नालंदा : अनोखे और ऐतिहासिक फैसले देने वाले किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी मानवेंद्र मिश्रा का हुआ तबादला
नालंदा में हाईकोर्ट के आदेश पर किशोर न्याय परिषद (जेजेबी) के प्रधान दंडाधिकारी पद से मानवेंद्र मिश्रा की विदाई हो गई है. इनकी जगह आशीष रंजन को प्रधान दंडाधिकारी बनाया गया है. मानवेंद्र मिश्रा लगातार पांच साल तक इस पद पर रहे. इस दौरान उनके कई फैसले व आदेश ऐतिहासिक ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहे थे. मामले निपटारे में लगातार चार साल से सूबे में नालंदा जेजेबी अव्वल रहा.
बिहारशरीफ में सूबे का पहला बाल मित्र थाना की शुरुआत की गयी. संविधान की मूल भावना को बढ़ावा देते हुए अदालत व समाज के संबंधों में निखार लाने के कई उदाहरण पेश किये. इस दौरान आम से खास तक ने जेजे कानून की बारीकियां जानीं. उनके कई फैसलों ने जहां लोगों को अचंभित किया, वहीं बच्चों के हित में उसके भविष्य संवारने का पर्याप्त अवसर भी दिया. यही कारण रहा कि मुकदमे में आरोपित किए जाने के बाद भी कई किशोरों ने अपने जीवन को संभालते हुए प्रतियोगिता परीक्षाएं पास कर सरकारी सेवा दे रहे हैं. मामले निपटारे में उनके कारण ही नालंदा जेजेबी वर्ष 2018 से लगातार चौथी बार सूबे में पहले पायदान पर रहा. पर्यवेक्षण गृह के दर्जनों बच्चों को कौशल विकास योजना से जोड़कर रोजगारपरक शिक्षा व प्रशिक्षण दिलवाया. यहां के किशोर बंदियों द्वारा बनायी गयी ‘नटवर’ अगरबत्ती लोगों के घरों को सुगंधित कर रही हैं.
दूसरे कोर्ट में भी इनके फैसले का आरोपितों को मिला लाभ :
इनके कई अनोखे फैसले लोगों को आंदोलित करते रहे। इसका परिणाम रहा कि दूसरे जिलों के अधिवक्ता व अभिभावक नालंदा आकर मानवेंद्र मिश्र की फैसलों की कॉपी लेकर अपने कोर्ट में दाखिल कर आरोपित किशोर को लाभ दिलवाया. मानवेंद्र मिश्र ने न सिर्फ मामलों में सुनवाई की, बल्कि मामलों के निपटारे में आ रही परेशानियों को ले कार्यशाला आयोजित कर वरीय पदाधिकारियों से लेकर पुलिस पदाधिकारियों तक को ट्रेनिंग दिलायी.
नगर आयुक्त पर कार्रवाई :
मानवेंद्र मिश्रा ने नवंबर 2016 में बिहारशरीफ कोर्ट में योगदान किया था. योगदान के कुछ दिनों बाद ही उन्होंने जूडिसियल कॉलोनी में फैली गंदगी को लेकर तत्कालीन नगर आयुक्त पर शोकॉज कर अपने कड़क मंशा जाहिर कर दी थी. पांच साल में उन्होंने लगभग एक दर्जन पुलिस पदाधिकारियों के वेतन की कटौती की. कई पुलिस पदाधिकारियों को अनुसंधान एवं कर्तव्य के लापरवाही मामले में दंडित भी किया. अपहरण, हत्या, रेप जैसे जघन्य मामलों में त्वरित सुनवाई करते हुए आरोपित किशोर को सजा दी.
24 घंटे में सुनवाई :
एक रेप मामले में वे महज 24 घंटे की सुनवाई कर आरोपी को अधिकतम तीन साल की सजा सुनाई. वहीं रितिक छात्र हत्याकांड मामले में सुनवाई करते हुए आरोपी को अधिकतम सजा दी थी. मासूम बच्चे को डीएनए जांच कराकर पिता का हक दिलवाया. उन्होंने न्यायिक प्रक्रिया से हटकर कोरोना संकट काल में सामाजिक दायित्वों का भी बखूबी निर्वहन किया.
उनके कुछ चर्चित फैसले :
केस वन : नवजात के हित को देखते हुए किशोर की शादी को वैध बता किया था रिहा. नवजात के हित को देखते हुए किशोर व किशोरी की शादी को वैध बताया था. दिए फैसले में उन्होंंने कहा था कि किशोर का कृत कानून के हिसाब से दंडनीय है. लेकिन, किशोर की सजा देने से तीन जिंदगी प्रभावित होती है. दोनों पति पत्नी के रूप में रह रहे हैं. वर्तमान में एक माह की बच्ची भी है. किशोर को यह आदेश दिया था कि वह अपने माता पिता के साथ मिलकर पत्नी व बच्ची की सही तरह से देखभाल करे. यह सुनवाई महज तीन दिन में पूरी की थी. हालांकि, फैसले में यह स्पष्ट लिखा था कि इसे आगे कभी आधार बनाकर अन्य कोर्ट में फैसले में उपयोग नहीं किया जा सकेगा. इस फैसले की राष्ट्र स्तर पर काफी चर्चा हुई थी.
केस टू : डीएन से बच्ची को दिलाया था पिता का हक
सोहसराय थाना से जुड़े मामले में तीन साल की बच्ची को डीएनए टेस्ट कर उसे पिता का हक दिलाया था. इस मामले में पिता उसे अपनी बेटी मानने से इंकार कर रहा था. इसके बाद नवजात की किशोरी माता बच्ची की हक के लिए कोर्ट में शरण ली थी. सुनवाई के बाद कोर्ट ने सबो का ब्लड सैंपल लेकर डीएनए टेस्ट कराया था. इसके बाद बच्ची को उसका हक मिला. डीएनए आधार पर सूबे का यह पहला फैसला था.
केस थ्री : मिठाई चोरी को बाल लीला करार देते हुए दी थी रिहाई
बिहार थाना से जुड़े मामले में किशोर को मिठाई चोरी मामले में बाल लीला करार देते हुए त्वरीत सुनवाई कर रिहाई दी थी. इसमें किशोर ने फ्रीज में रखी मिठाई चुराकर खा ली थी. इसमें जज मानवेंद्र मिश्र की टिप्पणी थी कि माखन चोरी बाल लीला तो मिठाई चोरी अपराध कैसे. यह फैसला भी राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा था. कोर्ट में आरोपित किशोर ने स्वीकार किया था कि प्यास लगने के कारण वह घर में घुस गया. इसी दौरान फ्रीज में रखी मिठाई पर उसकी नजर गयी। बालसुलभ मन नहीं माना और उसने मिठाई खा ली थी. चोरी की यह कार्रवाई सीसीटीवी में कैद हो गयी थी.
केस फोर : बीमार मां के भोजन के लिए चुराया था पर्स
इस्लामपुर थाना क्षेत्र से जुड़े किशोर ने बीमार मां व छोटी बहन के भोजन के लिए रेलवे स्टेशन से एक महिला का पर्स चुराया था. सुनवाई के दौरान किशारे ने कोर्ट को बताया था कि उसके पिता नहीं हैं, मां बीमार है. घर में छोटी बहन है. कोई कमाने वाला नहीं है. बालक ने जज से कहा था कि मुझे छोड़ दीजिए, साहब नहीं तो मां, बहन मर जाएगी. घर में खाने को कुछ नहीं है. बाद में जज ने स्थानीय थाना से उसके घर की छानबीन करायी थी. इसमें सारी बातें सही थी. इसके आधार पर न सिर्फ उन्होंने किशोर की रिहाई दी थी. बल्कि, उसे आवास, राशन, पढ़ने की व्यवस्था भी करने का आदेश स्थानीय अधिकारियों को दिया था. इस फैसले की भी लोगों ने काफी चर्चा की थी. (प्रणय राज की रिपोर्ट).
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