पाकुड़ : ईमानदारी और निष्ठा से महिलाएं बनी समाज के लिए मिसाल, हर क्षेत्र में मनवा रही अपनी कामयाबी का लोहा
मक़सूद आलम
कोमल है कमजोर नहीं, इस शक्ति का नाम ही नारी है. इस ध्येय के साथ पाकुड की महिलाओं ने समाज के हर क्षेत्र में अपनी कामयाबी का लोहा मना रही हैं।जनप्रतिनिधि के रूप में हो या फिर शिक्षा देने का.शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़े जिले का कलंक मिटाने की दिशा में उठाये जा रहे कदम व स्वरोजगार के साधन विकसित करने और राज्य स्तर पर पाकुड शहर को स्वच्छ बनाने के लिए नई इबारत लिख रही हैं. बहुमुखी प्रतिभा में दमखम दिखाने में जिले की महिलाओं में अपनी खास पहचान बन रखी हैं.
सदर ब्लॉक पाकुड के इलामी पंचायत की मिस्फीका बनी समाज के लिए मिसाल
जिला मुख्यालय से महज 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इलामी पंचायत की मुखिया मिस्फीका हसन ने एक छोटे से गांव से निकल कर राज्य ही नही बल्कि देश की लड़कियों के लिए मिसाल बनी है. मिस्फीका जामिया मिल्लिया इस्लामिया दिल्ली से पढ़ाई पूरी की है. आईएएस बनने का सपना तो देखी थी लेकिन इलामी गांव की दुर्दशा को देख मुखिया बनकर गांव की तकदीर बदलने की चाह ने गांव की ओर रुख कर दिया. मुखिया में खड़ी हुई और गांव वालों ने जीत भी दिलाई.
वर्तमान में मिस्फीका ने मुखिया बनकर गांव के लिए मसीहा बनी हुई है. उनके कार्य कुशलता को देखते हुए भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें पार्टी की प्रदेश प्रवक्ता बना दिया है. कुल मिलाकर मिस्फीका ने लगन, ईमानदारी और निष्ठा से अपनी अलग पहचान बनायी है.मिस्फीका का मानना है कि मुश्किल वक्त में भी हौसलों के सहारे आगे बढ़ा जा सकता है. वह कहतीं हैं कि महिलाओं का आत्मनिर्भर होना बेहद जरूरी है.
वह कहती हैं कि महिलायें कार्यों को अधिक ईमानदारी से करती हैं, क्योंकि वह अपेक्षाकृत ज्यादा संवदेनशील होती हैं. इस सवाल पर कि क्या पुरूष प्रधान समाज में उन्हें कार्य करने में कभी दिक्कतें आयीं, मिस्फीका कहती हैं नहीं. वह कहती हैं कि यह सच है कि ज्यादातर लोग दूसरों की तरक्की देखकर दुखी होते हैं लेकिन समाज में कई ऐसे भी लोग हैं, जो आपको आगे बढ़ाने में मदद करते हैं. वैसे भी अगर आपको आगे बढ़ना है तो आलोचकों को साथ रखना जरूरी है.
समाजसेवा के माध्यम से गरीबों की मसीहा बनी है ऋतु पांडेय
बुलन्द हौसले के साथ शुरू की गई हर लड़ाई का अंजाम अच्छा होता है. कुछ इसी धारणा के साथ पाकुड की बेटी ऋतु ने बदलाव की राह पर कदम बढ़ाया और मंजिल हासिल करके दम लिया. ऋतु ने न सिर्फ सामाजिक परिवेश बदलने का साहस जुटाया बल्कि नामुमकिन को मुमकिन करके दिखाया. उसने समाज की महिलाओं को नई दिशा दिखाई. उन्हें बता दिया कि मन में कुछ करने का जज्बा हो तो हर मंजिल हासिल की जा सकती है. आज स्थिति यह है कि ऋतु अपने कार्यों के जरिए सिर्फ शहर ही नही बल्कि पूरे इलाके की चहेती बनी हैं। उसे महिलाएं व युवतियां अपना मार्गदर्शक समझते हैं। ऋतु ने समाज की उन तमाम महिलाओं को नई राह दिखाई, जो सामाजिक ताने-बाने के बीच अपनी दर्द छुपाए सुबक रही थीं. अपनी संस्था फेस के माध्यम से हजारों महिलाओं को
आत्मनिर्भर बनाते हुए शिक्षा का अलख जगाया. ऋतु का मानना है कि महिलाओं ने तो पहले ही साबित कर दिया है कि वे हर चैलेंज को पूरा कर सकती हैं. वे कहती हैं कि महिलाओं को चैलेंज तो हर जगह मिलते हैं, बस जरूरत है खुद के अंदर एक ऐसा आत्मविश्वास जगाने की कि हम सब कुछ कर सकते हैं.
ऋतु कहती हैं कि सिस्टम को जानने-समझने और गरीबों, असहायों, अभावग्रस्तों, और पीड़ितों की सेवा करने का मौका समाजसेवा से बेहतर और कहीं नहीं मिल सकता. इतना ही नहीं इसके माध्यम से ग्राउंड जीरो से कुछ करने का मौका भी प्राप्त होता है. ऋतु कहती हैं अधिकतर मुस्लिम बहुल क्षेत्र की युवती व महिलाओं के बीच कार्य करने का मौका मिला और वर्तमान में काम भी कर रही हूँ. कहती हैं कि अधिक से अधिक महिलाओं को जो समाजसेवा करने की इच्छुक है. उन्हें गरीब,दबे,कुचले लोगों के बीच समय बिताना चाहिए. उन्हें सहयोग करना चाहिए ताकि समाज महिलाओं को कमजोर समझने की भूल न करे.हमारा संविधान कभी महिला या पुरूष में फर्क नहीं करता. ऐसे में कोई भी चैलेंज पूरा करने में हिचकिचाहट भी नहीं होती, क्योंकि हमारी सोच ही महिला और पुरूषों में फर्क करती है.
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