सीवान : सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र से विप प्रत्याशी डॉ अनुजा ने शिक्षकों के समान काम समान वेतन की मांग को बताया अपना प्रमुख मुद्दा
अभिषेक श्रीवास्तव
सीवान में शुक्रवार को सारण शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र की प्रत्याशी डॉ अनुजा सिंह ने समान कार्य समान वेतन के शिक्षकों की मांग को लेकर राज्य सरकार पर जमकर हमला बोला. स्थानीय इंटरनेशनल होटल में आयोजित प्रेसवार्ता के दौरान मीडिया से रूबरू होते हुए डॉ अनुजा ने शिक्षकों के इस मुद्दे को चुनाव में अपना प्रमुख मुद्दा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आश्चर्य व्यक्त किया.
डॉ अनुजा सिंह ने कहा कि समान कार्य समान वेतन, 26 अक्टूबर 2016 यही वह दिन है जिस दिन 3.57 लाख बिहार वर्क नियोजित शिक्षकों में खुशियों की लहर दौड़ गई. इसमें 90% युवा एवं जवान हैं, महत्वाकांक्षी हैं, जिन्हें गर्व था कि वह एक ऐसी प्रतिष्ठित नौकरी में है जहां गुरु शब्द की गरिमा है. परंतु 10 मई 2019 को शुक्रवार काला शुक्रवार को एक झटके में सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इनके सारे सपने खत्म किया बल्कि समाज को भी अचंभित कर दिया. क्योंकि जब 31 अक्टूबर 2017 को शिक्षकों के पक्ष में पटना हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार ने 14 दिसंबर 2017 को सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर किया और जिसमे जब बहसों का दौर चला तो सब कुछ शिक्षकों की मांग के अनुरुप रहा. 3 अक्टूबर 2018 को जब फैसला सुरक्षित रखा गया तब से बिहार के सभी शिक्षक आशान्वित होकर फैसले की प्रतीक्षा कर रहे थे और 10 मई 2019 को जब फैसला आया तो उसने शिक्षकों के पक्ष में दिए गए पटना हाई कोर्ट के फैसले को निरस्त करते हुए सरकार की याचिका को मंजूरी दे दी गई.
उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में अस्थवान शिक्षक शिक्षक की गरिमा को ध्यान में रखते हुए न्यायपालिका से प्रमाण नहीं मांग सकते, परंतु हम सभी जिज्ञासा शांत करने हेतु मीडिया के माध्यम से आ जाना चाहते हैं कि ऐसा क्या हो गया कि सबसे ज्यादा परीक्षाओं की तारीख में कभी भी पटना उच्च न्यायालय के फैसले को दरकिनार करने की कोशिश नहीं की गई और समान कार्य के लिए समान वेतन को असंवैधानिक करार दिया गया.
उन्होंने कहा कि आर्टिकल 21a के संदर्भ में भी शिक्षक आशान्वित हैं क्योंकि उस प्रावधान को जिसमें 6 से 14 उम्र के बच्चों के लिए शिक्षा उनके मूल अधिकार में शामिल है जिसके तहत 11 जुलाई 2006 को शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के शिक्षकों की नियुक्ति के लिए नियम बनाए गए और बिहार सरकार के उद्देश्य की सफलता अर्थात 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा जागृति में वृद्धि हुई, इसे स्वीकार भी किया और हलफनामे में मत डाला भी. इसके अलावा और भी बहुत आधार है जैसे 2019 में रिकॉर्ड समय मे मैट्रिक की परीक्षा का मूल्यांकन और उसका ससमय परिणाम का प्रकाशन, क्या इन सारे कार्यो में नियोजित शिक्षकों की भूमिका को दरकिनार किया जा सकता है. 10 मई 2019 को आए फैसले के 78 वे पॉइंट में स्पष्ट लिखा है कि यदि शिक्षकों ने टीईटी परीक्षा निकाली है तो फिर उनकी योग्यता को स्वीकारा जाता है. यहां तक इसमें लिखा हुआ है बजट और पैसे की समस्या कभी भी नागरिक के मौलिक अधिकार के समक्ष नहीं आ सकता. जब स्वयं बिहार सरकार नियोजित शिक्षकों को छांटकर अपनी सफलता को नहीं दर्शाया है तब फिर पटना हाई कोर्ट के फैसले को कैसे निरस्त कर दिया गया.
डॉ अनुजा ने कहा कि ध्यान देने योग्य बात है कि बिहार के 12 तारीख के लोकसभा चुनाव के बावजूद बिहार सरकार के अधिकारी अपनी मौजूदगी सुनिश्चित करने पहुंच गए थे. शिक्षक तो अपने छात्रों को अनुशासन का पाठ पढ़ाते हैं. मैं आज देख रही हूं कि इनके मन मे चल रही गुत्थियां विद्रोही बनाने लगा है. छात्र आंदोलन से उभरे नेताओं की पीढ़ी ही अभी बिहार के शासन के शीर्ष पर है. जिस छात्र आंदोलन से ये नेता निकले उस छात्र आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा शोध का विषय है. परंतु इसमें एक शिक्षिका के रूप में इस बात को शिक्षकों के सामने से छात्रों का संपूर्ण क्रांति के लिए भाग जाना वर्षो बाद भी सरकार और शैक्षणिक संस्थानों के प्रयास के बाद भी छात्रों की उपस्थिति विद्यालय विशेषत: महाविद्यालय में पूर्व की भांति सुनिश्चित नहीं कर सकी तो आज जब छात्रों के सामने से शिक्षक विद्यालय छोड़ आंदोलन के लिए निकलेंगे तो उसका क्या प्रभाव होगा वह तो कल्पनातीत है. इसलिए शीर्ष पर बैठे नेतागण एवं सरकार कृपया शिक्षकों के साथ न तो राजनीति करें और ना ही उन्हें मजबूर करें. ध्यान रहे शिक्षकों का यदि धैर्य टूटा तो पूरा समाज, पूरा प्रदेश ही नहीं प्रभावित होगा अपितु पीढियां प्रभावित होगी.
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