भगवान शंकर के स्वरूप पार्श्वनाथ
राजस्थान अलवर शहर से करीब 3 किमी दूर स्थित एक गांव का संबंध लंकापति रावण से बताया जाता है। जैन शास्त्रों की मानें तो रावण यहां भगवान शंकर के स्वरूप पार्श्वनाथ की पूजा करने आया था। यहीं उसे तपस्या के बाद पारस पत्थर मिला था। मान्यता है कि पारस पत्थर के संपर्क से लोहा भी सोना बन जाता था।
अलवर शहर से तीन किलोमीटर दूर रावण देहरा गांव में आज भी प्राचीन जैन मंदिर के भग्नावशेष मिलते हैं। कहते हैं इस मंदिर का निर्माण रावण ने खुद कराया था। रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी जब यहां पार्श्वनाथ की पूजा में लीन थे, तभी इंद्रदेव प्रकट हुए और पार्श्वनाथ भगवान की पूजा कर चमत्कारिक पारस पत्थर का वरदान लेने को कहा।
इसके बाद रावण ने उनकी पूजा कर पारस पत्थर प्राप्त किया। इस चमत्कारिक पत्थर के संपर्क में लोहा भी सोना बन जाता था। रावण ने लोहे से सोना बनाया और स्वर्ण नगरी का निर्माण कराया। रावण देहरा गांव के जैन मंदिर की मूर्तियों को बीरबल मोहल्ले में स्थित जैन मंदिर में रखा गया है। इस मंदिर को रावण पार्श्वनाथ मंदिर कहा जाता है।
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