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संतान की लंबी उम्र और उसकी हितों के लिए है जितिया यानि जीवितपुत्रिका व्रत

सुशील श्रीवास्तव

हिंदुस्तान त्योहारों का देश है. जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे देश मे उपवास भक्ति एवं उपासना का एक रूप है जो मनुष्य मे सैयाम, त्याग, प्रेम एवं श्रद्धा की भावनाओं को बढ़ाती है. उन्हीं में से एक हैजितिया या जिउतिया अथवा जीवितपुत्रिका व्रत जिसे माताएँ अपनी संतानों के लंभी उम्र एवं उसकी हितों के लिए करती है.ये व्रत काफी मायनो मे खास है.

हिन्दू पञ्चाङ्ग के अनुसार ये व्रत आश्रिन माह के कृष्णा पक्ष की सप्तमी से आरंभ होती है जो कि इस बार 1st October 2018 को पद रहा है और नवमीं को समाप्त हो जाती है.

इस व्रत की खास बात यह है कि ये बिल्कुल निर्जला किया जाता है यानी उपवास के दौरान पानी तक नही पी सकते. यह व्रत खासतौर पर बिहार , झारखंड , उत्तरप्रदेश उत्तराखंड मनाया जाता है साथ ही साथ आंशिक रूप से पशिम बंगाल और छत्तीसग़ढ मे भी मनाया जाता है!.

इस साल इस व्रत की तारीख इस प्रकार है

1st Oct सप्तमी – इस दिन व्रती स्वक्ष पानी या नदी के बहते पानी मे स्नान कर एक बार भोजन करती है,जिसे “नहाय खाय” कहते है.

2nd Oct अष्टमी – इस दिन व्रती बिल्कुल निर्जला उपवास करती है.

इस बार अष्टमी का आरंभ 2nd Oct प्रात: 4:09AM है जो दिन के 2nd Oct को ही दिन के 2:17PM को समाप्त होजाएगी, किन्तु निर्जला उपवास दूसरे दिन ही समाप्त होगा.

3rd Oct नवमी – इस दिन पारण के साथ इस व्रत की समाप्ति हो जाएगी.

इस व्रत में “जिउतवाहन देव की पूजा होती है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक दांत कथा है जिसमे चील और लोमड़ी की कहानी है, इस कहानी में चील ने इस ब्रत को करके अपने संतान की दीर्घायु होने का वरदान लिया। वहीं लोमड़ी में इसकी उपेक्षा की जिससे उसके कारण उसकी  संतान जीवित नही रहा. ऐसी भी मान्यता है कि महाभारत मे जब उत्तरा के गर्व मे पल रही अजन्मी संतान पर जब अश्वथामा ने ब्रम्हास्त्र चलाया था तब इसी व्रत के फलस्वरूप उनकी संतान की रक्षा हो सकी और वो जीवित बच गया. इस व्रत से जुड़ी और भी कई पौराणिक मान्यताएं एवं कथाएँ है.(साभार : आचार्य श्री गुरुजी, बोकारो स्टील सिटी झारखंड).

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