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बेगूसराय : नहीं रहें सांसद भोला सिंह, दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में ली आखिरी सांस

पिंकल कुमार

बेगूसराय के भाजपा सांसद भोला सिंह का शुक्रवार की रात 9 बजे निधन हो गया. 79 वर्षीय भोला सिंह कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे, जिसको लेकर उन्हें दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया था, शुक्रवार की रात उन्होंने वहीं पर अंतिम सांस ली.

बता दें कि बेगूसराय अनुमंडल का एक छोटा सा गांव दूनही में 3 जनवरी 1939 ईo को अषाढ पूर्णिमा के दिन राम प्रताप बाबू के यहा दूसरे पुत्र का जन्म हुआ. बच्चे के भोले सुकुमार मुखरे को देखकर राम प्रताप बाबू के भाभी ने बच्चे को भोला नाम से पुकारा. भोला बाबू का प्ररंभिक शिक्षा पिता जी के देखरेख में हुआ. उन्हे उच्च शिक्षा के लिये गाव से 12 किमी दूर जयमंगला उच्च विद्यालय मंझौल में नामांकन कराया गया. फिर कला विषय से परीक्षा पास करने का जो दौर शुरू हुआ वह स्नातक तक चला. उन्होने 1961 ई मे बीए आनर्स की परीक्षा भागलपुर यूनिवर्सिटी से टॉपर पर बनकर पास की एवं पीजी की पढाई पटना यूनिवर्सिटी से की. 1963 ई मे एक प्रध्यापक की शुरूआत अस्थाई लेक्चर के रुप में टीएनबी कॉलेज भागलपुर से की एवं 1966 ई में उन्होने जीडी कॉलेज बेगूसराय में एक प्राध्यापक के रुप में कार्य प्रारम्भ किया.

बेगूसराय की राजनीति मे इनका आगाज साफापुर (बेगूसराय) में हुए वामपंथी और कोंग्रेस के रगड़ के बीच हुआ. साफापुर में दिये गये भाषण की औजस्व ने भोला बाबू को एक नई पहचान दे दी. बेगूसराय की गलयारियो में बस एक नाम भोला भोला गूंज रहा था सन 1971 राजनीतिक माहोल गर्म था. चुनाव की घोषणा हो चुकी थी. उसके बाद स्थानीय लोकल बोर्ड के मैदान में एक बड़ी सभा हुई. उस महती जनसभा में तृप्तिनारायण सिंह ने बेगूसराय विधानसभा से उम्मीदवार बनाने के लिये भोला बाबू नाम का प्रस्ताव रखा और चन्द्रशेखर जो उसी मंच पर उपस्थित थे उनहोने उस प्रस्ताव को समर्थन कर दिया. लेकिन चुनाव के नजदीक आने पर तस्वीर बदल गयी. वामदलो का शीर्ष नेतृत्व भोला बाबू को प्रत्याशी बनाने पर सहमत नहीं हुआ. जिसके बाद बेगूसराय सदर से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप भोला बाबू ने नामंकन किया. चुनाव चिन्ह मिला उगता सूरज. वामपंथी के शीर्ष ने भले ही टिकट से वंचित किया हो लेकिन आम आम वामपंथी कार्यकर्ताओ की सहायता से और कांग्रेस विरोधी लहर पर सवार होकर भोला बाबू बेगूसराय से निर्दलीय विधायक बन गए. यही से भोला बाबू के भाग्य का सूर्य उदय हो गया. उन्होने ने कांग्रेस उम्मीदवार राम नारायण चौधरी को 29 हजार भोट से हराया. लेकिन कहते हैं न बिना मंघी के नाव किस किनारे लगेगा कहना मुश्किल होता हैं. भोला बाबू को भी एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना राजनीतिक जीवन अंधकार मय प्रतित हो रहा था. उन्होने वामदल जॉइन की और 1969 में वामदल के टिकट पर चुनाव लड़े. लेकिन मात्र 751 भोट से हार गये. “देहात में एक कहावत हैं होनहार बिरवान के होत चिकने पात” फिर एक बार रोशनी प्रज्वलित हुई और बामदल के टिकट पर 1972 में चुनाव जीत गये. लेकिन अपसी मत भेद के कारन भोला बाबू को 1976 ई में बांमदल से त्यागपत्र देना पड़ा. सन 1976 देश में अपातकाल का दौर चल रहा था. सभी पार्टी काँग्रेस के विरोध में एक गुट बंध चुकी थी. उस विरोध की लहर में भोला बाबू ने काँग्रेस का हाथ थामा. 1977 विधानसभा चुनाव पूरे देश में काँग्रेस विरोधी लहर बिहार में विधानसभा चुनाव में 324 सीट में काँग्रेस मात्र 56 सीट ही जी पाई उसमें एक सीट अकेला भोला बाबू के बलबूते पर था. उस जीत ने तत्कालीन काँग्रेस में भोला बाबू का कद और रुतबा बढा दिया.

एक दौर आया जो भोला बाबू के राजनीति जीवन का अंधकार युग रहा. 1990 के विधानसभा में उन्होने काँग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और पराजीत हुए. पांच साल बाद 1995 ई में फ़िर कंग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुंनाव लड़े फिर हार का सामना करना पड़ा. दो-दो हार के कारण उनका महत्व और रुतवा दोनो काँग्रेस में काफ़ी घटा. 1995 की हार के बाद भोला बाबू बोले “वह हार मेरी नहीं लालू की करिश्माई जीत ज्यादा थी” वस्तूत: 1990-99 तक का मेरे जीवन का अंधकार युग था.  2000 ई में नए शताब्दी के साथ भोला बाबू भी भाजपा के साथ जुरे ओर 2000 ई के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट से एक बार फ़िर बेगूसराय सदर के विधायक बने.

वहीं 13 दिसंबर 2002 को ढाई साल से खाली विधान सभा उपअध्यक्ष पद पर बैठेगा कौंन ? इसका पटाक्षेप राबड़ी देवी ने कर दिया. उन्होंने लालू प्रसाद की उपस्थिति में संसदीय कार्य मंत्री रामचन्द्र पूर्वे को कह कर भोला बाबू के नाम को विधानसभा उपअध्यक्ष पद पर प्रस्तावित करने अनुमोदन किया और भोला बाबू बिहार विधानसभा के प्रमोटेड स्पीकर हो गये. फिर 2005 में भाजपा के टिकट पर विधायक बने और 2008 में केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप के बाद नाटकीय ढंग से उन्हें विकास मंत्री बनाया गया. इनके मंत्री पद के एक साल कार्यकाल में ही बेगूसराय नगरनिगम बना. आठ बार विधान सभा पहुचने वाले भोला बाबू को देश कि राजनीति में कदम रखने का का मन था. बेगूसराय से सांसद बनने का इरादा लेकर चले भोला बाबू को पार्टी ने इन्हे नवादा से भाजपा उम्मीदवार के रुप में उतारा. लेकिन पहला इमतिहान ही बिहार के बाहुबाली सूरजभान सिंह के साथ थोड़ा कठिन था लेकिन समय और काल दोनो फ़िर भोला बाबू के साथ था, उन्होने सूरजभान जैसे बाहुबली को चारो खाने चित कर नवादा में एनडी का पताखा लहराया. मन मे अभिलाषा थी लोकतंत्र के मंदिर में दिनकर की मिट्टी का प्रतिनिधित्व करु और इस अभिलाषा को पूरी करने में बेगूसराय गौरवशाली जनता ने पुरा मदद किया और वो सन 2014 लोकसभा चुनाव में शानदार जीत के साथ दिल्ली पहुच गये. लेकिन शुक्रवार को सिटिंग सांसद रहते हूए दिनांक वे 9 बजे रात्रि में इस दुनिया को अलविदा कह गये.

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