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सुपौल : छातापुर में महिला-पुरुष व्रतियों ने 36 घंटे का निर्जला उपवास रह कर किया नियम और निष्ठा का पर्व जिउतिया

सुपौल || जिले के छातापुर प्रखंड क्षेत्र में महिला और पुरुष व्रतियों ने 36 घंटे का निर्जला उपवास रह कर नियम निष्ठा के साथ जिउतिया व्रत किया. वहीं छातापुर प्रखंड मुख्यालय सहित प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में जीवित पुत्रिका पर्व विधि विधान पूर्वक किया गया. अपने बच्चों की दीर्घायु व सुख-समृद्धि के लिए व्रती माताओं व पिता ने निर्जला उपवास रहकर पुजा अर्चना किया.

छातापुर मुख्यालय बाजार में एक ऐसे पिता भी हैं जिन्होने अपने संतानों के लिए जीवित पुत्रिका पर्व (जिउतिया) किया है. पिता निर्मल कुमार सुशील ने अपने संतानों के लिए श्रद्धा व विश्वास के साथ निर्जला उपवास किया.

इधर, जिउतिया पर्व को लेकर इसबार भी कुछ माताओं ने सोमवार को नहाय खाय करने के बाद मंगलवार को ओठगन प्रसाद चढाया और निर्जला उपवास शुरू किया, जिसके बाद जितिया व्रत के निमित रात्रि समय में कथा कहा गया. व्रतियों ने अपने परिजनों के साथ जीवित पुत्रिका की कथा सुनी. इसके बाद नियम निष्ठा से किये गए व्रत के समय पूरे होने पर व्रती द्वारा व्रत के निमित पारण करते हुए इस पर्व को सम्पन्न किया गया.

भगवान जीमूत वाहन की प्रतिमा स्थापित कर भव्य तीन दिवसीय मेले का हुआ आयोजन

पर्व को लेकर छातापुर सदर पंचायत समेत चुन्नी, रामपुर, सोहटा, जीवछपुर, मधुबनी, लालपुर, तिलाठी, माधोपुर, कटहरा , ग्वालपाड़ा आदि पंचायतों व गांवों में उत्साह का माहौल दिखा. इस पूजा को लेकर छातापुर में भगवान जीमूत वाहन की प्रतिमा स्थापित कर भव्य तीन दिवसीय मेले का भी आयोजन किया गया. जहां भगवान जीमूत वाहन समेत अन्य देवी-देवता समेत चिल्हों सियारन आदि की प्रतिमा का निर्माण भी करवाया है. जहां पूजा अर्चना और प्रतिमा दर्शन को भक्तों की भीड़ जुट रही है. मेला कमिटी के अध्यक्ष गिरानंद पासवान, जगदीश मंडल, शिवन सादा आदि ने बताया कि तीन दिवसीय मेला का आयोजन का समापन गुरुवार को प्रतिमा विसर्जन के साथ हो जायेगा. वहीं मेला को भव्य बनाने को लेकर दो दिवसीय सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया है.

हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनता है जितिया (जीवित पुत्रिका) व्रत

पूजा को लेकर छातापुर के पुजारी गोपाल गोस्वामी और राज किशोर गोस्वामी ने कहा कि हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जितिया व्रत किया जाता है. इस साल ये व्रत 24 सितंबर को रखा गया. हर साल महिलाएं अपनी संतान की सुख समृद्धि और दीर्घायु होने की कामना के साथ ये व्रत रखती हैं. मान्यता है कि जितिया व्रत करने से संतान की लंबी उम्र होती है और उनके जीवन में किसी भी प्रकार की विपदा नहीं आती है. जितिया व्रत के दिन व्रत रखकर संध्याकाल में अच्छी तरह से स्न्नान किया जाता है और पूजा की सारी वस्तुएं लेकर पूजा की जाती है. साथ ही व्रत कथा जरूर पढ़ा जाता है. व्रत कथा के बिना जितिया पूजा अधूरी मानी जाती है. वहीं, आचार्य धर्मेंद्रनाथ मिश्र ने कहा कि इस बार जितिया का व्रत 25 सितंबर यानी मंगलवार को हुआ. उन्होंने बताया कि इस बार अमृत योग में जितिया व्रत का शुभारंभ हुआ है.

ये है जीवित पुत्रिका यानी जितिया या जिउतिया व्रत कथा

जितिया व्रत कथा को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित है. एक पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत का महत्व महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि उत्तरा के गर्भ में पल रहे पांडव पुत्र की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य कर्मों से उसे पुनर्जीवित किया था. तब से महिलाएं आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को निर्जला व्रत रखती हैं. हिंदू धर्म में मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से भगवान श्री कृष्ण व्रती स्त्रियों की संतानों की रक्षा करते हैं. जितिया व्रत से जुड़ी दूसरी मान्यता के अनुसार, गंधर्वों के एक राजकुमार थे, जिनका नाम जीमूतवाहन था. वे बड़े हीं धर्मात्मा, परोपकारी और सत्यवादी थे. जीमूतवाहन को राजसिंहासन पर बिठाकर उनके पिता वन में प्रभु का स्मरण करने चले गए. लेकिन, उनका मन राज कार्य में नहीं लगा. वे राज-पाट की जिम्मेदारी अपने भाइयों को देकर अपने पिता की सेवा के उद्देश्य से उनके पास वन में चले गए. वन में ही उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या से हुआ. पक्षीराज गरुड़ जीमूतवाहन के साहस, परोपकार और मदद करने की भावना से काफी प्रभावित हुए. उन्होंने जीमूतवाहन को प्राणदान दे दिया और कहा कि वे अब किसी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे. इस तरह से जीमूतवाहन ने नागों की रक्षा की. तभी से संतान की सुरक्षा और सुख के लिए जीमूतवाहन की पूजा की शुरुआत हो गई. आस्थावान माताओं समेत पुरुष व्रतियों के लिए ये व्रत बहुत फलदाई है. (सोनू कुमार भगत की रिपोर्ट).

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