खुद गूंगे-बहरे होकर अपनों जैसे बच्चों में 25 वर्षो से शिक्षा का अलख जगा रहे हैं अनिल मिश्र
अभिषेक श्रीवास्तव
जुबान और कान….किसी भी इंसान के लिए ये दोनों काफी महत्वपूर्ण हैं. इन दोनों के अभाव में इंसान अपनी जिंदगी को अभिशप्त मान लेता है. लेकिन सीवान में एक ऐसा इंसान है जो जन्म से गूंगा और बहरा होने के बावजूद निराश और हताश होने के बजाए अपने जैसे गूंगे और बहरो को शिक्षित कर उनकी जिंदगी सवारने में लगा हुआ है.
हमारे समाज में शारीरिक अपंगता को एक अभिशाप माना जाता है और किसी इंसान के पास सुनने और कहने की शक्ति न हो, इसकी कल्पना मात्र से हीं उस इंसान की बेबसी और लाचारी स्पष्ट हो जाती है. लेकिन सीवान में अनिल कुमार मिश्रा नामक एक ऐसे इंसान हैं जिनके लिए बहरापन और गूंगापन के कोई मायने नहीं है. खुद जन्म से हीं गूंगे और बहरे अनिल कुमार मिश्रा ने अपने जैसे गूंगे और बहरे बच्चो को भी बेबस और लाचार नही बनने देने की ठानी है. अनिल एक किराए के मकान में मूक बधिर विद्यालय नामक एक स्कुल चलाते हैं, जहाँ वे गूंगे और बहरे बच्चे-बच्चियों को क ख ग…से लेकर गणित और अंग्रेजी सहित सामान्य ज्ञान तक की शिक्षा देकर उन्हें शिक्षित कर रहे हैं. आज उनके विद्यालय से बच्चे मैट्रिक तक की पढ़ाई कर बोर्ड की परीक्षा में भी सम्मिलित हो रहे हैं.
गूंगा मास्टर के नाम से पुरे सीवान शहर में विख्यात अनिल के इस मूक बधिर विद्यालय की प्रसिद्धि भी पुरे जिले भर में है. सीवान शहर के अलावे सुदूर ग्रामीण इलाको से भी कई गूंगे और बहरे छात्र-छात्राएं यहाँ पढने आतें है. अनिल की माने तो वे पिछले 25 सालो से मूक बधिर विद्यालय को चला रहे हैं. सीवान शहर के गाँधी मैदान नई बस्ती मोहल्ला स्थित जिस टूटे-फूटे और पुराने मकान के एक कमरे में वे अपना विद्यालय चलाते हैं असल में, उसके मालिक भी गूंगे और बहरे थे. गूंगा मारवाड़ी नामक उस संपन्न व्यवसायी ने अनिल की काबलियत और जज्बे को देखते हुए सन 1992 में उन्हें अपना मकान किराये पर दे दिया,तब से अनिल यह विद्यालय चलाते आ रहे हैं और पढ़ाई के एवज में उन बच्चो के परिजनों द्वारा फी के रूप में जो कुछ भी दे दिया जाता है उससे उनका गुजरा हो जाता है .हालाकि अनिल की चाह है कि वे गूंगे और बहरे बच्चो को शिक्षित करने के लिए एक बढ़िया सा स्कुल खोले जिसमे नर्सरी से लेकर हाई स्कुल तक की अलग-अलग कक्षाओं में पढ़ाई हो सके.
जुबान और कान से अपंग अनिल ने शिक्षक बन न सिर्फ अपनी अपंगता को खत्म कर डाला है बल्कि अपने जैसे अपंगो को शिक्षित करने का कार्य कर एक मिसाल कायम किया है. लेकिन, अभी तक प्रशासन द्वारा सरकारी स्तर पर किसी तरह की मदद नहीं मिलने से अनिल काफी आहत हैं और अपने इस दर्द को वे कागज पर कलम से लिख बयां करते हैं. सरकार और प्रशासन की बेख्याली के बावजूद उनके इरादे में कोई कमी नहीं आई है. ऐसे में जरूरत है कि सरकार की ओर से अनिल को कुछ सहायता दी जाये ताकि वे अपने सपने और नेक इरादों को और ऊँचाई दे सके.
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