बदहाली के दौर से गुजर रहा मैरवा का चर्चित हरिराम उच्च विद्यालय सह इंटर कॉलेज
अभिषेक श्रीवास्तव
सीवान जिले के मैरवा नगर क्षेत्र का सबसे बहुचर्चित हरिराम उच्य विद्यालय सह इण्टर काॅलेज आज अपनी बदहाली पर आँसू बहा रहा है. सरकार के उदासीन रवैये के कारण विद्यालय में न तो माकूल कमरे हैं, न बेंच और न हीं पर्याप्त शिक्षक हैं. महज ग्यारह शिक्षक 22 सौ बच्चो को पढ़ाने का दायित्व निभा रहे है.
जी हाँ, सुनाने में आपको यह बात अटपटी सी जरुर लग रही होगी लेकिन ये सच्चाई है मैरवा के प्रसिद्ध हरिराम उच्च विद्यालय सह इंटर कॉलेज की. जहा संस्कृत, अंग्रेजी, जीव विज्ञान जैसे विषयो में एक भी शिक्षक नहीं हैं. वही नाम मात्र के लिए एक पुस्तकालय तो है पर बच्चो को उसका समुचित लाभ नहीं मिलता.
वर्ष 1934 में प्रस्वीकृत दस एकङ जमीन के साथ शिक्षा जगत में सूबे में अपनी पहचान रखने वाला यह विद्यालय तीन ओर से कक्षो से घिरा है. जिसका सम्पूर्ण दक्षिणी शिरा व 80 प्रतिशत पूर्वी हिस्सा आज खण्डहर में तब्दिल हो गया है. दिवाले तो खङी दिखती हैं मगर अस्थि मात्र की जिनमे, बैठना खतरे से खाली नहीं. ये सभी कमरे विद्यालय स्थापना काल की ही है. जो अपनी जङा स्थिति में पहूॅच बेबसी पर आॅसू बहा रही है.
विद्यालय के उत्तरी हिस्से के अधिकांश कक्षो का प्रयोग कार्यालय कार्यो के लिए होता है. कुल मिलाकर चार ही कमरे हैं. जिनका उपयोग पठन-पाठन के लिए किया जा सकता है. एक तरफ सरकार शिक्षा में अनवरत सुधार की बात कह रही है. वही धरातलीय तथ्य कुछ और ही बया कर रहा है. 1980 में सरकारीकरण के साथ ही इसका विकास अवरुद्ध सा दिखा. पूर्व में यहाॅ छात्रो की संख्या तीन हजार से भी ज्यादे थी मगर, वर्तमान सत्र में कङी मशक्कत के बाद नामांकन कम किया गया. फिर भी दशम् वर्ग में 1210 बच्चे नव सेक्सनो में व 961 बच्चे नवम के सात सेक्सनो में नमांकित है.
दशको पूर्व यह विद्यालय अपनी गुणवत्ता को लेकर सुबे तक में जाना जाता रहा. यही कारण रहा की यहाॅ कल्याण विभाग ने आवासीय सरकारी छात्रावास भी बनवाया. सुदुर क्षेत्र से लेकर नगर तक सभी अपने बच्चो को नमांकित करा गौरवांतित होते रहे. दिनो दिन छात्रों की संख्या तो बढ़ती गयी. मगर, सरकारीकरण के बाद से जिस गति से अन्य संसाधनो के मामलो में विकसित होना चाहिये नहीं हो सका और विद्यालय परिसर बेबसी का शिकार बनता चला गया. पेयजल, शौचालय आदि की भी व्यवस्था दयनीय है. बच्चो की संख्या को देखते हुए विद्यालय दो पालियो में चलता है. जिससे छात्रो को अध्ययन अध्यापन के लिए कम ही समय मिलता है.
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