चाईबासा : दो दशक से नक्सलियों के कारण पोडाहाट जंगल विकास से कोसों दूर
संतोष वर्मा
चाईबासा में आजादी के बाद सरकारी उपेक्षा और दो दशक से नक्सलियों के कारण पोडाहाट जंगल विकास से पूरी तरह से कट गया. आज यहां के लोग हर सुविधा से मरहूम है, सरकारी उपेक्षा का लाभ नक्सलियों ने उठाया और इस पोडाहाट को अपना गढ बनाया. लेकिन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पोडाहाट जंगल को घोर नक्सल समस्या से मुक्त कर इस क्षेत्र को हर तरह विकसित करने के लिए नील क्रांति की शुरूआत की है.
पोडाहाट जंगल राजा-महराजाओं का गढ रहा है, लेकिन आज भाकपा माओवादियों और पीएलएफआई जैसे नक्सलियों का गढ है. पोडाहाट जंगल पहाड और हरे-भरे जंगलों से घिरे होने के कारण बेहद खूबसूरत है, यहां की प्राकृतिक सौंदर्य को देख किसी का मन खिल उठेगा, लेकिन कहते है न कि जंगल में मोर नाचा तो किसने देखा. बस यहीं कहावत पोडाहाट के साथ जुडा है, इसकी खूबसूरती किसी ने देखी ही नहीं, तो बाहर के लोग जानेंगे कैसे. पश्चिमी सिंहभूम जिला के सोनुवा और गुदडी प्रखंड के सीमा पर पोडाहाट जंगल के बीचो-बीच कई पहाडियों और हरे-भरे जंगलों के घिरा है एक बहुत बडा डैम. जो पंसुवा डैम के नाम से जाना जाता है, इस पंसुवा डैम को जिस कोण, जिस दिशा से देखेंगे तो इसकी खूबसूरती देखते ही रह जाएंगे, लेकिन इस पर अब किसी नजर नहीं गई, लिहाजा आज भी लोग प्राकृति के इस सौंदर्य को देखने से वंचित हैं. यहां तक कि पश्चिमी सिंहभूम जिला के अधिकांश आबादी प्रकृति के इस अदभूत सौंदर्य को देखने से वंचित हैं, कारण साफ है अब इस क्षेत्र में सडक ही नहीं बनी कि लोग आ सकें. पोडाहाट के सबसे नक्सल प्रभावित गुदडी में प्रखंड सह अंचल और थाना खोलने के बाद मुख्यमंत्री रघुवर दास को जब पंसुवा डैम की खूबसूरती के बारे में यहां के आदिवासियों ने जानकारी दी तो सीएम ने पंसुवा डैम को नील क्रांति में बदलने का ऐतिहासिक फैसला लिया है, साथ ही पंसुवा डैम को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने का फैसला लिया है. नील क्रांति और पर्यटन क्षेत्र के विकसित हो जाने से पंसुवा डैम के आस-पास बसे करीब डेढ दर्जन गांवों के 15 हजार आबादी को सीधे स्वरोजगार से जुडने का अवसर मिल जाएगा. इससे नक्सलियों की पकड भी स्वत: कमजोर हो जाएगा.
सीएम रघुवर दास का मानना है कि इस क्षेत्र को विकसित करने और लोगों को स्वरोजगार से जोडने के लिए
सबसे अच्छा माध्यम नील क्रांति ही है. पंसुवा डैम काफी बडा है और यहां मत्स्य पालन करना पोडाहाट जंगल के आदिवासियों के लिए आसान होगा, इसलिए पंसुवा डैम में फिलहाल 32 केज का एक योजना तैयार की है, जहां पांच लाख मछलियां पाली जा सकती है. ऐसा ही मछली केज और 100 की संख्या में बनाए जा सकते हैं, जाहिर इतने अधिक मछली केज बनाने से पोडाहाट जंगल के आदिवासियों के लिए बहुत बडी बात होगी, रोजाना सैकडों टन मछली का उत्पादन होगा. और राज्य भर के लोग ताजी मछलियों को स्वाद ले सकेंगे. इसके साथ पोडाहाट की खूबसूरत वादियों और प्राकृतिक सौंदर्य को लोग देख सकें, इसके लिए सीएम ने इस क्षेत्र को पर्यटन के रूप में भी विकसित करने की योजना बनायी है. इससे बाहरे से आने वाले लोगों के कारण स्थानीय लोगों को कई तरह के स्वरोजगार से जुडने का अवसर मिलेगा. इसके लिए सबसे पहले सीएम ने सोनुवा से गुदडी को जोडने के लिए 45 किमी सडक का निर्माण करा रहे है. फिलहाल शुरूआती दौर होने कारण पंसुवा में अभी कई समस्याएं हैं. पंसुवा डैम के बांसकटा गांव के 51 लोगों की एक मत्स्य पालन समिति बनायी गई है, जो 32 केजों वाली योजना में फिलहाल मछली पालन कर रहे हैं, लेकिन उनके पास नाव या बोट नहीं होने के कारण काफी जोखिम लेकर मछली केज तक रोजाना तीन बार जाते हैं. इनका नाव भी अजीब-गरीब है, एक बडे पेड को काटकर नाव का शक्ल दिया गया है, जिस पर सवार होकर वे
मछली केज तक पहुंचते हैं और मछली पकड लाते हैं.
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