छपरा : स्कूलों में शुरू होगी किशोरियों की पक्की सहेली, हर सप्ताह मिलेगी आयरन की गोली
छपरा में अब स्कूलों में किशोरियों की पक्की सहेली योजना की शुरुआत की जाएगी. जिसके तहत किशोरियों को हर सप्ताह आयरन की गोली दी जाएगी ताकि एनीमिया की बीमारी के प्रतिशत को कम किया जा सके.
बता दें कि किशोरावस्था स्वस्थ जीवन की बुनियाद होती है. किशोरियों में खून की कमी भविष्य में सुरक्षित मातृत्व के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है. इसको ध्यान में रखते हुए 10 से 19 वर्ष तक की किशोर/किशोरियों व गर्भवती महिलाओं को आयरन की गोली दी जाती है. कोरोना संकट काल में स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्र बंद कर दिया गया था. अब राज्य सरकार द्वारा स्कूल खोलने का निर्देश दिया गया है. इसको लेकर स्वास्थ्य विभाग के कार्यपालक निदेशक संजय कुमार सिंह ने सिविल सर्जन को पत्र जारी कर निर्देश दिया है कि प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी एवं बाल विकास परियोजना पदाधिकारी से संबंध स्थापित कर सूक्ष्म कार्य योजना बनाकर आईएफए (नीली गोली) का विद्यालय एवं आंगनबाड़ी केंद्रों में आवश्यकतानुसार उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है.
जारी पत्र में कहा गया है कि प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी, बाल विकास परियोजना पदाधिकारी से समन्वय स्थापित कर प्रत्येक बुधवार एवं गुरुवार को विद्यालय जाने वाले किशोर/किशोरियों को विद्यालय के माध्यम से तथा प्रत्येक बुधवार को विद्यालय नहीं जाने वाले किशोर/ किशोरियों को आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से आईएफए (नीली गोली) का वितरण करेंगे एवं प्रतिमाह 5 तारीख तक प्रतिवेदन प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी को उपलब्ध कराएंगे। आईएफए (नीली गोली) का वितरण राज्य सरकार द्वारा दिए गए कोविड-19 दिशा निर्देश के अनुरूप विद्यालय एवं आंगनबाड़ी केंद्रों पर किया जाए.
लक्षित समूह
• स्कूल जानेवाली सभी किशोरी जो छठी कक्षा से लेकर बारहवीं कक्षा के बीच हों.
• सभी बच्चे जो 10वर्ष से 19 वर्ष की आयु के बीच हों.
• ऐसी किशोरी जो स्कूल नहीं जाती हो.
आयरन की कमी गंभीर समस्याओं का संकेत :
शरीर में आयरन की कमी से कई गंभीर समयाएं उत्पन्न होती हैं. आयरन की कमी से किशोरों में स्मरण शक्ति, पढ़ाई में अच्छे प्रदर्शन एवं सक्रियता में कमी आ जाती है. सम्पूर्ण मानसिक एवं शारीरिक विकास में बाधा होती है. रोग प्रतिरोध क्षमता में कमी के कारण संक्रमण फैलने की अधिक संभावना होती है. मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में बढ़ोतरी हो जाती है. प्रसव के दौरान स्वास्थ्य जटिलताओं में वृद्धि हो सकती है.
एनीमिया है एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या : सिविल सर्जन
वहीं सिविल सर्जन डॉ जेपी सुकुमार ने बताया कि एनीमिया एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, जो स्वास्थ्य व तंदुरुस्ती के साथ-साथ पढ़ने एवं काम करने की क्षमता को भी विपरीत रूप से प्रभावित करती है. इसी को लेकर किशोर/किशोरियों की बेहतर स्वास्थ्य को लेकर कदम उठाया गया है. माध्यमिक विद्यालयों में किशोर/किशोरियों को दवा खिलायी जाती है. वहीं, विद्यालय नहीं जाने वाली किशोर/किशोरियों को आंगनबाड़ी केंद्र के माध्यम से दवा दी जाती है.
क्या कहते हैं आंकड़े :
राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के अनुसार जिले में 6 माह से 59 माह तक के 69.8% बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं. 15 से 49 वर्ष की 62.8% महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं. 15 से 49 वर्ष के 59.1 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनिमिया की शिकार है. इसी की कमी को दूर करने के लिए आयरन की को गोली दी जाती है. (सेंट्रल डेस्क).
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