Abhi Bharat

चाईबासा : गुरु कोल लको बोदरा की मनी 100वीं जयंती

संतोष वर्मा

चाईबासा में शनिवार को आदि संस्कृति विज्ञान एवं शोध संस्थान (एटे: तुरतुंग सुल्ल पिटिका अकड़ा) जोड़ापोखर झींकपानी में हो कैलेंडर लिटा गोरगोणिड् के अनुसार गुरु कोल लको बोदरा की 100 वीं जयंती अंङइ पोनइ विधिवत मनाई गई.

सूर्योदय से ही दस्तूर अनुसार संस्थान के ऐण ग्रुप (अध्यात्मिक गुरुओं) द्वारा पूजा अर्चना की गई। तत्पश्चात देश के विभिन्न जगहों, राज्यों से आए हुए अनुयाई एवं भक्तों ने पुष्पांजलि अर्पित कर जयंती समारोह को हर्षोल्लास के साथ मनाया इस अवसर पर अतिथि के रूप में सीआरपीएफ 197 बटालियन कमान्डेंट परमा शिवम ने सभा संबोधित करते हुए कहा कि विभिन्न कमांडिंग सेंटर से आए हुए प्रतिभागियों ने अपनी भाषा में नाटक, गीत व नृत्य प्रस्तुत किया यह बहुत अच्छा है. सभी को अपनी भाषा से प्रेम करनी चाहिए. जो समाज अपनी भाषा लिपि को भूल जाएगा, उस दिन उस समाज का पहचान अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. उन्होंने कहा कि सभी लोग अपनी नौकरी वैवाहिक स्थिति एवं बाल बच्चों के लिए ही सोच रहे हैं लेकिन लको बोदरा जी ने अपने आदिवासी समुदाय के लिए काम किया उसी का परिणाम है कि आज हम बोदरा जी की जयंती मना रहे हैं, उनके कारण से ही आज हम हजारों की संख्या में देश के विभिन्न राज्यों से भी इस जयंती को मनाने के लिए शामिल हुए हैं, साथ ही साथ अन्य जगहों में भी जयंती मनाई जा रही है. धर्म के नाम पर मैंने काफी भीड़ देखा था पर अपने भाषा, लिपि, साहित्य के लिए काम करने वाले लको बोदरा के लिए पहली बार हमें भी समाज के लिए कुछ ना कुछ करना चाहिए तब जाकर समाज का उत्थान हो सकता है.

वहीं विशिष्ट अतिथि के रूप में टीसीएस टाटा स्टील की ओर से पधारे मुख्य कार्यकारी पदाधिकारी शिव शंकर कंडेयांग एवं उनके साथ आए पांच शिष्टमंडल सदस्यों ने भी अपने बहुमूल्य विचार देते हुए कहा कि टाटा स्टील की ओर से हर संभव सहयोग किया जा रहा है एवं भविष्य में भी हो भाषा लिपि साहित्य के उत्थान के लिए सहयोग देने का आश्वासन दिया. जबकि प्रखंड विकास पदाधिकारी झींकपानी ने कहा कि हो भाषा को वारंग चिति लिपि में लिखने से ही सही-सही लिखा एवं उच्चारित किया जा सकता है. बोदरा जी के नाम से ही जिला प्रशासन की ओर से पुस्तकालय का प्रारंभ भी जोड़ा पोखर, झींकपानी में की गई है, सभी प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए किताबें उपलब्ध हैं. सभी उनका लाभ ले सकते हैं. वहीं केंद्रीय अध्यक्ष बड़कुंवर सिंकु ने बताया कि 1954 से बोदरा जी के द्वारा स्थापित 14 कमांडिंग सेंटर को पुनर्जीवित किया गया. बोदरा जी के उद्देश्यों को पूरा करने के लिए इनका पुनर्जीवित करना अत्यंत आवश्यक था. आदि संस्कृति विज्ञान एवं शोध संस्थान आम जनों के साथ-साथ प्रशासनिक पदाधिकारियों के साथ संपर्क स्थापित कर भाषा, लिपि, सामाजिक उत्थान कार्यों के लिए सदा प्रयासरत रहेगा.

अंत में उनके वंशजों को विभिन्न संगठनों के द्वारा सम्मानित भी किया गया. इस अवसर पर पूर्व अध्यक्ष सतीश चंद्र बिरूली, जगन्नाथ हासदा, गरदी मुण्डा, पोदना हेस्सा, कृष्णा सिंकू, 14 कमांडिंग सेंटर के प्रतिनिधि एवं विभिन्न राज्यों से आए हुए प्रतिनिधि उपस्थित थे.

You might also like

Comments are closed.