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नालंदा : मगध सम्राट जरासंध को जान सकेगें युवा पीढ़ी, सीएम नीतीश कुमार ने स्मारक बनाने की घोषणा

नालंदा में गंगा जल आपूर्ति योजना की शुरुआत करने रविवार को राजगीर पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एएसआई (भारतीय पुरातत्व विभाग) द्वारा जरासंध अखाड़ा का विकास नहीं किए जाने पर जमकर लताड़ा.

अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर में लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कई बार उन्होंने विभाग से आग्रह किया पर विभाग के अधिकारियों ने विकास नहीं किया. यही नहीं कई बार हमने यह भी कहा कि इसे आप राज्य सरकार के हवाले कर दीजिए. हम लोग इसका विकास कर देंगे पर कोई पहल नहीं होने पर हमने फैसला लिया कि आने वाली पीढ़ी मगध सम्राट जरासंध के बारे में भली-भांति जान सके इसी के आसपास जरासंध स्मारक बनाया जाएगा.

वहीं सोमवार को गया में गंगा जलापूर्ति योजना का शुभारंभ करने जाने से पहले मुख्यमंत्री ने स्थल का भी निरीक्षण कर जल्द से जल्द अधिकारियों को इस दिशा में पहल करने का निर्देश दिया.

क्या है मगध सम्राट का इतिहास 

महाभारत कालीन मगध सम्राट जरासंध के इस ऐतिहासिक अखाड़े में जरासंध और भीम के बीच 13 दिन तक लगातार मल्ल युद्ध चला था. 14 वें दिन वे पराजित हुए | कहा जाता है कि इस मल्ल युद्ध की भूमि को दूध , हल्दी चंदन और घी से हर दिन पटवन किया जाता था. उजले रंग की जो मिट्टी वहाँ मौजूद है वह दूध और जो पीले रंग की मिट्टी है उसे हल्दी चंदन और घी से पटाया जाता था. योद्धा जब मल्ल युद्ध में उतरते थे, उसी मिट्टी को अपने बदन में लगाकर उतरते थे. राजगीर के लोगों की माने तो ऐसी मिट्टी सिर्फ यहीं है. मगध सम्राट जरासंध राजा बृहद्रथ का पुत्र था. इसके पास सबसे विशाल सेना थी और वह बेहद क्रूर-अत्याचारी भी था. जरासंघ कृष्ण का मामा कंस का ससुर था. कंस ने उसकी दो पुत्रियों ‘अस्ति’ और ‘प्राप्ति’ से विवाह किया था.

जरासंध के जन्म से जुड़ी अनूठी कहानी प्रचलित है. कहा जाता है कि मगध के सम्राट बृहद्रथ के दो पत्नियां थीं. दोनों से कोई संतान नहीं हुई तो एक दिन वे महात्मा चण्डकौशिक के पास गए. चण्डकौशिक ने एक फल देकर कहा कि इसे पत्नी को खिला देंगे तो संतान प्राप्त हो जाएगी. बृहद्रथ ने फल काटा और दोनों ही पत्नियों को खिला दिया. फल लेते समय राजा यह पूछना भूल गए कि उसे दोनों पत्नियों को खिलाना था या एक को इधर फल खाने से दोनों पत्नियां गर्भवती हो गईं, लेकिन शिशु जन्मा तो वह आधा-आधा था, यानी आधा पहली रानी के गर्भ से और दूसरा आधा दूसरी रानी से डर के मारे दोनों रानियों ने शिशु के दोनों जीवित टुकड़े को फिंकवा दिए. तभी वहां से एक राक्षसी गुजरी, जिसने जीवित शिशु के दो टुकड़े देखकर अपनी माया से उन्हें जोड़ दिया. इससे शिशु एक हो गया और तेज आवाज में रोने लगा. आवाज सुनकर रानियां बाहर निकलीं और राक्षसी के हाथ में बालक देखकर हैरान रह गईं. एक रानी ने बच्चे को गोद में ले लिया, तभी वहां राजा बृहद्रथ आ गए.उन्होंने राक्षसी से परिचय पूछा तो उसने सारी बात बतायी. राक्षसी ने अपना नाम जरा बताया, इससे  खुश होकर राजा ने बालक का नाम उसके नाम पर ही जरासंध रख दिया. जरासंध इतना बलवान थे कि वह युद्ध में मरता नहीं था. उसे अक्सर मल्ल युद्ध या द्वंद्व युद्ध लड़ने का शौक था. कट्टर के कारण भगवान श्रीकृष्ण ने उसके वध की योजना बनाई. भीम और अर्जुन ब्राह्मण के साथ तपस्वी के वेष में वह जरासंध के पास पहुंचे और कुश्ती के लिए ललकारा. जरासंध और भीम के बीच 13 दिनों तक लगातार मल्ल युद्ध चला. इस दौरान भीम ने जरासंध को जांघ से उखाड़कर कई बार दो टुकड़े कर दिए, लेकिन हर बार जुड़कर वह फिर जिंदा हो जाता और फिर से भीम पर टूट पड़ता. भीम थककर बेदम हो गए तो 14वें दिन कृष्ण ने एक तिनके को बीच से तोड़कर दोनों भाग विपरीत दिशाओं में फेंक दिया. भीम यह इशारा समझ गए और उन्होंने जरासंध के शरीर के टुकड़े को  एक टुकड़ा एक दिशा में और दूसरा दूसरी दिशा में फेंक दिया. इसके चलते वह जुड़ नहीं पाया और उसका अंत हो गया.

पास में है जरादेवी मंदिर 

जिस जरा नामक राक्षसी ने जरासंध को जोड़कर जीवन दान दिया था. उनकी मंदिर भी उनके अखाड़ा से पहले बना हुआ है. यहां लोग पूजा अर्चना करने आते हैं, लोगों में इनके प्रति ऐसी आस्था है कि भगवान की तरह पूजते हैं. यह स्थल जरादेवी मंदिर के नाम से जाना जाता है. (प्रणय राज की रिपोर्ट).

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