कहानी : सौतेली मां
एक दिन शाम को 5 बजे जब हम लोग बैठक में बैठ कर चाय पी रहे थे तो दरवाजे की घंटी बजी. मेरे पुत्र ने दरवाजा खोला और मुझे बताया कि पड़ोस में रहने वाले सुरज भैया आए हैं. मैने सुरज को वहीं बुला लिया और उस का हालचाल पूछने लगा.
मैने देखा कि सुरज का चेहरा उतरा हुआ है और साफ दिख रहा है कि वह तनाव में है. मुझे यह भी लगा कि वह कुछ कहना चाहता है, किंतु कहने का साहस नहीं कर पा रहा है. मैने उससे कहा, “बेटे, तुम्हारे मन में जो भी बात है, उसे बिना किसी हिचक के कह दो. यदि तुम्हारी बात मुझे पसंद न आई तो भी मैं तुम से नाराज बिलकुल नहीं होऊंगा, बल्कि यदि हो सका तो तुम्हारी मदद ही करूंगा.” “चाचाजी, मुझे आप से यही उम्मीद थी, किंतु समझ में नहीं आता कि इतनी बड़ी बात कैसे कहूं ?” सुरज ने कहा. तभी बैठक के दरवाजे पर आ कर एक आदमी ने सुरज से कहा, “साहब, सवारी को जल्दी से रिकशे से उतारिए क्योंकि काफी देर हो गई है.”
“क्यों, बाहर रिकशे में तुम किसे छोड़ आए हो ?” मैने पूछा. “चाचाजी, वह मेरी पत्नी है,” सुरज ने जवाब दिया. “क्या ? तुम्हारी शादी कब हुई ?” मैने चौक कर उससे पूछा. वह मेरे पैरों पर गिर पड़ा और बोला, “कल शाम को ही मेरी शादी स्व राजदेवजी की लड़की आरती के साथ आर्य समाज मंदिर में हुई है. कन्यादान खुद आरती की सौतेली माता सुनीता देवी ने किया है. विदाई के बाद हमारे पास रहने का कहीं ठिकाना न होने के कारण रात हम ने रेलवे प्लेटफार्म पर काटी है. अगर आप हम दोनों को आज रात अपने यहां ठहरने दें तो मैं वादा करता हूं कि कल तक कहीं न कहीं मकान का इंतजाम जरूर कर लूंगा, शादी क्यों और कैसे हुई, यह एक लंबी कहानी है, जो मैं आप को बाद में बताऊंगा. अभी मुझे आप की मदद की सख्त जरूरत है.”
सुरज की बात सुन कर मैं और मेरी पत्नी दोनों ही हैरान रह गए. मैने तुरंत पत्नी से कहा, “तुम देख क्या रही हो, जा कर आरती को जल्दी से अंदर ले आओ.” मेरी पत्नी आरती को अंदर ले आई. उसे देख कर मुझे बहुत दुख हुआ, वह एक मामूली सी सूती साड़ी पहने हुई थी, न तो उस के बदन पर कोई गहना था और न ही नई दुलहन जैसा सिंगार. वह थोड़ा लंगड़ा कर चल रही थी, जिससे मैने अंदाजा लगाया कि हो सकता है, उसे पैर में कहीं कोई चोट लग गई हो.
खैर, मैने सुरज से कहा, “जब तक तुम्हें कहीं मकान नहीं मिल जाता, तब तक मेरे यहां आराम से रह सकते हो. किंतु मेरी समझ में यह बात नहीं आ रही है कि तुम अपनी गृहस्थी का खर्च कैसे चलाओगे, क्योंकि तुम अभी छात्र हो और बेरोजगार हो. अगर तुम नौकरी लगने के बाद शादी करते तो ज्यादा अच्छी बात होती.”
“चाचाजी, आप बिलकुल सही बात कह रहे हैं, किंतु मुझे यह शादी आरती की जान बचाने के लिए करनी पड़ी…” “वह कैसे?” मैने हैरानी से पूछा. “आप तो जानते ही हैं कि मैने अपने दो दोस्तों के साथ एक कमरा, जो आरती के मकान की ऊपरी मंजिल पर है, किराए पर ले रखा है. सुनीता देवी आरती की सौतेली मां हैं और आरती को दिनरात तंग करती रहती हैं. छः महीने पहले आरती के पिताजी की मौत के बाद तो आरती अनाथ ही हो गई.” “चूंकि मैं भी अपने माता-पिता की मौत के बाद अनाथ ही हो गया था, इसलिए आरती के साथ मेरी पूरी हमदर्दी थी. आरती पर सुनीता देवी के जुल्म दिनोंदिन बढ़ते चले गए. कल तो उन्होंने गजब ही कर दिया.” “कल घर की सफाई करते समय आरती के हाथ से कांच का एक कीमती फूलदान नीचे गिर कर टूट गया. इस पर आरती की सौतेली मां ने उसे डंडे से इतना मारा कि वह बेहोश हो कर नीचे गिर पड़ी. मैं उस समय ऊपर अपने कमरे की खिड़की से आंगन का पूरा नजारा देख रहा था. जब आरती बेहोश हो कर नीचे गिर गई तो मुझ से रहा न गया. मैं तुरंत नीचे गया और सुनीता देवी के हाथ से डंडा छीनते हुए उन्हें आरती के लिए डाक्टर को बुलाने की बात कही.” “इस के जवाब में उन्होंने कहा, “यदि तुझे इस की इतनी ही फिक्र है तो इस से शादी और अपने घर ले जा कर करना इसकी सेवा. हिम्मत है, कर ले है तो ‘हां’ कह कर देख. अगर इसी वक्त तुम दोनों की शादी न करवा दी तो मेरा भी नाम सुनीता नहीं.” “उन के कड़वे वचन सुन कर मुझे भी गुस्सा आ गया और उन्हें कह दिया, ‘ठीक है, मैं अभी इसी वक्त आरती से शादी करने को तैयार हूं बशर्ते कि आरती को यह रिश्ता मंजूर हो.’ “फिर मैने आरती से इस बारे में पूछा. जब उस ने अपनी रजामंदी जताई तो मैने सुनीता देवी से कहा, ‘अब आप जिस तरह की शादी करना चाहती हैं और जहां करवाना चाहती हैं, वैसा ही कीजिए… मैं बिलकुल तैयार हूं.’ “इस पर सुनीता देवी ने मुझ से आर्य समाज मंदिर में चलने को कहा. वहां एक पंडितजी को बुला कर आरती के साथ मेरा विवाह करवा दिया. साथ ही जिस कमरे में मैं अपने दो दोस्तों के साथ रहता था, वहां से भी मुझे निकाल दिया. आरती के पास सिर्फ वही कपड़े हैं जो वह पहने हुए है. अब आप ही बताइए कि क्या मैं ने कोई गलत काम किया है ?” सुुुरज नेे पूछा.
“नही बेटे तुमने कोई गलत काम नही किया है, किंतु इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सारा काम काफी जल्दबाजी में किया गलत काम किया है,” मैने कहा.
दूसरे दिन जब मुझे मालूम हुआ कि आरती ने हायर सेकेंडरी में अच्छे नंबर लिए हैं तो मैने सुरज और आरती को एक सुझाव दिया. बैठक में मेरे अलावा मेरी पत्नी, सुरज और अनिता बैठी थी. मैने सुरज से कहा, “बेटे, रहने लायक एक कमरे वाला मकान तो मैं तुम्हें एक हफ्ते के अंदर कहीं न कहीं दिला दूंगा, किंतु समस्या यह है कि तुम अपनी गृहस्थी का खर्च कैसे चलाओगे ? मुझे पता चला है कि हायर सेकेंडरी में आरती ने सांइस और अंगरेजी में काफी अच्छे नंबर लिए हैं. मेरा सुझाव है कि अपने नए घर में आरती यदि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना चालू कर दे तो अच्छी आमदनी हो जाएगी.” “चाचाजी, मैं आप की बात से पूरी तरह सहमत हूं,” आरती ने कहा. “सुरज, तुम ने भी पढ़ाई के अलावा क्या कोई और योग्यता हासिल की है ? “मैने उस से पूछा. “जी हां… मैने हिंदी और अंगरेजी में आराम से टाइपिंग की परीक्षा पास की है और इसी बिना पर मैं नौकरी पाने की कोशिश भी कर रहा हूं,” सुरज ने कहा.
“यह तो बड़ी अच्छी बात है. मैं फिलहाल के लिए तुम्हें एक हिंदी टाइपराइटर कहीं से किराए पर दिलवा देता हूं, बाद में अंगरेजी टापराइटर का इंतजाम भी हो जाएगा. तुम मन लगा कर अच्छी तरह से टाइपिंग का कार्य करोगे तो तुम्हारे पास इतना अधिक काम आ जाएगा कि कर नहीं पाओगे.”
“मैं आप की बात पर पूरापूरा खयाल रखूगा और आप का यह एहसान जिंदगी भर नहीं भूल पाऊंगा,” सुरज ने कहा.
एक सप्ताह बाद वे अपने नए घर में चले गए. इस घटना के लगभग 4 माह बाद एक दिन सुबह 7 बजे मैं और मेरी पत्नी बाहर बगीचे में बैठे चाय पी रहे थे कि तभी एक औरत ने हम दोनों को नमस्कार कर कहा, “मैं आरती की मां सुनीता देवी हूं. मैं ज्यादा समय नहीं लूंगी, 5 मिनट में ही अपनी बात कह कर चली जाऊंगी.” “लेकिन पहले बैठिए और बताईए कि आप के यहां आने का मकसद क्या है ? “मैंने पूछा. मुझे मालूम है कि आप ने आरती और सुरज की काफी मदद की है और वे दोनों आजकल एक सुखी जीवन जी रहे हैं” “देखिए, हम ने इनसानियत के नाते जो कुछ बन पड़ा, सो किया.” ‘मैं मकान के कागजात आप को देने आई हूं, इन कागजातों के मुताबिक मैं ने अपना घर आरती और सुरज के नाम कर दिया है और कल ही यह घर छोड़ कर जा रही हूं. किंतु आप से हाथ जोड़ कर विनती है कि यह बात छः माह तक सुरज और आरती को न बताएं. “दोनों ने देखा कि यह कहते-कहते उन की आंखों में आंसू छलक आए हैं. “अच्छा, अब मैं चलती हूं, “यह कह कर जब वह जाने को उठ खड़ी हुई तो मेरी पत्नी ने उन्हें बैठा लिया और कहा, “बहनजी, हम लोगों की समझ में तो कुछ भी नहीं आ रहा है. आप से विनती है कि साफसाफ पूरी बात बताएं वरना हम आरती और सुरज को भी कुछ नहीं समझा पाएंगे. खैर, पहले मैं चाय बना कर लाती हूं.
“चाय पीने के बाद मैने सुनीता देवी से कहा, “देखिए, अपने पति की मौत और आरती की शादी के बाद आप बिलकुल अकेली रह गई हैं . अब जब आप यह मकान भी सुरज और आरती को दे रही हैं तो खुद कहां रहेंगी ? मेरे खयाल में तो यह मकान अभी आप अपने पास ही रखिए… आखिर आप को भी तो एक ठिकाना चाहिए. मैं तो यह समझ नहीं पा रहा कि आप ऐसा क्यों कर रही है ?” मैने सुनीता देवी को समझाते हुए कहा. “भाई साहब, यह मैं आप को नहीं बता सकती कि मैं ऐसा क्यों कर रही हूं.” यह कहते-कहते वह फूट-फूट कर रोने लगी. उन की दशा देख हम दोनों घबरा गए. मेरी पत्नी ने उन्हें अंदर ले जा कर सोफे पर लिटाया और धीरे-धीरे उन से सारी बात पूछ ली. बाहर आ कर पत्नी ने जब पूरी बात बताई तो मैं भी हैरान रह गया. पत्नी की आंखें भी भर आई थीं और मैं भी सोच रहा था कि क्या ऐसा भी हो सकता है ?
सुनीता देवी से जो बातें मालूम हुईं, वे कुछ इस तरह थीं … सुनीता देवी वैसी सौतेली मां नहीं थीं, जैसा कि आमतौर पर लोग समझते हैं. आरती को वह बहुत प्यार करती थीं, किंतु पति की मौत के बाद वह घबरा गई. उन की तबीयत भी खराब रहती थी. एक दिन डाक्टर ने जब उन्हें बताया कि उन्हें ‘ब्लड कैंसर’ हो गया है और वह चंद महीनों को ही मेहमान हैं तो वह और अधिक परेशान हो गई. उन्हें सब से बड़ी चिंता इस बात की थी कि उन की मौत के बाद आरती का क्या होगा. साधारण रीति-रिवाजों के साथ दहेज वाली शादी करने के लिए उन्हें यह मकान बेचना पड़ता. जिस के लिए उन का मन तैयार नहीं था. ब्लड कैंसर की बात भी उन्होंने आरती से छिपा रखी थी. उन के मकान की ऊपर वाली मंजिल में सुरज एक कमरे में अपने दो दोस्तों के साथ रहता था. सुनीता देवी को वह पसंद था और उन्होंने आरती के लिए मन ही मन उसे चुन भी लिया था. वह अब यह चाहने लगी थीं कि किसी तरह सुरज इस शादी के लिए तैयार हो जाए. एक बार उन्होंने जब सुरज से घुमाफिरा कर उस की शादी के बारे में पूछने की कोशिश की तो उस ने साफसाफ कह दिया कि वह नौकरी लगने के बाद ही शादी के बारे में सोचेगा. उस के ये विचार सुन कर सुनीता देवी की चिंता और अधिक बढ़ गई. नतीजन, उन्होंने एक नया तरीका खोज निकाला, उन्होंने आरती को तंग करना शुरू कर दिया. उन्हें पूरा भरोसा था कि आरती पर होते हुए जुल्मों को सुरज सहन नहीं कर पाएगा और उस का हाथ थामने को मजबूर हो जाएगा. आखिर में उन की योजना कामयाब हुई तथा सुरज ने आरती के साथ विवाह करना कबूल कर लिया. अब चूंकि सुनीता देवी को अपनी मौत करीब आती महसूस हो रही थी. इसलिए वह अपने मकान को आरती और सुरज के नाम कर खुद मुंबई जा कर अपने भाई के घर रह कर जीवन के आखिरी चंद दिन बिताना चाहती थीं. साथ ही वह मुंबई के कैंसर अस्पताल में अपना इलाज भी कराते रहना चाहती थीं. हालात से पूरी तरह वाकिफ होने के बाद हम दोनों ने सुनीता देवी से उसी मकान में रहने को कहा तथा बीचबीच में मुंबई जा कर अपना इलाज करवाते रहने की भी सलाह दी, किंतु सुनीता देवी अपनी बात पर डटी रहीं और मकान के कागजात मुझे दे कर दूसरे ही दिन मुंबई अपने भाई के पास चली गईं. जाते-जाते उन्होंने अपने मकान की चाबी मुझे दे दी तथा मुझ से और मेरी पत्नी से यह वादा करवा लिया कि यह बात उन की मौत के बाद ही आरती व सुरज को बताई जाए.
तकरीबन 4 माह बंबई से सुनीता देवी के भाई का पत्र आया. उसमें लिखा था कि सुनीता देवी का अंत लगभग समीप आ गया है और उन की आखिरी इच्छा आरती व सुरज को देखने की है, इसलिए आप उन दोनों को ले कर तुरंत मुंबई आ जाएं. मैने सुरज और आरती को सारी बात बताई तो वे सन्न रह गए और तुरंत हम सब मुंबई जाने की तैयारी करने लगे. रास्ते में आरती रोती रही. उसके और सुरज के मन में यह बात बारबार चुभ रही थी कि सुनीता देवी को उन्होंने कितना गलत समझा. सफर के दौरान मैं और मेरी पत्नी सुरज व आरती को धीरज बंधाते रहे तथा समझाते रहें. हम लोग जब सुनीता देवी के भाई के घर पहुंचे तो पाया कि सुनीता देवी आखिरी सांसें ले रही हैं. सुरज व आरती को देख वह मुसकराई. सुरज व आरती उन के हाथों को अपने हाथों में ले कर फूट-फूट कर रोने लगे. कुछ घंटों बाद ही सुनीता देवी की मौत हो गई. जब सुनीता देवी की चिता में सुरज ने अग्नि दी तो उस की आंखों से आंसू बह रहे थे. जब चिता जलने लगी तो वह मेरे पास आ कर बैठ गया. उस की और आरती की हालत को ध्यान में रखते हुए मैं सोचने लगा कि यह कितनी अजीब बात है कि जिसे हम राक्षसी समझ बैठे थे, वह कितनी नेक दिल औरत निकली, क्या ऐसी भी सौतेली मां होती हैं ! (सुधीर कुमार)
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