सीवान : त्याग और बलिदान का महान त्योहार ईद-उल-अज़हा शांतिपूर्ण महौल में संपन्न, सुबह के 05:30 से लेकर 07:30 तक हुई मस्जिदों और ईदगाहों में नमाज
सीवान || मुसलमानों के हिजरी कैलेन्डर के आखरी महीना ज़िल-हिज़्ज़ा की 10 तारीख को होने वाले त्याग और बलिदान का महान त्योहार ईद-उल-अज़हा अर्थात बकरीद का पर्व जिले में शांतिपूर्ण माहौल में सम्पन्न हो गया. संपूर्ण जिले मे बकरीद की नमाज विभिन्न मस्जिदों और ईदगाहों में सुबह के 05:30 से लेकर 07:30 बजे तक हुई.
जिले में सबसे पहली नमाज सुबह के साढ़े पांच बजे नगर के चकिया स्थित जमाअत अल हदीश की मस्जिद-ए-आयशा में हुई. उसके बाद कहीं-कहीं पर पौने छः बजे हुई और सबसे बड़ी जमाअत जमाअत अल हदीस द्वारा पुराना किला स्थित इस्लामिया उच्च विद्यालय-सह-इंटर कॉलेज के विशाल प्रांगण में सुबह के 06:00 बजे हुई, जहां हजारों लोगों ने शिरकत कर नमाज अदा की. यहां पर नमाज मौलाना मजहरुल हक़ नगर कॉलोनी के तक़वा मस्जिद के खतीब व इमाम मौलाना अबू नोमान सल्फी ने पढ़ाई. जहां नमाज बाद आधे घंटे के लम्बे खुतबे (उपदेश) में मौलाना ने कहा कि कुर्बानी ईखलास का पैगाम देता है अर्थात ईमानदारी और पवित्रता का संदेश देता है. मौलाना ने कहा कि अल्लाह को हमारी इबादत (उपासना) की जरूरत नही है, बल्कि जरूरत है तो अल्लाह का आज्ञाकारी बन्दा बने और अपने अंदर अल्लाह का डर और खौफ जरूर रखें. अगर, ये नही तो सब ईबादत बेकार है. उन्होंने कहा कि अपने अंदर तक़वा पैदा करें अर्थात सहिष्णुता, ईश्वरीय चेतना, पवित्रता, अल्लाह का डर, अल्लाह के प्रति प्रेम और आत्मसंयम और सदाचारी बने. यहां नमाज में पुरुषों के अलावा महिलाओं ने भी नमाज अदा की, जिनके लिए पर्दा की व्यवस्था की गई थी. यहां खुतबा उर्दू में हुआ जबकि हर जगह अरबी में हुआ.
वहीं शहर की सबसे बड़ी ईदगाह नवलपुर स्थित रज़ा नगर में शहर-ए-मुफ़्ती इरफान चिस्ती ने सुबह के 07:30 बजे नमाज पढ़ाई. यहां सबसे आखिर में नमाज हुई, जहां भारी संख्या में लोगों ने नमाज पढ़ी और मुल्क की खुशहाली और तरक्की के लिए दुआ की. यहां जिला प्रशासन के आला अधिकारी भी कैम्प हुए थे और सशत्र बल के जवान मुस्तैद दिखे. सीवान नगर परिषद की की ओर से पानी की टैंकर भी रखी गई थी, जिससे वजू बना सके और प्यास भी बुझा सके. वहीं जिला शान्ति समिति के सदस्य, अलग-अलग स्वंयसेवी संस्था से जुड़े लोग, नेता और समाजसेवी भी मुस्लिम भाईयों के नमाज अच्छी तरह से सम्पन्न हो उसके लिए व्यवस्था में लगे हुए नजर आएं. नमाज के बाद लोगों ने एक दूसरे से गले मिल कर मुबारकबाद पेश किया. सामर्थ्य लोगों ने बकरा (खस्सी) की कुर्बानी किया और मीट को लोगों में बांटा.
गौरतलब है कि ईद-उल-अज़हा (बकरीद) पैगम्बर-ए-इस्लाम इब्राहिम अलैहे सलाम की अल्लाह पर अक़ीदा (विश्वास) की याद में मनाया जाता है. इस दिन अल्लाह ने इब्राहिम अलैहे सलाम को अपने बेटे इस्माईल अलैहे सलाम की कुर्बानी देने का आदेश दिया था तो इब्राहिम अलैहे सलाम ने अल्लाह के हुकुम (आज्ञा) का पालन करते हुए अपने बेटे इस्माईल अलैहे सलाम के चेहरे पर पट्टी बांध कर बिना किसी भी तरह की चिंता फिक्र किए कुर्बानी देने के लिए जैसे ही आगे बढ़े तो यह देखकर अल्लाह बहुत खुश हुए और फिर अल्लाह ने इब्राहिम अलैहे सलाम को अपने जान से भी प्यारे बेटे इस्माईल अलैहे सलाम की कुर्रबानी से रोकते हुए वहां भेंड़ आ गया और उसकी कुर्बानी हो गई. तब से यह परंपरा लगभग 1400 साल से चला आ रहा है. इस्लामी मान्यता है कि कुर्बानी करने से अल्लाह के प्रति और भी आस्था और विश्वास कायम होता है.
बकरीद की खुशी छोटे-छोटे बच्चों में खूब दिखने को मिली, मेले में चाट, पानीपुरी के साथ झूलें का उठाया आनंद
बकरीद में छोटे-छोटे बच्चों की खुशी देखते ही बन रही थी. नमाज अदा करने के बाद बच्चों ने जहां खूब फ़ोटो खिंचवाया और सेल्फ़ी ली और अभिवावकों से परबी (पैसा) लिया वहीं शहर में जगह-जगह चौक-चौराहों पर लगे मेले का आनंद उठाया. मेले में चाट, पानी पुरी के साथ झूलें का आनंद उठाया. शहर के नया किला के अखाडा मैदान में विशाल मेला लगा था, जहां झूला भी लगे थे. छोटे-छोटे बच्चों के साथ बड़े बच्चे भी झुला का मज़ा लेते नजर आएं. आज के दौर में भले ही यरतगुल गाजी वाली टोपी और गमछा का प्रचलन बहुत ज्यादा है, लेकिन सऊदी पोशाक तोप और सर ढ़कने वाला गोत्रा का प्रचलन फिर से शुरू हो गया है. मस्जिद में इस तरह के सऊदी पोशाक पहन कर बहुत सारे बड़ों के साथ बच्चे नजर आएं. जो शकल से अरबी शेख नजर आ रहे थे. इस वर्ष भी काले रंग की ड्रेस का प्रचलन जारी रहा. (सेंट्रल डेस्क).
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