चाईबासा : सांसद गीता कोड़ा ने सर्पदंश से मौत पर मुआवजे के प्रावधान के लिए सीएम को लिखा पत्र
चाईबासा में सांसद गीता कोड़ा ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर सर्पदंश से होने वाले मौत पर वन एवं पर्यावरण विभाग से मुआवजा राशि तथा झारखंड में सर्पदंश के उचित जांच एवं इलाज हेतु राज्य में टॉक्सिकोलॉजी लैब की स्थापना किये जाने की मांग की है.
बता दें कि सर्पदंश से होने वाले मौत पर वन एवं पर्यावरण विभाग से मुआवजा राशि तथा झारखण्ड में सर्पदंश के उचित जांच एवं इलाज हेतु राज्य में टॉक्सिकोलॉजी लैब की स्थापना करने के संबंध में सिंहभूम की सांसद गीता कोड़ा ने झारखण्ड राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखकर ध्यानाकृष्ट कराते हुए कहा कि प्रतिवर्ष झारखण्ड में सर्पदंश से मौत के करीब तीन हजार मामले सामने आते है. जिनमें से अधिकांश लोगों की उचित चिकित्सा व्यवस्था के अभाव में असामयिक मृत्यु हो जाती है. झारखण्ड में कहीं भी सांप के विष जांच की सुविधा नहीं है. लिहाजा आज भी सांप के रंग-रुप के आधार एवं अनुमान पर ही इलाज किया जाता है. सर्पदंश के बाद कई मामलों में चिकित्सक मरीजों से सांप की तस्वीर तक मांगते हैं.
झारखण्ड राज्य में सर्पदंश के उचित जांच हेतु टॉक्सिकोलॉजी लैब अब तक स्थापित नहीं होने के कारण मरीजों को समय रहते उचित इलाज नहीं मिल पाता है. सभी जहरीले और बिना जहर के सांप. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 में संरक्षित वन्यजीव है और इन्हे अधिकतम सुरक्षा प्राप्त है. उपरोक्त अधिनियम के तहत सांपों के शिकार पर पूर्ण प्रतिबन्ध है. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम की कार्यान्वयन की जिम्मेवारी वन विभाग पर है, जबकि वन विभाग पर सांपों की सुरक्षा की जिम्मेवारी है. लेकिन उससे पैदा होने वाली सांप – मानव पशु द्वंद के स्थिति में मिलने वाले अनुदान की जिम्मेवारी आपदा प्रभाग को होने के कारण विरोधाभास की स्थिति को जन्म दे रही है. इस स्थिति में वन विभाग सांपों की विधि के अनुसार सुरक्षा देने में अपने आप को अकसर असहाय स्थिति में पाती है. यह न्यायोचित होगा की जिस विभाग पर सांपों की सुरक्षा की जिम्मेवारी है. वही विभाग उससे पैदा होने वाले द्वंद की राशि विमुक्त करे.
झारखण्ड राज्य में प्रमुख जंगली पशुओं मसलन हाथी, भालू आदि द्वारा पहुंचाए गए जान-माल के नुकसान की मुआवजा राशि का भुगतान वन विभाग द्वारा किया जाता है. परन्तु सांप के वन्यजीव के श्रेणी में होते हुए भी सर्पदंश के मामलों को अलग कर मुआवजा राशि के भुगतान का प्रावधान आपदा प्रबंधन द्वारा किया गया है. जिसके कारण मुआवजा भुगतान के मामले तो लंबित होते ही है. प्रभावितों को मुआवजा राशि भी वन विभाग की तुलना में कम मिल पाती है. सर्पदंश से मौत के मामले को गंभीरता से लेते हुए सर्पदंश को राज्य आपदा प्रभाव से विलोपित कर इसे मानव-वन्यजीव द्वंद के तहत वन विभाग को सौंपा जाए और इसके लिए एक सरकारी संकल्प धोषित किया जाए एवं झारखण्ड में सर्पदंश के उचित जांच एवं इलाज हेतु राज्य में टॉक्सिकोलॉजी लैब की स्थापना की जाए. (संतोष वर्मा की रिपोर्ट).
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