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सीवान : पिछले दो दशकों से बंद पड़े सुता मिल की किसी ने नहीं ली सुध, अब चुनावी मौसम में हरेक दल के नेता मिल के कर्मचारियों को दे रहें हैं मदद का भरोसा

सीवान में बगैर उद्घाटन हुए ही दो दशकों से बंद पड़ा सीवान सहकारी सूत मिल इन दिनों नेताओं की राजनीति का केंद्र बन गया है. जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, वहीं नेताओं को सुता मिल का मुद्दा याद आने लगा है और एक के बाद एक कर लगभग सभी राजनीतिक दल के नेता मिल में पहुंच मिल के कर्मचारियों और मजदूरों की मदद किए जाने का भरोसा जता रहे हैं.

बता दें कि दो दशक पूर्व शहर के मुफस्सिल थाना क्षेत्र के जीरादेई-मैरवा रोड स्थित भादा गांव के समीप करीब 15 एकड़ जमीन में सीवान सहकारी सूत मिल की स्थापना की गई थी. लेकिन मिल कभी चालू ही नहीं हुआ और ना ही उसका उद्घाटन हो सका. हालांकि उसके उद्घाटन की तिथि तय की गई थी, जिसको लेकर मिल द्वारा कर्मचारियों और अधिकारियों की बजाप्ता बहाली भी कर ली गई थी. मिल के कैंपस में अधिकारियों, कर्मचारियों के साथ-साथ मजदूरों का रहने के लिए क्वार्टर भी बनाए गए थे, जिसे उन्हें आवंटित भी कर दिया गया था. उद्घाटन के पूर्व ट्रायल के लिए करीब 15 दिन मिल में काम भी चला. लेकिन तत्कालीन राज्य सरकार और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की दखल अंदाजी के कारण मिल का उद्घाटन नहीं हो सका और मिल उद्घाटन के पूर्व स्थापना काल से ही ठप हो गई. जिस कारण मिल में नियुक्त किए गए सभी कर्मचारी, मजदूर और अधिकारी बेरोजगार हो गए. मिल के शुरू नहीं होने के कारण बड़े स्तर के अधिकारी और कर्मचारी अन्यत्र नौकरी करने चले गए. लेकिन, छोटे स्तर के कुछ कर्मचारी और मजदूर इस आस में मिल में आवंटित अपने क्वार्टर में ही जमे रहे कि कभी तो मिल चालू होगा और उन्हें रोजगार उपलब्ध होगी.

लेकिन, पिछले 20 वर्षों में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. अलबत्ता इस दौरान जिले में होने वाले हरेक विधान सभा और लोक सभा चुनावों में नेताओ और उम्मीदवारों ने जिले में बंद पड़े चीनी मिलों के साथ-साथ सुता मिल को भी अपना चुनावी एजेंडा जरूर बताया, लेकिन चुनाव जितने के बाद किसी ने उसकी सुध नही ली. इसी बीच सरकार द्वारा मिल कैम्पस में एक ओर विद्युत विभाग को पावर ग्रिड के लिए जमीन आवंटित कर पावर सब स्टेशन की स्थापना करा दी गयी. वहीं मिल चोर-उचक्कों और अपराधियों की ऐशगाह के साथ-साथ उनकी धन उगाही का केंद्र बन गया. धीरे-धीरे कर मिल की सारी मशीनों के साथ-साथ भवनों में लगे खिड़की, दरवाजे तक चोरी हो गए और बच गयी केवल मिल की खंडहर में तब्दील हुए भवने और मिल की जमीन.

बीते वर्षों में कई बार मिल की जमीन पर सरकार और प्रशासन द्वारा अलग-अलग घटक लगाए जाने की चर्चाएं होती रही. कभी मिल की जमीन पर समाहरणालय को स्थानांतरित करने की बात होती तो कभी किराए के भवन में चल रहे जिले के केंद्रीय विद्यालय को मिल की जमीन आवंटित किए जाने की बात भी सुर्खियों में रही. लेकिन, ऐसा कुछ ना हो सका. इसी दौरान मिल के समीप ही अपना एफसीआई का गोदाम संचालित करने वाले और जदयू पार्टी से ताल्लुकात रखने वाले चर्चित नेता मंसूर आलम ने मिल की जमीन पर अपना कब्जा जमाने के लिए उसकी सफाई करानी शुरू कर दी, जिसकी जानकारी मिलने पर जिला प्रशासन के निर्देश पर जिला उद्योग विभाग के तत्कालीन जीएम ने साफ-सफाई करने से रोक लगा दिया. वहीं मिल की जमीन के भविष्य में किसी दूसरे निकाय के अधीन चले जाने की आशंकाओं और संभावनाओं को देखते हुए मिल के कर्मचारियों ने अपना एक यूनियन बनाकर अपने हक और अधिकार के लिए लड़ाई लड़नी शुरू कर दी. कर्मचारियों ने शहर के एक युवा नेता प्रिंस उपाध्याय को यूनियन का अध्यक्ष बना डाला. मिल के कर्मचारियों की माने तो मिल पर उद्योग विभाग का कब्जा है, लिहाजा उन्होंने उद्योग विभाग को अपने बकाए वेतन के भुगतान करने और अन्यत्र समायोजन किए जाने की मांगों को लेकर ज्ञापन दिया, जिसके कागजात मुजफ्फरपुर उद्योग विभाग से लेकर राज्य के वित्त मंत्रालय तक पहुंचे. लेकिन जमीनी स्तर पर उन्हें कोई लाभ या मुआवजा नहीं मिल सका.

इसी बीच 2020 में राज्य सरकार द्वारा मिल को नीलाम कर वहां इंजीनियरिंग कॉलेज खोले जाने की अनुमति दे दी गई. जिसके बाद भवन निर्माण विभाग मिल के भवनों को तोड़कर उसके मलबे को हटाने के लिए प्रयासरत हो गया. जिसको देख मिल के कर्मचारियों और मजदूरों ने 18 जून से मिल पर अपनी मांगों को लेकर अनिश्चितकालीन धरना देना शुरू कर दिया. वहीं कर्मचारियों और मजदूरों के धरने को अपना समर्थन देते हुए पहले दिन भाकपा माले के नेता और पूर्व विधायक अमरनाथ यादव अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों के साथ मिल पर पहुंच धरने पर बैठे. इसके बाद सत्ता पक्ष से लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं और जनप्रतिनिधियों का मिल पर आना शुरू हो गया.

अमरनाथ यादव के बाद पूर्व विधान पार्षद और सीवान भाजपा के जिला अध्यक्ष रह चुके मनोज कुमार सिंह भी मिल पर पहुंचे और कर्मचारियों और मजदूरों के धरने को अपना समर्थन देते हुए उन्हें न्याय दिलाने की बातें कहीं. वहीं उसके बाद जीरादेई के जदयू विधायक रमेश सिंह कुशवाहा भी मिल पर जाकर मिल के कर्मचारियों और मजदूरों के धरने को अपना समर्थन दिया और उनकी बातों को राज्य सरकार तक पहुंचाने का भरोसा दिलाया. इसके बाद राजद सरकार में मंत्री रह चुके और रघुनाथपुर के पूर्व विधायक विक्रम कुमार ने भी मिल पर पहुंच मजदूरों के हित में अपनी सारी ताकत लगाने की बातें कही. वहीं गुरुवार को सीवान के पूर्व भाजपा विधायक ओम प्रकाश यादव ने भी मिल पर जाकर धरना पर बैठे मजदूरों और कर्मचारियों से मुलाकात की और अपने स्तर से उनकी मांगों को पूरा कराने का आश्वासन दिया.

वहीं मिल के कर्मचारी बताते हैं कि यूनियन के नेताओं ने सीवान के वर्तमान जदयू सांसद कविता सिंह के पति अजय सिंह से भी मुलाकात कर अपने पक्ष में न्याय दिलाने की गुहार लगाई थी. जिसे अजय सिंह ने सिरे से खारिज कर दिया. सूत्र बताते हैं कि मिल के यूनियन के अध्यक्ष से अजय सिंह नाराज हैं, जिसको लेकर उन्होंने मिल के कर्मचारियों को किसी भी प्रकार की मदद देने से इंकार कर दिया. ऐसे में अब यह देखने वाली बात होगी कि एक ओर जहां अपनी मांगों को लेकर मिल के करीब 537 कर्मचारी और मजदूर अनिश्चितकालीन धरना पर बैठे हैं. वहीं रोजाना किसी न किसी राजनीतिक दल के नेता और जनप्रतिनिधि द्वारा पहुंच कर उनके हित में कार्य किए जाने का दिए जाने वाला आश्वासन कारगर होता है या केवल चुनावी सगुफ़ा बनकर रह जाएगा. (सेंट्रल डेस्क).

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