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बेगूसराय : चुनावी भाषण से स्थानीय मुद्दे गायब, नेताओं और एक दूसरे की खिलाफत के नाम पर जनता को लुभाने की कोशिश

नूर आलम

बेगूसराय में इस बार का लोकसभा चुनाव अब तक हुए सभी चुनावों से बिल्कुल ही अलग-थलग दिख रहा है. देश भर की नजर बेगूसराय पर टिकी है. देश के विभिन्न कोने से लोग आकर यहां प्रचार कर रहे हैं. मीडिया का जमावड़ा है. भाषणों का दौर जारी है, वायदे हो रहे हैं. लेकिन, इन सबके बीच स्थानीय मुद्दा बिल्कुल ही गायब हो गया है.

सब के सब राष्ट्रवाद, मोदी भगाओ, लालू यादव को जेल से निकालो पर ही टिक गए. कोई भी कॉलेज में शिक्षकों की कमी, एयरपोर्ट से उड़ान, छतौना का अधूरा पूल, प्रधानमंत्री सड़क योजना से दस साल पूर्व से अधूरी सड़क, दियारा के विकास पर नहीं बोल रहे हैं. कोई नहीं बोल रहे हैं कि जिला में तीन सौ से अधिक नलकूप ठप है और वर्षों से किसान मंहगी सिंचाई कर रहे हैं. कोई नहीं बोल रहे हैं कि बूढ़ी गंडक नदी के छतौना घाट पर वर्षों से पहुंच के अभाव में हाथी का दांत बना पुल कब चालू होगा. किसी भाषण में सुनने में नहीं आ रहा है कि हम गढ़हारा के बेकार पड़े करीब 22 सौ एकड़ जमीन पर पुन: रेल विकास की संभावना तलाश करेंगे. कोई नहीं बोल रहे हैं कि काबर झील का उद्धार होगा.

किसी नेता के मुंह से यह बात नहीं निकल रहा है कि हम काबर के किसानों के जमीन की खरीद बिक्री पर लगे रोक को दूर करेंगे. ललित नारायण मिश्र के सपनों का बरौनी-हसनपुर रेल लाइन निर्माण कार्य की शुरुआत करेंगे. बिहार के औद्योगिक राजधानी बेगूसराय जिला मुख्यालय के स्टेशन से थ्रू-पास करने वाली एक दर्जन गाड़ी का स्टॉपेज होगा. शाम्हो और चमथा दियारा में कृषि क्षेत्र में व्याप्त संभावनाओं का विकास कर कृषि प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना होगी. नौला में ठप हो चुके बराज में फिर से पानी पहुंचाएंगे. चंद्रभागा का उद्धार करेंगे.

भ्रष्टाचार के खात्मे की बात सब कर रहे हैं, जबकि लोग चाह रहे हैं नेता बोलें की प्रखंड कार्यालय में बगैर सौ-पचास दिए ही प्रमाण पत्र बन जाएगा. जनप्रतिनिधियों को दो हजार दिए बिना ही शौचालय बन जाएगा. 20 से 30 हजार दिए बिना ही आवास योजना का लाभ मिल जाएगा. बगैर चाय पिलाये पेंशन शुरू हो जाएगा. लोग जानना चाह रहे हैं कि सांसद बनने के बाद हमारे नेता बगैर घूस लिए काम नहीं करने वाले जनप्रतिनिधि और निचले स्तर के कर्मचारियों-अधिकारियों पर कैसे कार्रवाई करेंगे.

आज भी बैंकों में लोगों की भीड़ सुबह से शाम तक लगी रहती है. पर्याप्त संख्या में रेल नहीं चलने के कारण बोगियों में मारा मारी की स्थिति रहती है. कॉलेज में सभी प्रोफेसर और स्कूल में अधिकतर शिक्षक दिनभर मोबाइल में व्यस्त रहकर बगैर पढ़ाये वेतन ले रहे हैं. सरकारी डॉक्टरों की ड्यूटी अस्पताल के बदले क्लिनिक में पूरी हो रही है. अस्पताल में सभी दवा नहीं दी जा रही है. कुल मिलाकर इस चुनाव में धरातलीय स्तर पर व्याप्त स्थानीय मुद्दा पूरी तरह से गायब हो गया है. सिर्फ और सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर बातें अटक कर रह गई है.

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