सीवान पचरुखी चीनी मिल का मामला फिर गरमाया, ग्रामीणों ने प्रशासन को भू-मापी से रोका, जदयू विधायक श्याम बहादुर सिंह ने भी ग्रामीणों का किया समर्थन
कन्हैया प्रसाद
सीवान के पचरुखी प्रखंड स्थित वर्षो से बंद पड़े पचरुखी चीनी मिल के जमीन विवाद का मामला एकबार फिर से गरमा गया है. एक ओर जहाँ आस-पास के ग्रामीण किसान हैं तो दूसरी तरफ भू-सरगना और भू-माफिया हैं, जो प्रशासन की मिलीभगत से जमीन को कब्जाना चाहते हैं. बुधवार को स्थानीय प्रशासन भू-सरगनाओं के प्रभाव में आकर जबरन भूमि की पैमाइश कराने लगा जिससे गुस्साए लोगों ने मील पर जमकर हंगामा किया.
बड़हरिया विधान सभा के पूर्व प्रत्याशी उमेश कुमार के नेतृत्व में सैकड़ो की संख्या में आये ग्रामीणों ने जमीन की मापी को रोक दिया. इस दौरान प्रशासन और ग्रामीणों के बीच धक्का-मुक्की और तू-तू , मैं-मैं भी हुयी. हालांकि आक्रोशित ग्रामीणों के गुस्से को देख प्रशासन को नरम होना पड़ा.
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मापी की सूचना मिलते ही काफी संख्या में महिला, पुरुष बालक व वृद्ध भी मौके पे पहुंच गए तथा मापी का जमकर विरोध किया. इस दौरान काफी समय तक हल्ला-हंगामा होते रहा. कई-कई बार तो अफरा-तफरी की स्थिति उत्पन्न हो गई. मापी की सूचना पर स्थानीय विधायक श्यामबहादुर सिंह भी मिल कैम्पस में पहुचे व मापी का खुलकर विरोध किया.
जदयू विधायक श्यामबहादुर सिंह के प्रति भी ग्रामीणों का आक्रोश सातवे आसमान पे था. लोगों का आरोप था कि विधायक भू-सरगनाओं के लालच में आकर किसान विरोधी कार्य कर रहें हैं. कभी भी मुखर होकर किसानों की आवाज को विधानसभा में नहीं उठाया है. हालांकि जब विधायक जी को पैमाइश का विरोध करते लोगों ने देखा तो उनकी नाराजगी काफी हद तक दूर हो गई. लोगों ने विधायक श्यामबहादुर सिंह से कहा कि आप इस मामले को विधान सभा में उठाइये. इन सब में पचरूखी सीओ की भूमिका संदेहास्पद है. आक्रोशित किसानो का कहना है क़ि आखिर क्या कारण है कि गैर-मजरुआ जमीन की भी खरीद-बिक्री हो रही है. किसानों की कीमती जमीन पर बनें चीनी मिल की जमीन को औने-पौने दाम पर निलाम करा दिया गया और सही प्रतिवेदन नहीं दिया गया.
वहीं बड़हरिया विधानसभा सभा के पूर्व प्रत्याशी उमेश कुमार सिंह ने यह आरोप लगाया है कि पचरूखी के चीनी मिल की जमीन में न केवल भू-सरगनाओं बल्कि इनकी मिलीभगत से अधिकारी व कई अन्य भी मालामाल हुए हैं और बेनामी संपत्ति बनाई है. जिसके बारे में सूचना भी मांगी गयी है परंतु, आजतक सूचना उपलब्ध नहीं कराई गयी. उमेश सिंह ने कहा कि यही नहीं इस जमीन के बारे में हाईकोर्ट में मैंने जनहित याचिका CWJC No 1565/17 भी दायर किया है. जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है. उमेश कुमार का कहना है कि मिल की जमीन की नीलामी पूर्णतः गलत है. उन्होंने कहा कि उक्त भूमि का भू-अर्जन बिहार सरकार द्वारा सार्वजनिक हित में वर्ष 1950 ईo में किया गया. चीनी मिल को उक्त जमीन किसानों ने इस शर्त के साथ दिया था कि सरकार जब चाहे कम्पनी को समाहर्ता द्वारा निर्धारित मुवावजे का भुगतान कर जमीन वापस ले सकती है. यदि कम्पनी को भूमि की आवश्यकता नहीं होगी तो कम्पनी मुआवजे में दी गई राशि को वापस लेकर उक्त जमीन मूल भू-धारियों को सौंप देगी. इस प्रकार उक्त भूमि पर कंपनी का अधिकार केवल चीनी मील चलाने तक ही सीमित था. मिल बंद होने की स्थिति में उक्त जमीन या तो सरकार के कब्जे में चली जानी थी अथवा मूल भू-धारियों को लौटा दी जानी थी. लेकिन, इन सभी बातों को नजर-अंदाज करते हुये कम्पनी ने उक्त भूमि को बैंक के पास बंधक रखकर लोन ले लिया तथा लोन चुकाने में असफल होने पर बैंक द्वारा जमीन की नीलामी कराई गई अब, उक्त भूमि निजी हाथों में जा रही है, जो बिहार सरकार एवं पचरुखी व जसौली के किसानों के साथ धोखाधड़ी है.
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