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सनातन धर्म मे शंख का महत्व

सुशील श्रीवास्तव

ऊँ रूप: केशव: पद्मशंखचक्रगदाधर:।         

नारायण: शंखपद्मगदाचक्री प्रदक्षिणम् ॥1॥

ये श्लोक अग्नि पुराण से ली गई है जिसका अर्थ होता है ,
“ऊँकार स्वरूप केशव अपने हाँथों में पद्म, शंख़, चक्र और गदा धारण करने वाले हैं. नारायण शंख, पद्म, गदा और चक्र धारण करते हैं, मैं प्रदक्षिणा पूर्वक उनके चरणों में नतमस्तक होता हूँ.” भगवान नारायण अपने चार भुजाओं में से एक भुजा में शंक को घारण किये हुए है जो प्रभु को अति प्रिय है.

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से एक शंख को सुख-समृद्धि और निरोगी काया का प्रतीक माना जाता है. इस मंगलचिह्न को घर के पूजा स्थल में रखने से जहां अरिष्टों और अनिष्टों का नाश होता है, सौभाग्य वृद्धि भी होती है. शंख को कई नामों से भी जाना जाता है जो इस प्रकार है: समुद्रज, कंबु, सुनाद, पावनध्वनि, कंबु, कंबोज, अब्ज, त्रिरेख, जलज, अर्णोभव, महानाद, मुखर, दीर्घनाद, बहुनाद, हरिप्रिय, सुरचर, जलोद्भव, विष्णुप्रिय, धवल, स्त्रीविभूषण, पाञ्चजन्य, अर्णवभव आदि.

द्विधासदक्षिणावर्तिर्वामावत्तिर्स्तुभेदत:

दक्षिणावर्तशंकरवस्तु पुण्ययोगादवाप्यते

यद्गृहे तिष्ठति सोवै लक्ष्म्याभाजनं भवेत्।

जिस प्रकार शंख के कई नाम है उसी प्रकार प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं. इनके तीन प्रमुख प्रकार हैं: वामावर्ती, दक्षिणावर्ती तथा गणेश शंख या मध्यवर्ती शंख. दक्षिणावर्ती शंख का पेट दाईं ओर खुलता है और ये पुण्य के ही योग से प्राप्त होता है. यह शंख जिस घर में रहता है, वहां लक्ष्मी की वृद्धि होती है. इसका प्रयोग अर्घ्य आदि देने के लिए विशेषत: होता है.

वामवर्ती शंख का पेट बाईं ओर खुला होता है. इसके बजाने के लिए एक छिद्र होता है. इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं. इसके अलावा जो मद्यवर्ती शंख है और जिसका पेट मद्य मे खुलता है वो अति दुर्लभ है.

शंख के पूजन तथा इसके बजाने के कई लाभ है.

शंख पूजन का लाभ : शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप है जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है. तीर्थाटन से जो लाभ मिलता है, वही लाभ शंख के दर्शन और पूजन से मिलता है.

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है. इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है. शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं.

सेहत में फायदेमंद शंख : शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है. शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फास्फोरस की भरपूर मात्रा होती है. प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते.

शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का व्यायाम होता है. शंख वादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है. शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है. गोरक्षा संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख को आयुर्वद्धक और समृद्धि दायक कहा गया है.

पेट में दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं. नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है. यही नहीं, कालसर्प योग में भी यह रामबाण का काम करता है.

(साभार : श्रीगुरु जी, बोकारो, झारखंड)

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