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पाकुड़ : फरिश्ते की तलाश में है मतदाता, खुद को हर बार करते हैं ठगा महसूस

मक़सूद आलम

पाकुड़ जिले के तीनों विधानसभा में अभी मतदाताओं की बांछे खिली हुई है. जिन बेचारों को अपनी ठंडी रसोई और भूखे पेट सोने के बाद भी कोई रहनुमा पूछने तक नही आता था, आज उनके सामने हाथ जोड़े नेताओं की भीड़ खड़ी है. जो नेता बड़े-बड़े मंचों पर बड़ी बड़ी हस्तियों के साथ सुरक्षा घेरे में दूर से दिखते थे, आज वही रहनुमा एक याचक बनकर गरीब से गरीब निरीह से निरीह लोगों के सामने हाथ जोड़े खड़े हैं. इनमें से जो जीत जाएंगे निश्चित रूप से उनका दर्शन दिवस्प्न ही होगा. लेकिन आज गली के नुक्कड़ पर वही बड़े बड़े हस्ती आम लोगों के साथ मिट्टी की भांड में चाय पीते हुए फोटो खिंचवाते हैं और आमजनता के लिए अपनी सुलभता भी दिखाते हैं.

आश्चर्य है कि जीते हुए यही नेतागण अगर पहले भी आमलोगों के लिए इतने सुलभ और भाषणों में गिनाने वाले समस्याओं के लिए इतने संवेदनशील तथा विकास के लिए वाकई में चिंतित और क्रियाशील रहते तो इन्हें न मतदाताओं के पास जाकर हाथ जोड़कर एक एक मत की याचना करनी पड़ती. बल्कि सरकार द्वारा दिये जाने वाले लाभ प्रत्येक मतदाता को पहुंच गया होता. ये जरूरी नही है कि सरकार किसकी है. सरकार जिसकी भी होती है योजनाएं खूब बनती है, उसके लिए सरकारे जिलों को विभिन्न माध्यमों से,विभिन्न नामपर और योजनाओं के लिए पैसे भी भेजती है. लेकिन किसी भी राजनैतिक पार्टी के नेता, कार्यकर्ता या तथाकथित समाजसेवी उन योजनाओं को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए कभी क्रियाशील चिंतित या प्रयासरत भी नही दिखते. हर चुनाव में हर पार्टी के नेता माइक की गर्दन पकड़कर जोश व खरोश के साथ नए नए वायदों के पिटारे खोल देते है. उन वायदों को अगर छोड़ भी दें तो अगर सरकारी योजनाओं को भी बिना किसी लाग लपेट, कमीशनखोरी और भरष्टाचार के आमलोगों तक पहुंचा दिया जाए तो लगता है कि आधी से ज्यादे समस्याएं स्वयं दूर हो जाएगी. विकास गांव और गलियारों में भी नजर आएगा और सबसे बड़ी बात की नेताओं को वोट लेने के लिए न हाथ जोड़ने होंगे न खुद को साबित करने के लिए झुठे वायदों का पिटारा खोलना होगा. आमजनता अब इन बातों को समझने लगी है इस लिए वे भी सभी को वोट देने का आश्वासन तो दे देते हैं. लेकिन उनके निर्णय पर एक गजब की खामोशी का ताला लगा हुआ है.

पाकुड़ जिले के अगर महेशपुर प्रखण्ड को लें तो वह अनुमंडल बनने की हर अहर्ताएं पूरी करता है. पाकुड़ जिले का संग्रामपुर और साहेबगंज जिले का तथा पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र का कोटालपोखर प्रखण्ड बनने की सभी अहर्ताएं पूरी करता है. इसके लिए दर्जनों बार आंदोलन हुए लेकिन किसी भी जीते हुए नेता या फिर विपक्ष के मात खाये हुए प्रतिनिधि कभी संवेदनशील, आक्रोशित या आंदोलित नही दिखे. हां वायदे हर किसी ने किए जरूर लेकिन पूरा नही हुआ विकास की योजनाओं को ही देखे तो हर बार योजनाओं में आये पैसे बिना उपयोग के वापस हो गए. विधायक अपने फंड को भी पूर्णतः उपयोग नही कर पाए.

इस सारी बातों पर अगर हमारे जनप्रतिनिधि या जनप्रतिनिधि बनने के चाह रखने वाले लोग जरा भी संवेदनशील होते तो विकास योजनाओं के पैसे न वापस जाते और अंतिम व्यक्ति तक सरकारी योजनाएं भी पहुँच पातीं. इस लिए यह कहा जा सकता है कि आम मतदाता पूरे जिले में स्वयं को ठगा हुआ महसूस करता है और ऐसे में अगर ये विकल्प के तौर पर नोटा को चुनते हैं तो ये बड़े आश्चर्य की बात नही होगी. मतदाताओं की खामोशी चिल्ला चिल्ला कर कह रही है कि इन नेताओं की भीड़ से कोई तो फरिश्ता निकले.

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