पटना : राज्य कर उपायुक्त समीर परिमल के जन्मदिवस पर आयोजित हुई “काव्य गोष्ठी”

पटना || बंधु एंटरटेनमेंट एवं एस स्क्वायर इवेंट्स एंड मार्केटिंग के सौजन्य से जन्माष्टमी के दिन मशहूर शायर एवं राज्य कर उपायुक्त समीर परिमल के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर एक भव्य काव्य गोष्ठी आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता देश के सुप्रसिद्ध शायर डॉ क़ासिम खुरशीद एवं संचालन युवा कवि, अभिनेता अविनाश बन्धु ने की.
इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में चंपारण से पधारे देश के सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार डॉ शकील मोईन एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध शायर संजय कुमार कुंदन के साथ राज्य के गणमान्य अधिकारी एवं कवि शायर मौजूद रहे. सभी ने जन्मदिन की बधाई देते हुए एक से बढ़ कर एक गीत और ग़ज़लों की प्रस्तुति दी.
इस शानदार महफ़िल में सुधीर कुमार पूर्वे, जलेश्वर प्रसाद, रत्नेश्वर, आनंद बिहारी प्रसाद, ज्योति, रवि किशन, डॉ रश्मि रंजीता, संगीता मिश्रा, रूपांजली, डॉ नसर आलम नसर, मोईन गिरिडीहवी, अनिसुर रहमान, प्रोफेसर डॉ जियाउद्दीन, कुमार संभव, कृष्ण समिद्ध, अमृतेश कुमार मिश्रा, डॉ रामनाथ शोधार्थी, प्रोफेसर फिरोज मंसूरी, अमलेंदु अस्थाना, राजकांता राज, डॉक्टर पूनम सिन्हा श्रेयसी, नीलांशु रंजन, आराधना प्रसाद, रेखा भारती मिश्रा, आरजे श्वेता सुरभि, असर फरीदी, सुहैल फारुकी, रोबिन सिंह, आलोक कुमार, अशोक कुमार, रविंद्र कुमार, सागरिका चौधरी एवं अन्य गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही.
समीर परिमल ने सुनाया :
“ज़िंदगी ज़िंदगी हो गई
आप जो हमसफ़र हो गए
मैं तेरा यूं तेरा हो गया
ऐब सारे हुनर हो गए”
क़ासिम खुरशीद ने सुनाया :
“कुछ फासले से मिलना, दामन बचाए रखना
आंखों में जब समाना, सावन बचाए रखना
हाथों में उसके बंशी और सांवली सी रंगत
अपना कृष्ण है वो, माखन बचाए रखना”
डॉ शकील मोईन ने सुनाया :
“मेरे हालात अगर तेरी तरह हो जाते
हम भी दुनिया की निगाहों से कहीं खो जाते
ज़िंदगी मुझको अभी और जिलाए रखती
तेरी आंखों में मेरे ख़्वाब अगर सो जाते”
संजय कुमार कुंदन ने सुनाया :
“शायद थी एहसास की शिद्दत, शायद कोई ख़ुशफ़हमी
रात जो तकिए हमने भिगोए, इश्क़? नहीं ये इश्क़ न था
दिल की पुश्त पे धरी हुई थी कितनी किरचों की गठरी
कुछ रिश्ते जो हमने ढोए, इश्क़? नहीं ये इश्क़ न था”
डॉ रामनाथ शोधार्थी ने सुनाया :
“दिल समझदार हो गया है क्या
जीना दुश्वार हो गया है क्या
आजकल सीरियस बहुत हो तुम
वाकई प्यार हो गया है क्या”
आराधना प्रसाद ने सुनाया :
“खिलते-खिलते गुल मुरझाना, मैं भी देखूं तू भी देख
हंसते-हंसते आंसू आना, मैं भी देखूं तू भी देख
अंदर-अंदर मैं बिखरी हूं, बाहर-बाहर तू बिखरा
उल्फ़त का ऐसा नज़राना, मैं भी देखूं तू भी देख” (ब्यूरो रिपोर्ट).