कैमूर : मत्स्य विभाग की टीम ने कोलकाता से यूपी ले जा रहे तीन ट्रक प्रतिबंधित थाई मांगुर मछली को किया बरामद, गड्ढा खोदकर नष्ट करने में जुटा प्रशासनिक महकमा

कैमूर से बड़ी खबर है, जहां दुर्गावती में एनएच दो से मत्स्य विभाग और पुलिस दल ने प्रतिबंधित थाई मांगूर प्रजाति की मछली को तीन ट्रक से भारी मात्रा में जब्त किया है. प्रतिबंधित मछली की प्रजाति को तीन ट्रकों पर लादकर कोलकाता से यूपी ले जाया जा रहा था. मछलियों की प्रजाति की पहचान होने के बाद पुलिस ने तीनों ट्रकों में लदी थाई मांगुर मछली को कब्जे में ले लिया.

जिला मत्स्य पदाधिकारी ने बताया कि गड्ढा खोदकर मछलियों को नष्ट किया जाएगा. गौरतलब है कि मत्स्य विभाग को मुखबिर से सूचना मिली कि प्रतिबंधित मछली की प्रजाति थाई मांगुर की तस्करी की जा रही है. इसके बाद हरकत में आए प्रशासन ने तीन ट्रकों को जीटी रोड पर खड़ी तीन ट्रक को रोककर चेक किया चेकिंग में इनमें थाई मांगुर प्रजाति की मछलियां पाई गईं जिनकी अनुमानित कीमत लाखों की बतायी जा रही है. अब पुलिस प्रशासन मछलियों को गड्ढ़ा खोदकर प्रतिबंधित मछली को नष्ट करने में जुटी हुई है. वहीं पुलिस तस्करी में लिप्त तीनों ट्रकों के खिलाफ कार्रवाई करने में जुटी हुई है.
बता दें कि थाईलैंड में विकसित थाई मांगुर पूरी तरह से मांसाहारी मछली है, इसकी विशेषता यह है कि यह किसी भी पानी (दूषित पानी) में तेजी से बढ़ती है, जहां अन्य मछलियां पानी में ऑक्सीजन की कमी से मर जाती है लेकिन यह जीवित रहती है. भारत सरकार ने साल 2000 में ही थाई मांगुर मछली के पालन और बिक्री पर रोक लगा दी थी. लेकिन इसकी बेखौफ बिक्री जारी है. इस मछली के सेवन से घातक बीमारी हो सकती है. इसे कैंसर का वाहक भी कहा जाता है. ये मछली मांस को बड़े चाव से खाती है. सड़ा हुआ मांस खाने के कारण इन मछलियों के शरीर की वृद्धि एवं विकास बहुत तेजी से होता है. यही कारण है कि यह मछलियां तीन माह में दो से 10 किलोग्राम वजन की हो जाती हैं. इन मछलियों के अंदर घातक हेवी मेटल्स जिसमें आरसेनिक, कैडमियम, क्रोमियम, मरकरी, लेड अधिक पाया जाता है जो स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक हानिकारक है. थाई मांगुर के द्वारा प्रमुख रूप से गंभीर बीमारियां जिसमें हृदय संबंधी बीमारी के साथ न्यूरोलॉजिकल, यूरोलॉजिकल, लीवर की समस्या, पेट एवं प्रजनन संबंधी बीमारियां और कैंसर जैसी घातक बीमारी अधिक हो रही है. इसका पालन करने से स्थानीय मछलियों को भी क्षति पहुंचती है. साथ ही जलीय पर्यावरण और जन स्वास्थ्य को खतरे की संभावना भी रहती है. (विशाल कुमार की रिपोर्ट).
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