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सहरसा : गुरुपूर्णिमा पर श्रीगुरु पूजा महोत्सव आयोजित

राजा कुमार

सहरसा में मंगलवार को दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान बिहार की मुख्य शाखा ग्राम पदमपुर नजदीक पंचगछिया रेलवे स्टेशन सत्तर कटैया आश्रम में “श्रीगुरु पूजा” महोत्सव का भव्य आयोजन किया गया.

आश्रम के पीछे बने भव्य पंडाल में सुसज्जित मंच के बीचो-बीच सुशोभित दिव्य आसन पर दिव्य स्वरूप में विराजमान “सर्वश्री आशुतोष महाराज जी” को माल्यार्पण कर फल-फूल वस्त्रादि से विधिवत पूजन किया गया. तत्पश्चात गुरुदेव के 51ब्रह्मषज्ञानी वेदपाठी शिष्यों द्वारा वेदमंत्रों का उच्चारण एवं शांतिपाठ, श्रीगुरु अष्टकम् ,नमन एवं आरती किया गया. जिसमें हजारों लोगों ने भाग लिया।इस गुरु पर्व के पावन अवसर पर गुरुदेव के समर्पित शिष्य-शिष्याओं ने गुरु भक्ति से ओत-प्रोत श्रृंखलाबद्ध दिव्य भजनों एवं ओजपूर्ण दिव्य विचारों के द्वारा गुरु-शिष्य के आध्यात्मिक संबंधों को उजागर किया.

संस्थान के मुख्यालय दिल्ली से पहुंची सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी “सुश्री पद्महस्ता भारती जी” ने गुरु पूर्णिमा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पूर्णिमा उसे कहते हैं जिस दिन चन्द्र अपनी पूर्ण रूप में रहकर समस्त संसार को आलोकित कर देते हैं. ठीक उसी प्रकार से पूर्ण सद्गुरु जिसका अर्थ ही गु=अंधकार, रू = प्रकाश अर्थात गुरु वही जो अंधकार से प्रकाश की ओर यात्रा कराते हैं. आज हमारे जीवन में विकारों, वासनाओं एवं कामनाओं रूपी समस्त अंधकारों को मिटा दे वही गुरु है. उन्होंने कहा कि जैसे संसार के लोग चाहते हैं कि मेरा पुत्र मेरे जैसा हो, वैसे ही गुरु भी चाहते हैं कि मेरा शिष्य मेरे जैसा हो और इसी उद्देश्य को पूर्ण करने हेतु गुरू मन व इन्द्रियों से सदा चंचल व अस्थिर शिष्यों को अपने जैसे बनाने का जोखिम उठाते हैं.

आगे उन्होंने बताया कि गुरु वैद बनकर शिष्य के विकारों का हरण करते हैं और गुरु अध्यात्म के पुरोधा बन शिष्य को आत्मिक ऊंचाइयों पर पहुंचाते हैं. जहां संपूर्ण विश्व उसका अपना है और इसी वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना से ओतप्रोत हो वह विश्व में शांति की स्थापना करने हेतु अपने तन, मन, धन को अर्पित करता है. यही लक्ष्य है दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के संस्थापक व संचालक गुरुदेव सर्वश्री आशुतोष महाराज जी का. जहां उनके लाखों अनुयाई गुरुदेव के मार्गदर्शन में विभिन्न आध्यात्मिक सामाजिक प्रकल्पों के माध्यम से विश्व शांति की ओर अग्रसर है. विश्व शांति का सीधा संबंध मन,चित से है. अतः मन को शांत करने का साधन आदि काल से केवल एक ही रहा है “ब्रह्मज्ञान” अर्थात तृतीय नेत्र द्वारा आत्म चेतना का साक्षात दर्शन करना जो केवल पूर्ण सतगुरु के कृपा द्वारा ही संभव है, और यहीं वह ज्ञान (युक्ति) है जो युगों से पूर्ण सद्गुरु द्वारा शिष्य को प्राप्त होता आया है. श्रीकृष्ण से अर्जुन को, रैदास जी से मीरा को, श्रीराम जी से हनुमान जी को, रामकृष्ण परमहंस जी से विवेकानंद जी को, सुजाता जी से गौतम बुद्ध को. ऐसे अनेक युग हैं जो गुरु और शिष्य के अनूठे पवित्र संबंध है को स्थापित करते आए हैं. संस्थान के संस्थापक आशुतोष महाराज जी का मिशन यही जाग्रति समाज में ला रही है और भारत की पुरातन संस्कृति और परंपरा को पुनः स्थापित कर रहा है.

इस पावन अवसर पर सहरसा एवं आस-पास के अन्य जिलाओं से हजारों की संख्याओं में भक्त श्रद्धालुगण सम्मिलित हुए. सभी आगंतुकों के लिए भोजन भंडारा की पूर्ण व्यवस्था किया गया.

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