सीवान : जीरादेई पहुंचे हथुआ राज के वंशज महाराजा बहादुर मृगेंद्र प्रताप शाही, देशरत्न की प्रतिमा पर किया माल्यार्पण
संदीप कुमार यति
सीवान के जीरादेई प्रखंड क्षेत्र के भरथुई गढ़ में मंगलवार को क्षेत्रीय इतिहास विषय पर आयोजित संगोष्ठी में आये बतौर मुख्य अतिथि हथुआ राज के वंशज महाराजा बहादुर मृगेन्द्र प्रताप शाही थे ने जीरादेई स्थित देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद के पैतृक आवास में स्थापित प्रथम राष्ट्रपति की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया.
बता दें कि देशरत्न की प्रतिमा पर माल्यार्पण के बाद भरथुई गढ़ में आचार्य मिथिलेश पांडेय ने वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ महाराजा बहादुर मृगेंद्र को गढ़ देवी की पूजा अर्चना कराई. उसके बाद महाराजा ने क्षेत्रीय इतिहास विषय पर संगोष्ठी की अध्यक्षता की. महाराजा बहादुर ने कहा कि भरथुई गढ़ का इतिहास क्षेत्रीय नहीं है बल्कि राष्ट्रस्तरीय है. उन्होंने बताया कि इस गढ़ से हमारे राज घराने का आत्मीय लगाव है, इसी गढ़ के वीर योद्धा बाबू धज्जु सिंह ने हथुआ राज की स्थापना की तथा प्रथम राजा क्षत्रधारी शाही के अविभावक के रूप में शासन में भागीदारी किये.
महाराजा बहादुर ने बताया कि धज्जु बाबू 1764 में अवध के नबाब के लड़ाई कर हुस्से पुर राज की रक्षा किये तथा 1791 में हथुआ राज की स्थापना महत्वपूर्ण योगदान किये. उन्होंने बताया कि भरथुई गढ़ के मिट्टी को नमन कर धन्य हो गया क्योंकि हथुआ राज की महारानी इस गढ़ पर अनेक वर्षों रही तथा राजा महेश शाही की शादी इसी गढ़ से सम्पन्न हुयी थी. महाराजा बहादुर ने बताया कि देशरत्न डॉ राजेन्द्र प्रसाद से तथा उनके पूर्वज से पारिवारिक लगाव था.
उन्होंने बताया कि देशरत्न के पूर्वज चौधुर लाल जी हमारे राज के पटवारी थे तथा राजेन्द्र बाबू छात्र जीवन से लेकर राष्ट्रपति तक हमारे परिवार से जुड़े रहें. महाराजा बहादुर ने कहा कि तीतिरा का संबंध भगवान बुद्ध के जीवन काल से है तथा यहाँ प्राचीन नदी हिरण्यवती के जिसका उल्लेख बौद्ध साहित्य में है. उन्होंने बताया कि हमारे पूर्वज मल्ल जाति से आते थे जो भगवान बुद्ध के परम अनुयायी थे.
वहीं नरवनी वंश के वीर धज्जु बाबू के वंशज संजय सिंह ने कहा कि हमारे पूर्वज नरवर गढ़ से चार सौ वर्ष पूर्व इस क्षेत्र में आये. उन्होंने बताया कि सबसे पहले हमारे पूर्वज वंशीधर राय जी चैन पुर के भूमिहारों के रियासत को आजाद कराये जो तोमर वंशियो के अधीन हो गया था. इस उपकार के बदले चैनपुर के जमींदार ने दो परगना आंदर तथा पचलख वंशीधर राय जी को दे दिया तब ग्राम असांव में उन्होंने गढ़ बनाया. संजय सिंह ने बताया कि वंशीधर राय जी को नौ पुत्र थे. जो क्रमशः भरथुईगढ़, जमापुर भरथुआ, चितउर, छितनपुर, लोहगाजर, नरेंद्रपुर, सरहरवा, सेलरापुर, विष्णुपूरा, मांझा, सुरवल व मुइया में बसे. उन्होंने बताया कि धज्जु बाबू के छोटे भाई वीरा राय जी के पोता दिर्ग राय जी को अंग्रेजों ने कालापानी की सजा दी थी क्योंकि वे अपने जागीर का कर नही देते थे तथा मैरवा में दर्जनों अंग्रेज फौज को मौत के घाट उतार दिए थे. उन्होंने बताया कि इसी वंश के वीर शहीद बाबू उमाकान्त सिंह 1942 के आंदोलन में पटना सचिवालय पर झंडा फहराने के क्रम में शहीद हो गये.
वहीं प्रो गिरीश सिंह ने बताया कि बाबू धज्जु सिंह के वंशज जीरादेई क्षेत्र के बारह गांवों में बसे है जो स्वतंत्रता सेनानी, 1942 में शहादत, न्याययिक, प्रशासनिक, राजनीतिक, शिक्षा व सामाजिक कार्यो में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाये है. शोधार्थी कृष्ण कुमार सिंह ने कहा कि ऐतिहासिक, राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक, खेल एवं पुरातात्विक दृष्टिकोण से जीरादेई क्षेत्र का क्षेत्रीय इतिहास देश के राष्ट्रीय इतिहास में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाता है. संजय सिंह ने कहा कि तीतिरा स्तूप की विगत वर्ष परीक्षण उत्खनन ने इस क्षेत्र के प्राचीनता की वैज्ञानिक पुष्टि कर दी है तथा दर्जनों इतिहासकारों, पुरातत्वेत्ताओं ने इस क्षेत्र के इतिहास को राष्ट्रीय पन्ने में जगह दिया है. उन्होंने महाराज बहादुर का स्वागत करते हुए भगवान बुद्ध की प्रतिमा सप्रेम भेंट की.
इस मौके पर रामदेव सिंह विचार मंच के अध्यक्ष अभिषेक कुमार सिंह, हथुआ राज के मैनेजर एसएन शाही, धनन्जय सिंह, शम्भू प्रसाद, राजेश सिंह, राष्ट्र सृजन अभियान के राष्ट्रीय सचिव ललितेश्वर राय, अवध किशोर राय, अंकुर कुमार सिंह, गोलू सिंह, बीडीसी मृत्युंजय सिंह, राज नारायण सिंह, वृजकिशोर सिंह, प्रमोद राय व प्रिंसिपिल अशोक शर्मा आदि उपस्थित थे.
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