कैमूर : प्राचीन कालीन बुनकरी का कार्य विलोपन के कगार पर, कम आमदनी के कारण बुनकर दूसरे कार्यों की ओर हो रहें आकर्षित
कैमूर में कालीन के बुनकरों की स्थिति दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है. नतीजतन, कालीन बुनकर अब दूसरे कामों की ओर आकर्षित होने लगे हैं, जिससे प्राचीन काल से मशहूर कालीन बुनकरी का कार्य विलोपन के कगार पर है.
अपने कार्य से विमुख होने के पीछे कालीन बुनकरों का कहना है कि उनको अब उनके कार्य और मेहनत के हिसाब से मेहनताना नहीं मिलता है. बता दें कि कैमूर जिले में 20 वर्षो से कालीन बुनने का काम होता था, जिससे गांवों के गरीब मजदूर बड़ी संख्या में इस कार्य में जुटे थे. पर कम मजदूरी और समय ज्यादा लगने से दूसरे काम के तलाश में भटक रहे है. जिले के भाववनपुर प्रखंड के बसंतपुर गांव में जब कालीन बुनने का काम चालू हुआ तो मजदूरों में काफी खुशी हुई कि अब प्रदेश नहीं जाना पड़ेगा, पर काम के बदले कम मेहनताना मिलने लगी तो 90 में से 60 मजदूर दूसरे काम के तलाश करने लगे.
बुनकर बताते है कि 12 से 13 घण्टे काम का मजदूरी 250 रुपया मिलता है, जो कम्पनी काम लेती है आज तक पुराने मजदूरी पर ही काम कराती है जिससे काफी परेशानी होती है. वहीं कालीन बुनकरों के मालिक भी कम परेशान नहीं है. कालीन मालिक श्रवण कुमार की माने तो कम्पनी के ऑर्डर पर काम करते हैं, सारा समान कम्पनी का रहता है. बस तैयार कर यूपी के भदोही भेजना पड़ता है. पैसे के अभाव में यहां लोग काम करते है. बिहार सरकार और जिला प्रशासन भी कोई मदद नहीं करती है जिससे काफी परेशानी होती है.
गौरतलब है कि कैमूर से बना कालीन देश के साथ अमेरिका, चीन और तिब्बत जैसे देशों में जाता है. वहां बड़ी मांग है पर सही मेहनताना नहीं मिलता है. गांव के कालीन कारीगर अब दूसरे काम की ओर जा रहे है. (विशाल कुमार की रिपोर्ट).
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