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शिक्षक दिवस विशेष : आधुनिकता ने बदल दी शिक्षक दिवस की परिभाषा

एम के सिंह 

“झुक जाता है जो उसके आगे वो सबसे उपर उठ जाता है, गुरु की छत्रछाया में सबका जीवन सुधर जाता है.”

शिक्षक शब्द अपने आप में महत्वपूर्ण है. इस शब्द के दिमाग में आते ही व्यक्ति के दिल में अपने गुरु के प्रति सम्मान का भाव उमड़ता है. सम्मान का भाव उमड़ना भी चाहिए क्यूंकि आज हम जो भी हैं, उसी गुरु (शिक्षक) के बदौलत हैं, जिन्होंने हमें अक्षर ज्ञान देकर एक सभ्य नागरिक बनाया है. एक कुशल शिक्षक अपने ज्ञान के पुंज से शिष्यों को प्रकाशित कर उन्हें कामयाबी के शिखर तक पहुंचाता हैं. एक कुशल शिक्षक तो हमेशा नींव के ईंट की तरह जमीन के अंदर रहकर अपने शिष्य रुपी इमारत को ज्ञान रुपी खूबसूरती देने का कार्य मुस्तैदी से करता है. देश एवं दुनिया के हरेक कामयाब व्यक्ति के सफलता के पीछे उसके गुरु का महत्वपूर्ण योगदान होता है.

अपने देश में तो गुरु भक्ति के कई किस्से प्रचलित हैं. इतना ही नहीं भारतीय धर्मग्रंथों ने भी गुरु की महिमा का बखान किया है. देश-दुनिया के पैमाने पर भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन को एक आदर्श शिक्षक माना जाता है. राष्ट्रपति जैसे अति महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए भी डॉ. राधाकृष्ण ने अपने आप को शिक्षक बनाए रखा. वे दुनिया को भारतीय दर्शन से अवगत कराना चाहते थे. भारतीय संस्कृति के संवाहक डॉ राधाकृष्ण के जन्म दिवस 05 सितंबर को अपने देश में प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाता है. शिक्षक दिवस यानि अपने गुरु को सम्मान देने का विशेष दिन. लेकिन आज के दौर के आधुनिक शिक्षकों ने हाल के वर्षो में शिक्षक दिवस की परिभाषा ही बदल डाली है. अब शिक्षक दिवस अपने गुरु के प्रति श्रद्धा निवेदित करने का विशेष दिन नहीं रहा. अब तो शिक्षक दिवस पर भी आधुनिकता हावी हो गयी है. शिक्षा का व्यापार करने वाले तथाकथित शिक्षकों को आज के दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है. इस दिन का इंतजार शिक्षकों को अपने छात्रों से मिलने वाले विशेष सम्मान के लिए नहीं बल्कि महंगे तोहफे के लिए रहता है. 05 सितंबर से कुछ दिन पहले से ही वैसे शिक्षक अपने छात्रों से महंगे तोहफे की मांग शुरु कर देते हैं. खासकर ये काम कोचिंग सेंटर या पब्लिक स्कूलों में पढ़ाने वाले वाले शिक्षक मुख्य रुप से करते हैं. छात्रों से महंगे तोहफे के तौर पर ये शिक्षक बाइक, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, लैपटॉप, मोबाइल एवं सोने के आभूषण मिलने की उम्मीद करते हैं. वैसे शिक्षक अपने यहां अध्यनरत छात्रों में से दो-चार छात्रों को अपना प्रिय पात्र बनाकर शेष सभी छात्रों के बीच महंगा तोहफा देने के प्रस्ताव पर आसानी से सहमति बनवा लेते हैं. फिर शुरु होता है संबंधित शिक्षक को खुश करने के लिए छात्रों द्वारा अपने-अपने अभिभावकों का शोषण. चूकि शिक्षक उसके बच्चे से नाराज न हो जाए इसे लेकर अभिभावक शिक्षक दिवस के नाम पर अच्छी-खासी राशि अपने बच्चों को दे देते हैं. छात्रों के समूह द्वारा इसी राशि से महंगे तोहफे खरीदकर अपने आधुनिक एवं भौतिकतावादी गुरुजी को शिक्षक दिवस पर दिया जाता है.

इस भौतिकतावादी युग में न तो द्रोणाचार्य जैसे गुरु हैं और न एकलव्य जैसा शिष्य. अब तो गुरु-शिष्य के बीच एक दूसरे के प्रति समर्पण का भी कोई खास भाव नहीं रहा.ऐसे में शिक्षक दिवस की परिभाषा का बदलना भी लाजिमी है. आज अगर डॉ राधाकृष्ण जीवित होते तो शिक्षकों के स्तर में लगातार हो रही गिरावट एवं शिक्षक दिवस के बदलते स्वरूप को देखकर उनका मन दुखी और हृदय द्रवित हो जाता. देश-दुनिया को भारतीय दर्शन से अवगत कराने के लिए प्रतिबद्ध एक महान शिक्षक के जन्म दिवस पर महंगे तोहफे का प्रचलन कहीं से ठीक नहीं है. एक कुशल शिक्षक तो सम्मान का भूखा होता है सामान का नहीं. तो आइए आज के पावन मौके पर शिक्षक एवं शिक्षक दिवस की परांपरागत गरिमा को बनाये रखने का हमलोग पुनः संकल्प लें. शिक्षकों के चारित्रिक विकास एवं शिक्षा को सर्वस्पर्शी बनाकर ही हम सही मायने में शिक्षक दिवस मना सकते हैं.

ज्ञान रुपी प्रकाश से अपने छात्रों को आलोकित कर उसे कामयाबी के शिखर तक पहुंचाने वाले दुनियाभर के सभी आदर्श एवं कुशल शिक्षको को शिक्षक दिवस के पावन-पवित्र अवसर पर शत् शत् नमन.

(प्रस्तुत लेख लेखक के अपने विचार हैं.)

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