नालंदा : ताइवान की 30 सदस्यीय टीम पहुंची बिहारशरीफ, उदंतपुरी विश्वविद्यालय का भ्रमण कर जाना अतीत
नालंदा के बिहारशरीफ स्थित उदंतपुरी विश्वविद्यालय के अवशेष को देखने के लिए बुधबार को ताइवान के 30 सदस्य टीम बिहारशरीफ के किलापर मोहल्ला पहुची. मगर यहां आने के बाद टीम को निराशा हाथ लगी क्योंकि यहां पर उस उदंतपुरी के इतिहास को नष्ट कर जमीन पर कब्जा कर लिया गया है.
टीम के सदस्य इस स्थल पर पूजा करने के उद्देश्य से आये थे, मगर यहाँ की स्थिति को देखते हुए वे लोग नालंदा चले गए. टीम के लोगो ने आरोप लगाया कि सरकार अगर यह अवशेष आरकोलॉजिकल को सौप देती तो यहां का इतिहास हमेशा के लिए जीवित रहता. लेकिन, सरकार की अनदेखी के कारण आज उदंतपुरी सिर्फ एक इतिहास बनकर ही रह गया. उन्होंने कहा कि यह विश्वविद्यालय भी नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की तरह विख्यात था. परन्तु उदंतपुरी विश्वविद्यालय का उत्खनन कार्य नहीं होने के कारण यह आज भी धरती के गर्भ में दबा है. जिसके कारण बहुत ही कम लोग इस विश्वविद्यालय के इतिहास से परिचित हैं.
गौरतलब है कि अरब लेखकों ने इसकी चर्चा ‘अदबंद’ के नाम से की है, वहीं ‘लामा तारानाथ’ ने इस ‘उदंतपुरी महाविहार’ को ‘ओडयंतपुरी महाविद्यालय’ कहा है. ऐसा कहा जाता है कि नालंदा विश्वविद्यालय जब अपने पतन की ओर अग्रसर हो रहा था, उसी समय इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी. इसकी स्थापना प्रथम पाल नरेश गोपाल ने सातवीं शताब्दी में की थी. ख़िलजी का आक्रमण तिब्बती पांडुलिपियों से ऐसा ज्ञात होता है कि इस महाविहार के संचालन का भार ‘भिक्षुसंघ’ के हाथ में था, किसी राजा के हाथ नहीं. सम्भवतः उदंतपुरी महाविहार की स्थापना में नालंदा महाविहार और विक्रमशिला महाविहार के बौद्ध संघों का मतैक्य नहीं था. इस उदंतपुरी की ख्याति नालंदा और विक्रमशिला की अपेक्षा कुछ अधिक बढ़ गई थी. तभी तो मुहम्मद बिन बख़्तियार ख़िलजी का ध्यान इस महाविहार की ओर हुआ और उसने सर्वप्रथम इसी को अपने आक्रमण का पहला निशाना बनाया. ख़िलजी 1197 ई. में सर्वप्रथम इसी की ओर आकृष्ट हुआ और अपने आक्रमण का पहला निशाना बनाया. कहा जाता है कि उसने इस विश्वविद्यालय को चारों ओर से घेर लिया, जिससे भिक्षुगण काफ़ी क्षुब्ध हुए और कोई उपाय न देखकर वे स्वयं ही संघर्ष के लिए आगे आ गए, जिसमें अधिकांश तो मौत के घाट उतार दिए गए, तो कुछ भिक्षु बंगाल तथा उड़ीसा की ओर भाग गए और अंत में इस विहार में आग लगवा दी गयी. इस तरह विद्या का यह मंदिर सदा-सदा के लिए समाप्त हो गया. (प्रणय राज की रिपोर्ट).
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