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कैमूर : एक ऐसा मंदिर जहां दी जाती है रक्त विहीन बलि, बकरा फूल और चावल के अक्षत से हो जाता है मूर्च्छित

कैमूर जिले के भगवानपुर प्रखण्ड के पवरा पहाड़ी पर स्थित माता मुंडेश्वरी मंदिर है, देश के प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो समतल से 600 फिट की ऊंचाई पर स्थित है. नवरात्र चढ़ते हीं यहां लाखो श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है. नौ दिन माता के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी रही है. देश के कई राज्यों से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं.

पुरातत्वविदों के अनुसार, 389 ई में नक्काशी की गई है, जबकि मूर्तिया उत्तरगुप्त कालीन की बनी हुई हैं. यह मंदिर अष्टकोणीय मंदिर है. माता मुंडेश्वरी मंदिर की कहानी है कि मुंड राक्षस को माता ने वध किया था उसके बाद मंदिर का नाम मुंडेश्वरी मंदिर पड़ा. मुंडेश्वरी मंदिर की बलि प्रथा देश के मंदिरों से अलग है, जहां बिना रक्त विहीन यानी कि बकरों की बिना बलि दिए हीं श्रद्धालुओं की मन्नत पूर्ण हो जाती है. मंदिर में जब कोई श्रद्धालु अपने मन्नत पूर्ण होने के बाद बकरा लेकर आता है तो पहले उसका मंदिर के कर्मचारियों द्वारा रजिस्ट्रेशन किया जाता है. उसके बाद मंदिर में ले जाकर माता मुंडेश्वरी के चरणों मे पुजारी चढ़ाते है, फिर सिर्फ चावल और फूल के अक्षत मात्र से बकरा मूर्छित हो जाता है और यह मान लिया जाता है कि मां ने बलि स्वीकार कर लिया. फिर उस श्रद्धालू को बकरा वापस कर दिया जाता है. वहीं दूसरा पहलू मंदिर का अद्भुत है. मंदिर के प्रांगण में स्थित पंचमुखी महादेव शिव का मंदिर, जो सूर्य के साथ तीन से चार बार रंग बदलता है. अनुसंधान के अनुसार, यह शिवलिंग मंदिर से नीचे 108 फिट गहराई तक है.

क्या कहते है मंदिर के पुजारी

माता मुंडेश्वरी मंदिर के पुजारी राधेश्याम झा ने बताया कि मंदिर अष्टकोणीय मंदिर है, जिससे माता के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं को धन, वैभव व शांति की प्राप्ति होती है. भारत देश मे पहला देवी मंदिर है जहां रक्त विहीन बलि देने की प्रथा है, यानी कि बकरे को चावल और फूल के अक्षत से बलि देने की प्रथा है. श्रद्धालु जो भी मन्नत मांगते है उसे माता पूर्ण कर देती हैं.

क्या बोलते है श्रद्धालु

श्रद्धालु आर्मी कैप्टन त्रिवेणी साह, शिवम गुप्ता, पंकज मोदी, अनुराग केशरी का कहना है कि माता हर श्रद्धालु की मन्नत पूर्ण करती है. इसलिए कोई बच्चा तो कोई धन, निरोग की मन्नत रखते हैं. पूर्ण होने पर माता को चढ़ावा चढ़ाया जाता है. इसके साथ ही समाज सेवियों द्वारा नौ दिनो तक श्रद्धालुओं को नि:शुल्क खाना भी प्रसाद के रूप में दिया जाता है. (विशाल कुमार की रिपोर्ट).

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