कैमूर : बायोफ्लॉक विधि से मत्स्य पालन कर किसान बन रहे हैं आत्मनिर्भर, हो रही लाखों की कमाई
भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए पीएम से लेकर सीएम तक सभी लगातर लोगों से अपील कर रहे हैं. वहीं इसके लिए कई तरह की योजनाएं भी चलाई गई हैं. इसी क्रम में कैमूर में कई किसानों ने खुद को आत्मनिर्भर बनाते हुए कई तरह के रोजगार की शुरुआत की है और मुनाफा कमाया है. इन्हीं में से एक है बायोफ्लॉक मछली पालन.
बता दें कि कैमूर जिले में कोरोना वायरस से बचाव के कारण लागू लॉकडाउन ने कई लोगों के रोजगार को छीन लिया. इसका सबसे ज्यादा असर दैनिक मजदूरों पर पड़ा. इसे देखते हुए रामगढ़ प्रखंड के मुरनाकई पंचायत के मुखिया डॉ संजय सिंह ने जिले में बायोफ्लॉक विधि से मछली पालन का कार्य शुरू किया. इस विधि की खासियत यह है कि कम लागत में ज्यादा मुनाफा के साथ इसे एक छोटे से प्लॉट में भी स्थापित किया जा सकता है. यही नहीं मछली पालन के बाद जो वेस्ट मटेरियल होता है, उससे बंजर जमीन भी उपजाऊ बन जाती है.
मुखिया डॉ संजय सिंह ने बताया कि मात्र 35 हजार रुपये खर्च कर एक टब तैयार किया जा सकता है और इससे छः महीने में कम से कम 50 हजार रुपये तक का मुनाफा आसानी से कमाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान उनके पंचायत में अन्य राज्यों से लौटे कई दैनिक मजदूरों को भी इस विधि के बारे में बताया जा चुका है. जल्द ही जिले में इस नई विधि से मछली पालन के कई प्लांट देखने को मिलेंगे. वहीं उन्होंने बताया कि सबसे बड़ी बात है कि सरकार मछली पालन के लिए 50 प्रतिशत की सब्सिडी मुहैया करा रही है. ऐसे में इस विधि से कार्य करना दैनिक मजदूरों के लिए वरदान साबित हो सकता है, क्योंकि लागत कम है और मुनाफा ज्यादा. उन्होंने बताया कि 18×12 क्षेत्रफल का एक बायोफ्लॉक टब का निर्माण प्लास्टिक की मदद से किया जाता है. जिसमें करीब एक हजार मछलियों को डाला जाता है, जो छः महीने में एक किलो की हो जाती है यानी एक टब में एक हजार किलो मछलियों को पाला जाता है. इसमें एक ऑक्सिजन मशीन लगाया जाता है, जिसकी कीमत 15 हजार के आसपास होती है. एक मशीन से छः टैंक का संचालन किया जाता है. इसमें ध्यान रखने वाली बात ये है कि एक महीने में पानी को बदलना पड़ता है और सुबह शाम चारा देना होता है. उन्होंने बताया कि एक महीने बाद टैंक से वेस्ट पानी निकलता है, उसमें प्रोटीन की मात्रा मिलती है और बंजर जमीन को भी उपजाऊ बना देता है. उनका कहना है कि मोहनिया प्रखंड के चौरसिया गांव में 24 टैंकों का एक प्लांट बैठाया गया है. इस सिस्टम में स्वस्थ मछलियों के उत्पादन की पूरी गारंटी होती है. उन्होंने बताया कि इस तकनीक से पानी की भी बचत होती है. एक टैंक में करीब 10 हजार लीटर पानी डाला जाता है और एक हजार मछलियों का बीज डाला जाता है. यहां मछलियां जो कुछ भी खाती है, उसका लगभग 75 प्रतिशत वेस्ट के रूप में बाहर निकलता है और जो पानी के अंदर होता है, उसे शुद्ध करने के लिए बायोफ्लॉक विधि का प्रयोग किया जाता है, जो मछलियों के वेस्ट को प्रोटीन में बदल देता है. (विशाल कुमार की रिपोर्ट).
Comments are closed.