चाईबासा : कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों व आदिवासी कन्या विद्यालय में होनेवाले सामानों के क्रय हेतु निविदा आवंटन में गड़बड़ी
संतोष वर्मा
चाईबासा जिले के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय व आदिवासी कन्या विद्यालयों में अध्यनरत्त छात्राओं के बीच खाद्य सामाग्री हेतु क्रय समिति का चयन करने में शिक्षा विभाग द्वारा बड़े पैमाने पर निविदा आवंटन करने के लिए नियम को दरकिनार कर किसी एक व्यक्ति को लाभ पहुंचाने का मामला प्रकाश में आया है. वहीं विभाग द्वारा वेक्ती विशेष ठेकेदार को ठेका आवंटन करने लिए लाखों में खेला बेला की जाने की बात सामने आ रही है.
इस ठेका को पाने के लिए कई संवेदकों ने अपना अपना आवेदन दिया था लेकिन क्रय हेतु पड़े निविदा को सभी संवेदक के समक्ष ना खोलकर आवेदन कर्ताओं का हस्ताक्षर लेकर बाहर कर दिया गया. जबकी विभाग द्वारा नियम बनाया गया था की सभी टेंड़र फार्म सभी आवेदनकर्ता के मौजूदगी में खोली जायेगी. लेकिन चयन समिति में बैठे अधिकारी द्वारा ऐसा नहीं किया गया. इस मामले को लेकर अन्य संवेदकों ने न्यायालय का भी दरवाजा खटखटाया है.
ज्ञात हो की इस वर्ष कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में एवं आदिवासी कन्या विद्यालयों में सामानों के क्रय हेतु निविदा निकाली गई थी. उसी निविदा को आवंटन करने के लिए जिला मुख्यालय में की गई थी. लेकिन इस निविदा में प्रक्रियाओं का अनुपालन नहीं किया जा रहा है. नियमानुसार निविदा खुलने के समय निवेदाताओं का रहना आवश्यक है जो निविदा शर्त में अंकित है.लेकिन निविदाताओं से केवल हस्ताक्षर लेकर उन्हें रूम से बाहर कर दिया जाता है. जबकि बीआरसी चाईबासा के लेखापाल जो वर्तमान में जिला लेखा पदाधिकारी के पद पर अस्थायी रुप से पदस्थापित है, प्रथम एवं द्वित्य दिन एवं बीआरसी झीकपानी के लेखापाल सहायक के रूप में बैठक में थे. उन्होने निविदादाताओं एवं कुल चार निविदादाताओं को छोड़कर सभी निविदादाताओं को तकनीकी निविदा में कुछ कागजात की कमी दिखा कर रद्द करने का प्रयास किया है.खास बात यह है की विद्यालयों में खाद्यान सामानों की खरीद ज्यादा मात्रा में होती लेकिन सामानों की लिस्ट में ज्यादातर सामान ऐसे ही जिनका खरीद नाम मात्र का या नहीं होता है. जैसे काजु, किसमिस, गोलकी, उरद दाल, मूंग दाल आदी. इन लोगों ने ज्यादा खरीद होने वाले खाद्य पदार्थो का दर अधिक देकर ना खरीद होने वाले सामानों का दर एकदम कम कर एल वन दिखाने का प्रयास कर अधिकतम नाम कमाने का कार्य किया है तथा उनका उद्देश्य अन्न निविदादाताओं को रद्द करने के प्रयास है.
सुत्रों की माने तो खुशेंद्र ने कुछ में सही बात किये लेकिन इन लोगों ने विभिन्न प्रकार से समझा कर अन्य निविदादाताओं के निविदा को रद्द करने का जी तोड़ कार्य किया है.जबकि यह क्रय समिति से सदस्य भी नहीं है.सिर्फ सहायक के रूप में इन्हें रखा गया है. नियम के विरुद्ध ठेका आवंटन करने में मुख्य भूमिका निभाया है. वहीं निविदादाताओं ने अनुरोध किया है कि अबतक हुई सभी निविदाओं की पुनः जांच की जाय और इस प्रक्रिया में इस विभाग एवं जेईपी के किसी सहायक पदाधिकारी को नही रखा जाये तथा समहरणालय के किसी विभाग के कंप्यूटर अॉपरेटर को रखा जाये ताकि निविदा जांच हो.साथ ही यह भी कहा गया की छोटे मोटे तकनीकी कागजात के आधार पर निविदाओं को रद्द नहीं कर विभिन्न सामानों के लोस्ट रेट के आधार पर सामानों की आपूर्ति हेतु निविदादाताओं का चयन किया जाये जिनका जो सामानों का दर न्यूनतम है उसे ही उसका दर स्वीकृत किया जाय.इससे सरकारी राशि की भी बचत होगी तथा इससे पिरदर्शितापूर्ण निर्णय माना जायेगा और यही परंपरा अब तक विद्यालयों के द्वारा अपनाया जा रहा है.
यह भी जाने क्या क्या करना था जो नहीं हुआ
1.निविदा पेपर में आवश्यक सूचना कह कर निकला जो नियमानुसार पूर्ण रूप से गलत है.
2.निविदा पेपर लेने की तिथि सिर्फ एक दिन 18/5/18 रखा गया उसके दुसरे दिन गर्मी छुट्टियां हो गयी सभी पंद्रह बॉल्क में.ऐसा जान बूझ कर किया की किसी को समय नहीं मिले.
3. निविदा पत्र का मूल्य झारखण्ड के प्रत्येक जिला में पूर्ण सेट का किमत 500 से 1500 तक था पर केवल पश्चिचमी सिंहभूम में किमत 7,500 रूपया रखा गया ताकी सभी खरीद नहीं सके.
4. निविदा पत्र जमा करने कि तिथि 10/6/18 रविवार का दिन रखा गया था लेकिन अचानक बदल कर 13/6/18 कर दिया गया.वो भी 15 बॉल्क में एक ही दीन जमा करना इसके लिए कोई सार्वजनिक सूचना नहीं दिया गया.
5.झारखण्ड के प्रत्येक जिला के प्रखण्डों में निविदा खोला गया पर बिना किसी सार्वजनिक सूचना के यहां जिला में खोला गया तथा जो क्रय समिति के सदस्यों के अलावा बाहर से लोगों को रखा गया.
6.निविदा खोलने के समय निविदा दाताओं से केवल हस्ताक्षर लेकर सभी निविदादाताओं को बाहर कर दिया गया.एवं सभी प्रक्रिया बंद कमरे में की जा रही है.ऐसा भी सूचना मिली है की सभी का निविदा रिजेक्ट कर यहां बॉल्क में सिर्फ ऐक या दो ही निविदा है उसमें भी फायनल कर दिया गया है.जो नियमाकुल नहीं है.
7. बहुत से तकनिकी लिफाफे से पेपर गायब कर दिया गया है.
8. सेम्पुल भी नहीं देखा जा रहा है.
9. एक तनीकी या दो तकनीकी ही पास हुआ उसमें भी व्यक्ती विशेष को फायनल कर दिया गया है.जो पूर्ण रूप से मनमानी है और नियमाकूल नहीं कम से कम तीन पेपर होना अनिवार्य है.इतना छोटा निविदा में ओडिट रिपोर्ट के आधार पर रिजेक्ट किया जा रहा है.
10.कई निविदादाताओं के तकनीकी में 18-19 का अॉडिट रिपोर्ट नहीं होने के बावजूद तकनीकी को सही माना जा रहा जबकी कुछ लोग 18-19 का अॉडिट रिपोर्ट दे चुके है.
उक्त निविदा को अपने अनुसार व्यक्ति विशेष को लाभ पहुंचाने के लिये नियमों को ताख पर रख कर हेरा फेरी की जा रही है.
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