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बेगूसराय : जीविका दीदी के सहारे कोरोना वायरस से लड़ेगी सरकार

जानलेवा कोरोना वायरस के संक्रमण से जहां सारा विश्व दहशत में है वहीं बिहार सरकार जीविका की दीदीयों के सहारे वार फाइटिंग कर रही है जो कायदे से अटपटा लग रहा है. स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव के आदेशानुसार लॉकडाउन के दौरान जीविका की दीदी फेस मास्क बनाएगी और वही संक्रमण से बचाव के लिए समुदाय के बीच वितरित किया जाएगा.

यहां सवाल यह है कि महामारी की इस विकट परिस्थिति में जितने कम समय मे अधिकतम मास्क की जरूरत है क्या उतनी मात्रा में जीविका की दीदी स्वयं मास्क तैयार कर पायेगी? वह भी तब जब संक्रमण फैलाव से बचने के लिए रोज नए नए तरीके व सुझाव सामने आ रहे हों. आशय यह कि संक्रमण से बचाव के लिए सभी दीदी इतनी संवेदनशील व सशंकित हो गयी हैं, भयभीत हो गयी हैं कि मास्क बनाने के प्रति वे उत्साहित नहीं हैं. उनके परिजन भी समाजिक दूरी को हरहाल में बहाल रखना चाहते हैं. बाहरी किसी वस्तु का एवम व्यक्ति का अपने घरों में प्रवेश हरगिज नहीं चाहते हैं. ऐसे में जीविका दीदी के सहारे मास्क बनवाकर समुदाय का समय रहते बचाव के प्रयास पर प्रश्न चिह्न लगना लाजिमी है.

जीविका की सिलाई-कटाई में कुशल दीदी की संख्या एवं बिहार की जनसंख्या का तुलनात्मक अनुपात भी यही कह रहा है. इधर, स्थानीय प्रशासन इन सारी व्यवहारिक परेशानियों को समझते हुए भी मजबूरन नासमझ बना हुआ है. यह घड़ी बाल की खाल निकालने की नहीं है, लेकिन इतना तो अवश्य ही सोचा या समझा जा सकता है कि क्या बिहार की जीविका दीदियां इतनी कुशल व दक्ष हो गयी हैं या फिर उनके पास सुव्यस्थित संसाधन उपलब्ध हैं कि मांग के हिसाब से वे मास्क बना सके. जाहिर है जवाब एकदम नकारात्मक ही आएगा, तो क्या बावजूद इसके दीदी के बलबूते ही कोरोना से लड़ा जाएगा?

विचारणीय तथ्य यह भी कि जो मास्क दीदी तैयार कर रही हैं या बना चुकी हैं वे क्या कोरोना वायरस के संक्रमण को रोक पाने में सक्षम हैं? क्या इस मास्क की चिकित्सकीय गुणवत्ता मानक के अनुरूप है? इसकी क्या गारंटी है कि दीदी द्वारा तैयार मास्क बिल्कुल ही वायरस रहित ही है? विशेषज्ञ तो इस मास्क को उपयुक्त नहीं मानते हैं. तो फिर ऐसे में इस मास्क के लिए हाय तौबा क्यों? अच्छा तो यही होगा कि समुदाय को जागरूक कर घर मे ही मौजूद साफ व स्वच्छ सूती कपड़े जैसे गमछा, रुमाल, तौलिया आदि से सिर व मुंह को पूरी तरह से ढकने की सलाह दी जाती तो समय रहते परिणाम सकारात्मक रहेगा.

आपदा की इस घड़ी में सरकार को एक अन्य विकल्प पर भी गौर करना सामयिक हो सकता है कि प्रत्येक जिला व अनुमंडल स्तर पर एक या दो ऐसे खाली सुव्यस्थित स्थानों को चिह्नित किया जाय और वहीं दक्ष कारीगरों को सेनेटाइज कर समाजिक दूरी का मेंटेन कराते हुए अगर मास्क तैयार कराया जाता तो बेहतर होता. इसमें स्थानीय दर्जी एवं बैग कारीगर को लगाया जा सकता है. ऐसे कारीगरों के लिए निर्माण स्थल पर ही कुछ दिनों के लिए खाना पीना व ठहरने की समुचित व्यवस्था करनी होगी. मास्क निर्माण के लिए निजी- सरकारी स्कूल-कॉलेजों, बड़े गोदामों या फिर बड़े खाली पड़े घरों को चुना जा सकता है. स्थान का चुनाव स्थानीय स्तर पर छोड़ देना चाहिये. सिर्फ कारीगरों को मास्क बनाने की सामग्री उपलब्ध कर देना होगा. यकीन मानिए यह दक्ष कारीगर व दर्जी जीविका दीदी से बेहतर व शीघ्र मास्क तैयार कर देगा वह भी थोक मात्रा में.

इन दिनों एक सरकारी प्रचलन खूब देखने को मिल रहा है. अधिकांश कार्य सरकार जीविका के ही माथे सौप दे रही है. बेहतर होगा कि जीविका व उसकी दीदी को पेनेसिया मेडिसीन बनाने से सरकार बचे. अन्यथा जिस अवधारणा के लिए जीविका को खड़ा किया गया है वही कुंध हो जाएगी. (पिंकल कुमार की रिपोर्ट).

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