातहत काम करने वाला या आपके परिवार का कोई छोटा सदस्य आपके प्रति आदर नहीं दिखाता, क्या इस बात को लेकर दुखी होने वाले व्यक्ति हैं आप? तो फि र दुरुस्त किए जाने की जरुरत उन लोगों को नहीं, बल्कि आपको है।
खालीपन को भरने के लिए पैदा होती हैं उम्मीदें
एक बात समझ लीजिए। आपका जो ‘स्व’ है वह किसी भी सम्मान की उम्मीद नहीं करता। स्वाभिमान जैसी कोई चीज नहीं है। वह काल्पनिक मनोभाव है। आप दूसरों से किसलिए सम्मान की उम्मीद करते हैं? दूसरों का ध्यान आपकी तरफ मुडऩा चाहिए, इसी उम्मीद के साथ न? सच्चार्ई यह है कि आज के मुकाम पर आप खुद में पूर्ण होने का एहसास नहीं कर पाते। सोचते हैं कि आप आधे-अधूरे हैं। उस खाली स्थान को भरने के लिए आपको दूसरों के ध्यान की जरूरत पड़ती है। अपने अधिकार या स्नेह के बल पर आदर या सम्मान की मांग करना, भीख मांगने के समान है। भोजन के लिए किसी के सामने हाथ फैला सकते हैं, संवेदना के लिए नही.

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