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मानसून और जनजीवन

मानसून शुरू हो चूका है. जून में दक्षिण-पश्चिमी मानसून की शुरुआत के साथ भारत में बरसात का मौसम सितंबर के मध्य तक जारी रहता है. इसे मानसून का मौसम कहा जाता है. दक्षिण पश्चिम मानसून सीजन गीली मौसम और गर्म-गिली मौसम मानसून हवा की शुरुआत के साथ पूरे देश में मौसम की स्थिति बदलने लगी है. गर्मी उत्पादकता व्यापक बादलों और मध्यम से भारी बारिश के कई झुकाव इस मौसम की मुख्य विशेषताएं हैं. बरसात के मौसम की शुरुआत के साथ तापमान में एक महत्वपूर्ण गिरावट आई है और लोगो को गर्मी से रहत मिली है. दक्षिण भारत में जून का तापमान मई के तापमान से 3 डिग्री से 4 डिग्री सेल्सियस कम हुआ है. इस सीजन के दौरान भारत की कुल वार्षिक वर्षा का तीन चौथाई वर्षा होती है. उदाहरण के लिए इस मौसम में भारत के मैदानों में औसत वर्षा 90 सेंटीमीटर या 87 प्रतिशत होती है जबकि वर्ष के बाकि समय में केवल 14 सेंटीमीटर वर्षा होती है.इसी से इस मौसम को गिला मौसम कहा जाता है.पूरे देश में इस मौसम के दौरान ही महासागर से आने वाले दक्षिण-पश्चिमी मानसून के कारण वर्षा होती है.Rain
बारिश से किसानो और राजनेताओं को बहुत जरूरी राहत मिली है. फसलों पर देर से मानसून के प्रभाव का डर था.मानसून के समय में बदलाव का मतलब अकाल नहीं है लेकिन यह भारत के नीचले तबके के किसानो को प्रभावित करता है. भारत के विकास घरेलू उत्पाद का 18 प्रतिशत कृषि है और अपने कुल कर्मचारियों के लगभग आदेशों को रोजगार देता है देश के कृषि योग्य भूमि के 55% के लिए मानसून की वर्षा जल का मुख्य स्रोत है. इसका मतलब है कि बारिश महत्वपूर्ण है केवल ना केवल भारत की किसानों के लिए बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था के लिए. अब यह एक अच्छी बात है जब मानसून समय पर आता है और बारिश की सही मात्रा लाता है तो सबको फायदा होता है. लेकिन जब यह कमजोर से आता है तो यह सुखे की ओर जाता है,पर जब यह बहुत मजबूत होता है तो बाढ़ पैदा कर सकता है. हवाओं के दो चरण के पैटर्न भारतीय कृषि को परिभाषित करते हैं इसलिए जब पैटर्न थोड़ा भी बदल जाता है तो इसका उत्पादन खाद्य उत्पादन के लिए वास्तविक निहितार्थ हो सकता है. अतीत में मौसमी उतार चढ़ाव भारतीय किसानों के लिए जीवन मृत्यु का मामला था, एक बुरे साल का मतलब व्यापक अकाल था. आज स्थिति कुछ अलग है भारत के अधिकांश हिस्सों में अब सिंचाई प्रणाली है. किसान अपनी स्थिति को बदल सकते हैं. इसलिए जब बारिश  कमजोर होती है तब किसानो ने उनके पूरक तरीके भी इस्तेमाल किए. लेकिन उसके साथ जटिलतायें भी तो आती है सबसे पहले किसानों को उन सिंचाई प्रणालियों को सस्ते में लाने की जरूरत है.

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