मुंबई : अल्केम ग्रुप के चेयरमैन संप्रदा सिंह का निधन
अनूप नारायण सिंह
मुंबई के लीलावती अस्पताल में भारत की अग्रणी दवा कंपनी अल्केम ग्रुप के चेयरमैन व आइकॉन ऑफ बिहार, जहानाबाद निवासी सम्प्रदा सिंह का निधन हो गया.
बता दें कि संप्रदा सिंह का जन्म बिहार के जहानाबाद जिले के मोदनगंज प्रखंड के ओकरी गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. वहां के लोग बताते हैं कि आखिरी बार वह अपने गांव 2004 में आए थे. लेकिन अब ओकरी स्थित घर में कोई नहीं रहता, वहां ताला लटका हुआ है. लोग बताते हैं कि संप्रदा सिंह बिहार आते भी हैं तो वे अपने पटना स्थित घर में ही ठहरते हैं. सालों से इस घर में कोई नहीं आया. लेकिन एक ऐसा भी समय था जब 3.3 बिलियन डॉलर (21 हजार 486 करोड़ रुपए) के मालिक संप्रदा सिंह पढ़ लिखकर खेती करने अपने गांव आए तो वहां के लोगों ने उनका खूब मजाक उड़ाया जिसके बाद वे मुंबई चले गए और फिर वापस नहीं लौट.
अकाल ने फेरा मेहनत पर पानी
संप्रदा सिंह के पड़ोसी, देवेंद्र शर्मा और नवल शर्मा बताते हैं कि वे शुरू से ही पढने में कापी तेज थे. घोसी स्थित हाई स्कूल में पढ़ने के बाद उन्होंने इंटर किया और गया जाकर बीकॉम की डिग्री ली. पढ़ाई पूरी करने के बाद वे गांव वापस लौटे, जहां उन्होंने आधुनिक तरीके से खेती करने की कोशिश की. संप्रदा सिंह के पिता के पास करीब 25 बीघा जमीन थी, इसी जमीन में वे धान और गेंहूं की जगह सब्जी की खेती करना चाहते थे और जब उन्होंने खेती शुरू की उन्हें सिंचाई को लेकर काफी परेशानियां आई. बारिश कम होने के चलते गांव से होकर बहने वाली फल्गु नदी में पानी कम था. संप्रदा ने डीजल से चलने वाला वाटर पंप लोन पर लिया और उससे सब्जी की सिंचाई करने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुए और तभी किस्मत की भी मार गई और उसी साल गांव में अकाल पड़ गया. इंसानों और जानवरों के पीने के लिए पानी नहीं मिलता था तो खेती कहां से होती.
छोड़े कई काम
खेती में जब कुछ नहीं हुआ तो उन्होंने एक प्राइवेट हाई स्कूल में टीचर की नौकरी शुरू की. लेकिन वहां उन्हें बेहद कम सैलरी मिलती थी, जिससे खर्च चलाना मुश्किल था. कुछ समय तक नौकरी करने के बाद उन्होंने इसे भी छोड़ दिया और पटना जाकर बिजनेस करने का फैसला किया. जहां उन्होंने बीएन कॉलेज के पास सड़क किनारे छाते की दुकान शुरू की. लेकिन इस काम में भी उन्हें मुनाफा नजर नहीं आ हा था जिसके बाद संप्रदा सिंह ने इसे भी छोड़ दिया.
पार्टनर से विवाद के बाद खोली अल्केम कंपनी
फिर उन्होंने अपने एक संबंधी की दवा दुकान पर काम करना शुरू किया। अपनी व्यवहार कुशलता के चलते पीएमसीएच के डॉक्टरों से उनका अच्छा संपर्क हो गया था. जिसकी वजह से उन्होंने लक्ष्मी पुस्तकालय के मालिक लक्ष्मी शर्मा के साथ खुदाबक्श लाइब्रेरी के पास दवा की दुकान शुरू की. वह हॉस्पिटल में दवा की सप्लाई भी करने लगे. दुकान अच्छी चली, लेकिन कुछ समय बाद दोनों पार्टनर के बीच पैसे को लेकर विवाद हो गया और दोनों अगल हो गए. इसके बाद संप्रदा सिंह ने अपने दोस्तों से पूंजी लेकर खुद की दुकान अल्केम फर्मा खोली. वह दवा कंपनियों की एजेंसी लेकर पूरे बिहार में दवा की सप्लाई करने लगे. संप्रदा सिंह की दवा एजेंसी अच्छी चल रही थी, लेकिन वह इतने से संतुष्ट होने वाले नहीं थे. वह अपने सपनों को उड़ान देने के लिए एक लाख रुपए की पूंजी के साथ वे मुंबई चले गए और दवा कंपनी शुरू करनी चाही. लेकिन लोगों ने एक बार फिर उनका मजाक बनाया. लेकिन दूसरों की बातों को नजरअंजाद कर उन्होंने अल्केम नाम की कंपनी बनाई और दूसरे की दवा फैक्ट्री में अपनी दवा बनवाई. डॉक्टरों से संबंध अच्छे रहने के कारण उनकी दवा बिहार में तेजी से बिकने लगी. दवा की मांग इतनी बढ़ गई कि जल्द ही संप्रदा सिंह ने अपनी दवा फैक्ट्री शुरू कर दी. जिसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
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