सीवान : चेहल्लुम पर भारतीय मिसाईलों की आकर्षक झाकियों के साथ निकला जुलूस
अभिषेक श्रीवास्तव
सीवान में शुक्रवार को चेहल्लूम के अवसर पर भव्य और आकर्षक झाकियों के साथ जुलूस निकाला गया. शहर में आकाश और इंडियन सहित कई भारतीय प्रक्षेपास्त्रो और मिसाईलो को इस बार झांकी का रूप दिया गया.जो की लोगों के आकर्षण का केंद्र रहा. वहीं जिला मुख्यालय के अलावें सुदूर ग्रामीण इलाको में भी विभिन्न प्रकार की झाकियों के साथ गाजे-बाजे और हाथी, घोड़ो से लैश चेहल्लुम का जुलूस निकाल कर प्रदर्शन किया गया.
जिला मुख्यालय के बिन्दुसार गांव की जुलूस सबसे ज्यादा आकर्षक रहा यहां की भव्य झांकी को देखते बन रहा था. इसके अलावे अन्य स्थानों पर भी जुलूस निकाला गया. जिसमे युवाओं ने जमकर करतब दिखाया. जिसको देखकर लोग दांतों तले अंगुली दबाने को विवश हो रहे थे. लकड़ी बाजार, जलतोलिया, नुरहाता,बड़हरिया, कर्बला, हुसैनगंज, हसनपुरा के अलावे अन्य ग्रामीण इलाकों मे भी जुलूस निकाले गए. इस अवसर पर काफी संख्या मे युवा अपने अपने हाथों लाठी डंडा से लैस हो कर आये व करतब दिखाए. जहाँ लोगों ने अमन चैन खुशहाली की मन्नत मांगी. इस अवसर पर प्रशासन द्वारा सुरक्षा व्यवस्था के पुख्ता इन्तेजाम किये गये. शहर के हर चौक चौराहे पर भरी मात्रा में पुलिस बालो के एतैनती की गयी थी वहीं अपर पुलिस अधीक्षक, अनुमण्डल पदाधिकारी, नगर थाना अध्यक्ष, मुफस्सिल थानाध्यक्ष, महादेवा ओपी व सराय ओपी थाना की पुलिस भी पुलिस बलों के साथ तैनात रही.
गौरतलब है कि मोहम्मद साहब की मृत्यु के लगभग 50 वर्ष बाद मक्का से दूर कर्बला के गवर्नर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया. कर्बला जिसे अब सीरिया के नाम से जाना जाता है. वहां यजीद इस्लाम का शहंशाह बनाना चाहता था. इसके लिए उसने आवाम में खौफ फैलाना शुरू कर दिया. लोगों को गुलाम बनाने के लिए वह उन पर अत्याचार करने लगा. यजीद पूरे अरब पर कब्जा करना चाहता था. लेकिन उसके सामने हजरत मुहम्मद के वारिस और उनके कुछ साथियों ने अपने घुटने नहीं टेके और जमकर मुकाबला किया. अपने बीवी-बच्चों की सलामती के लिए इमाम हुसैन मदीना से इराक की तरफ जा रहे थे तभी रास्ते में यजीद ने उन पर हमला कर दिया. इमाम हुसैन और उनके साथियों ने मिलकर यजीद की फौज से डटकर सामना किया. हालांकि वे इस युद्ध में जीत नहीं सके और सभी शहीद हो गए. किसी तरह हुसैन इस लड़ाई में बच गए. आखिरी दिन हुसैन ने अपने साथियों को कब्र में दफन किया. मुहर्रम के दसवें दिन जब हुसैन नमाज अदा कर रहे थे, तब यजीद ने धोखे से उन्हें भी मरवा दिया. उस दिन से मुहर्रम को इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के त्योहार के रूप में मनाया जाता है.
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